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यहां माता अंजनी की गोद में विराजमान हैं बाल हनुमान, देवउठनी ग्यारस पर भरता है विशाल मेला

करौली जिले से 3 किलोमीटर दूर हिण्डौन मार्ग पर पांचना नदी से चारों तरफ से घिरा अंजनी माता का सुप्रसिद्ध मंदिर है. त्रिकूट पर्वत पर स्थित यह मंदिर अपने आप में अनूठा है. मंदिर चारों ओर से पांचना नदी से घिरा हुआ है. इस मंदिर में हर वर्ष देव उठनी ग्यारस पर मेला भरता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं. वहीं लोगों की मान्यता है कि पांचना नदी में स्नान करने से सभी रोग दुर हो जाते हैं. इस अनूठे पर पेश है एक खास रिपोर्ट-

करौली न्यूज, karauli news

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Published : Nov 9, 2019, 8:22 PM IST

करौली.राजस्थान के करौली जिले से 3 किलोमीटर दूर हनुमान जी की माता अंजनी माता का सुप्रसिद्ध मंदिर स्थित है. यह मंदिर हिण्डौन मार्ग पर त्रिकूट पर्वत पर स्थित है, जो पांचना नदी से चारों ओर से घिरा हुआ है. कहा जाता है कि अंजनी देवी कुंजर नामक एक बंदर की पुत्री थी, इनके पति का नाम केसरीनंदन था. माता अंजनी के गर्भ से हनुमानजी का जन्म वायुपुर नामक पावन तीर्थ मे हुआ था. जिस समय अंजनी के गर्भ से हनुमान उत्पन्न हुऐ थे, उस समय ब्रह्म योनि वायू ने इस पावन तीर्थ का निमार्ण किया था.

इस मंदिर की अंजनी माता की प्रतिमा हनुमानजी को दुग्धपान कराती हुई है

करौली की स्थापना के साथ हुई थी मंदिर की स्थापना

माता के मंदिर का निर्माण 1348 ईस्वी में नगर की उत्तर दिशा में स्थित पहाड़ी के ऊपर यदुवंशी राजा अर्जुन देव द्वारा कराया गया था. यदुवंशियों की कुलदेवी होने के कारण करौली नगर की स्थापना के साथ ही अंजनी माता की प्रतिष्ठा की गई थी.

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अंजनी माता यदुवंशी और जादौन परिवार की कुलदेवी हैं, माता को कैला माता का ही स्वरूप मानते हैं. इनकी पुजा अलग-अलग कालखण्डों मे भक्तों द्वारा की जाती रही है. वहीं करौली रियासत के यदुवंशी जो रोजगार के लिए बाहर चले गए उनके वंशज अपनी कूलदेवी को पूजने प्रतिवर्ष यहां आते हैं.

बाल हनुमान बैठे हैं माता अंजनी की गोद में

माता की प्रतिमा संगमरमर पत्थर से निर्मित है, मन्दिर में बाल हनुमान को माता अंजनी गोद में लिए हुए बैठी है. इस मंदिर की अंजनी माता की प्रतिमा हनुमानजी को दुग्धपान कराती हुई है, जो अपने आप में दुलर्भ है. राजस्थान में हनुमान जी का माता अंजनी की गोद में बाल स्वरूप बैठे यह पहला मन्दिर है.

देवउठनी ग्यारस को भरता है विशाल मेला

मन्दिर में परम्परागत रूप से करौली का हरदैनिया परिवार सेवा-पूजा करता है. यह मन्दिर बीरवास नामक गांव में पहाडी के ऊपर स्थित है. यहां देवउठनी ग्यारस को विशाल मेला भरता है. वहीं मंदिर की पहाड़ी के नीचे हनुमानजी का मंदिर भी है. कहते हैं कि हनुमान जी की प्रतिमा इसी स्थान से निकली थी, इसलिए यह पाताली हनुमान कहलाते हैं. पाताली हनुमान जी मंदिर पर मंगलवार और शनिवार को श्रद्धालुओं का जमावड़ा रहता है.

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मंदिर के पास स्थित है यदुवंशी सेना की छावनियां

ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार माता के मंदिर के पास ही यदुवंशी सेना की छावनी थी. जहां, आज भी अनेक मकान खंडहर स्थिति में बने हुए हैं. छावनी बीरवास नामक गांव में होने से इसको बीरवास नाम से ही जाना जाता है. समय-समय पर हुई लड़ाईयों में शहीद हुए वीर सैनिकों की स्मृति में इस क्षेत्र में अनेक छतरियां स्मारकों के रूप में बनी हुई है. वहीं पांचना नदी के पुल के पास से भी कुछ छतरियां देखी जा सकती हैं.

पांचना नदी में स्नान से होते रोग दुर

वहीं मेले मे आने वाले श्रद्धालु सर्वप्रथम पांचना नदी में स्नान करके अंजनी माता के दर्शन करते हैं. यहां की मान्यता है कि ऐसा करने से असाध्य रोग दुर हो जाते हैं. मन्दिर में कान की बीमारियों से पीड़ित लोग सरकंडे का तीर चढ़ाकर मनौती मागंते हैं.

रियासत काल से चला आ रहा है देव उठनी का मेला

देव उठनी का मेला रियासत काल से चला आ रहा है, जिसमें कुश्ती प्रतियोगिता का आयोजन भी होता था, जो आज भी चला आ रहा है. कुश्ती में ख्याति प्राप्त पहलवान भाग लेते हैं. प्राचीन काल में प्रतिवर्ष राजा की सवारी का जुलूस राजमहल से चलकर अंजनी मेले में पहुंचता था, जहां राज्य घोषित पहलवानों की कुश्तियां करवाई जाती थी.

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राजा भोमपाल के समय में हनुमान अखाड़े के उमरदीन एवं मिर्जा अखाड़े के भोलानाथ प्रमुख प्रतिद्वंदी पहलवान थे. वहीं पंजाब के सरदार बीसा सिंह करौली के नाम से सर्वत्र कुश्ती लड़ते थे. स्थानीय लोगों उन्हें टोपा वाले पहलवान कहते थे. अपने जुड़े की सुरक्षा के लिए ये टोपा पहनकर कुश्ती लडते थे. स्वयं राजा की मौजूदगी में कुश्तियां होती थी. विजयी पहलवानों को राजा द्वारा पुरस्कार दिए जाते थे.

पर्यटन का हब बनता मन्दिर

पांचना नदी से चारों तरफ से घिरा और त्रिकूट पर्वत की पहाड़ी पर स्थित यह मंदिर धार्मिक आस्था के साथ पर्यटन का हब बनता जा रहा है. इस स्थान पर लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं के साथ पर्यटक पहुंचते हैं.

मंदिर पहाड़ी स्थित होने से चारों तरफ से हरियाली से घिरा हुआ है. हिण्डौन सिटी से कैलादेवी आस्थाधाम जाने वाले पर्यटकों को यह अपनी तरफ आकर्षित करता है. मंदिर और हरियाली को देख पर्यटक यहां रुके बिना नहीं रह पाते हैं. चैत्रमाह और नवरात्री के समय लाखों की संख्या में कैलादेवी जाने वाले श्रद्धालु यहां पर दर्शनों के लिए आते हैं.

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