करौली. लॉकडाउन की वजह से प्रदेश के शासकीय और निजी स्कूलों में ऑनलाइन क्लास संचालन करने का निर्देश स्कूल शिक्षा विभाग ने दिया है. स्कूल शिक्षा विभाग के इस निर्देश ने निजी स्कूलों के संचालन का खतरा बढ़ा दिया है. छात्र ऑनलाइन क्लास ले सके, इसलिए स्कूल प्रबंधन का जूम एप का लाइसेंसी वर्सन लेना पड़ रहा है, जिसका खर्च लाखों में है. इस अतिरिक्त खर्च की वजह से निजी स्कूलों के संचालक बेहद परेशान हैं.
कोरोना संकट में स्कूलों पर संकट निजी स्कूल प्रबंधन के जिम्मेदारों का कहना है कि शिक्षा विभाग और राज्य सरकार स्वेच्छा से शुल्क देने वाले पालकों से फीस लेने का आदेश दें, ताकि समस्या का समाधान हो सके. स्कूल संचालक बताते हैं कि कोरोना संकट में लगाए गए लॉकडाउन के चलते बच्चों की शिक्षा का नुकसान तो हुआ ही है. साथ ही निजी विद्यालय के संचालकों को आर्थिक समस्या का सामना करना पड़ रहा है. पिछले सत्र की भी काफी फीस बकाया रह गई है. अभिभावक उस फिस को लौटाने में सक्षम नहीं हैं. आने वाले समय में भी नहीं लगता कि अभिभावक सही समय पर इसको लौटा पाएंगे. जिसके कारण विद्यालय में लगे हुए शिक्षकों को वेतन देने की समस्या पैदा हो गई है.
संचालक बताते हैं कि विद्यालय के लिए भौतिक साधन उपलब्ध करवाने पड़ते हैं, लेकिन जब स्कूल में पैसे आते ही नहीं हैं तो समस्या उत्पन्न हो गई है. स्कूल वाहनों की किस्त समय पर चुकता नहीं हो पा रही है.
बच्चों की फीस नहीं मिलने से शिक्षकों को सैलरी देना हुआ मुश्किल संचालकों ने कहा कि अगर समय से स्कूल खुल जाएं, तो हो सकता है कुछ निजात मिल सके. संचालकों का कहना है कि निजी विद्यालय संचालकों को सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं की जा रही है.
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वे बताते हैं कि ऑनलाइन क्लासेस बच्चों के स्वास्थ्य के लिए घातक है. उनका कहना है कि जल्द ही सरकार को गाइडलाइन कर स्कूल खोल देने चाहिए. जिससे आर्थिक संकट से जूझ रहे शिक्षकों को थोड़ी राहत मिल सके.
'80 प्रतिशत स्कूल बंद होने की कगार पर'
संचालकों ने बताया कि कोरोना महामारी के कारण स्कूल 3 महीने से बंद पड़े हैं. जिसकी वजह से अभिभावकों ने बच्चों की फीस भी जमा नहीं करवाई है. ऐसे में स्कूल के लिए काम करने वाले शिक्षकों और कर्मचारियों को वेतन कहां से दिया जाए?
संचालकों का कहना है कि अगर ऐसे ही चलता रहा तो निश्चित रूप से आने वाले समय में 80 प्रतिश स्कूल बंद हो जाएंगे. फर्क इतना सा पड़ा है कि अभी सरकार ने अभिभावकों को लिखित रूप से कोई नोटिस नहीं दिया है विद्यालय में फीस जमा कराएं. इसके अतिरिक्त नुकसान यह हुआ है कि गत वर्ष की 60-80 प्रतिशत फिस अभिभावकों पर अटकी पडी है.
ऑनलाइन क्लासेस से बच्चों पर पड़ता है बुरा असर संचालक बताते हैं कि अमूमन होता यह है कि परीक्षा समय में यह फीस मिल जाती है. लेकिन इस बार समय से परीक्षाएं नहीं हुई. जिससे अभिभावक गफलत में है. बोर्ड एग्जाम में भी सरकार ने गाइडलाइन जारी कर लिखा था कि बिना फीस लिए प्रवेश पत्र बच्चों को दे दिए जाएं. सरकार का आदेश है कि जिन बच्चों के पास फीस नहीं है, उनका प्रवेश पत्र रोका ना जाए. उनको प्रवेश पत्र दिया जाए. जिसके कारण बोर्ड के एग्जाम में भी अभिभावकों ने फीस जमा नहीं कराई है.
वहीं सरकार की तरफ से कोई स्पष्ट गाइडलाइन जारी नहीं हुई है. जिससे विद्यालय संचालक और अभिभावकों में टकराव की स्थिति पैदा हो गई है. तो दूसरी तरफ अब स्कूलों के अस्तित्व समाप्त होने का खतरा भी बेशक 100 प्रतिशत हो गया है.
स्कूल संचालकों ने बयां की अपनी स्थिति 'ऑनलाइन शिक्षा बच्चों के स्वास्थ्य के लिए घातक'
शिक्षकों का कहना है कि बच्चों मे शिक्षा की गुणवत्ता बनी रहे और शैक्षणिक स्तर में गिरावट ना आए, इसके लिए सरकार ने ऑनलाइन क्लासेस शुरू की. लेकिन ऑनलाइन क्लासेज के कुछ अच्छे परिणाम है तो वहीं कुछ खराब परिणाम भी हैं. ऑनलाइन क्लासेस की वजह से बच्चों को मोबाइल की लत लग जाती है. जिसके कारण उनकी आंखों पर दुष्परिणाम पड़ता हैं. कान में समस्या उत्पन्न होने का खतरा है. बच्चों मे फैट बढ़ने की संभावना भी है. वहीं दूसरी ओर बच्चों के दिमाग पर भी जोर पड़ता है.
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वहीं शिक्षकों का कहना है कि बच्चों के साथ फेस टू फेस टीचिंग और टॉकिंग की जाती है. उस जैसा प्रभाव ऑनलाइन टीचिंग का नहीं रहता है. ऑनलाइन क्लासेज में 11वीं और 12वीं के बच्चे फिर भी समझ सकते हैं. लेकिन जो नर्सरी या अपर नर्सरी कक्षा के बच्चे हैं उनके लिए ऑनलाइन क्लासेज उपयोगी साबित नहीं हो सकती.
स्कूल संचालकों को हो रहा भारी नुकसान 'कुछ पाबंदियों के साथ स्कूल खोलने के आदेश जारी करे सरकार'
शिक्षकों का कहना है कि कुछ पाबंदियों के साथ ही मगर स्कूलों को जल्द से जल्द खोला जाना चाहिए. जिससे बच्चों की शिक्षा की गुणवत्ता बनी रहे. ओर स्कूल संचालक आर्थिक संकट से उबर सकें.
शिक्षको ने सरकार को अपने सुझाव रखते हुए कहां की है. सरकार को गाइडलाइन में लंच को खत्म करके समय साढे तीन घंटे का कर देना चाहिए. शुरुआत में नवमी से 12वीं कक्षा तक विद्यालय खुले जाए. अभिभावक स्वयं बच्चों को विद्यालय में लेकर आएं, तो वो 100% अपने बच्चों का ध्यान भी रखेंगे. विद्यालय के सभी शिक्षक और संचालक माक्स को कवर करके रखें. बच्चों की टाइम टू टाइम स्क्रीनिंग की जाए. प्रार्थना, गेम, की एक्टिविटी पर रोक लगा दी जाएगी. इसके अलावा बच्चे स्वयं पानी की बोतल लेकर आए.