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हाय रे सर्दी! ठंड की दस्तक के साथ ही रजाई का कारोबार हुआ गुलजार - रजाई की मांग

तापमान में कमी आते ही सर्दी से बचने के लिए लोगों में रजाई की मांग बढ़ने लगी है. तापमान में दिनों-दिन गिरावट हो रही है. ऐसे में रजाई और गद्दे बनाने वालों का व्यापार भी बढ़ता जा रहा है. साथ ही शहर और कस्बों में जगह-जगह कपास की ढेरियां और रजाई-गद्दे बनाने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है.

करौली की खबर, रजाई को लेकर खबर, demand for blankets increased

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Published : Nov 25, 2019, 8:31 AM IST

करौली. सर्दी का मौसम है, ऐसे में तापमान में लगातार गिरावट देखने को मिल रही है. सर्दी से निजात पाने के लिए लोगों में रजाई की मांग बढ़ने लगी है. ठंढ़ से बचने के लिए लोग रजाई का इस्तेमाल करते हैं. ऐसे में रजाई और गद्दे बनाने वालों का व्यापार भी बढ़ता जा रहा है. साथ ही शहर और कस्बों में जगह-जगह कपास की ढेरियां और रजाई-गद्दे बनाने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है.

रजाई की बढ़ी डिमांग, दाम में भी बढ़ोत्तरी

कपास और रजाई-गद्दे बनाने के लिए कपड़ों की मांग बढ़ने के साथ ही भाव में भी उछाल आ रहा है. हालांकि गत वर्ष की तुलना में रुई के भाव अभी कम हैं. लेकिन, दुकानदारों का कहना है कि जैसे-जैसे सर्दी बढ़ेगी वैसे-वैसे भाव में उछाल आने की उम्मीद है. पिछले साल रूई के भाव 150 से 160 रुपये प्रति किलो तक थे. वहीं इस बार अभी तक 130 से 140 रुपये प्रति किलो के हिसाब से रजाई-गद्दे बनाए जा रहे हैं.

रजाई बनाने वाले दुकानदार सफी अहमद का कहना है कि रुई के भाव में पिछले एक माह में 20 से 50 रुपये तक उछाल आया है. सितंबर अक्टूबर तक रूई के भाव 80 से 110 रुपये प्रति किलो तक बेच रहे थे. रजाई गद्दे भरने और सिलाई करने में 20 से 35 रुपये प्रति किलो रूई के हिसाब से पिनाई की जाती है. कपड़े की गुणवत्ता, सिलाई और डिजाइन के आधार पर रेट ऊपर-नीचे होते रहते हैं. यहां पर ज्यादातर ढाई से तीन किलो रुई की रजाइया पसंद की जा रही हैं, जिनमें रजाई का कपड़ा मिलाकर कुल लागत आठ-नौ सौ रूपये आ रहे हैं.

जयपुर गंगानगर से लाते हैं रूई..

बता दें कि शहर में कई जगहों पर रजाई-गद्दे बनाने वालों की दुकान है. सर्दी का सीजन शुरू होते ही ये लोग जयपुर, गंगानगर आदि जगहों से रूई मंगाते हैं. ज्यादातर जयपुर से रुई खरीदकर लाते है. दुकानदारों का कहना है कि गंगानगर से लाई गई रुई को जयपुर मे स्टोर किया जाता है.

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वैसे तो दिपावली के बाद से ही रिजाई की मांग शुरू हो जाती है. लेकिन दिसंबर, जनवरी और फरवरी माह में ही रजाई-गद्दे बनाने का काम जोरों पर होता है. इस बार पिछले साल की तुलना में अक्टूबर के अंतिम सप्ताह से ही सर्दी बढ़ने लगी थी. जिस कारण दिपावली से ही लोगों ने रजाई-गद्दे बनवाने शुरू कर दिए थे. अगले एक दो माह के दौरान इसमें और तेजी आने की उम्मीद है. डिमांड के आधार पर रजाई-गद्दे तैयार किए जाते हैं.

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