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Special : जल सहेजने के लिए शामलात यात्राएं, यहां जानिए इन वाटर लीडर्स की कहानियां - गांवों में पानी को सहेजने का काम

'जल है तो कल है'...का सपना साकार करने वाले राजस्थान के वाटर लीडर्स को सलाम. कुछ ऐसा ही नजारा शुक्रवार को जोधपुर में देखने को मिला, जहां 350 वाटर लीडर्स को सम्मानित किया गया. पानी बचाने वाले इन सभी की अपनी-अपनी कहानियां हैं जिनकी तारीफ खुद केंद्रीय जलशक्ति मंत्री कर चुके हैं.

Water Leaders of Rural Area
जल सहेजने के लिए शामलात यात्राएं

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Published : Nov 25, 2022, 7:51 PM IST

जोधपुर.जल संरक्षण के क्षेत्र में काम करने वाली संस्था उन्नती ने जोधपुर में आयोजित दो दिवसीय वाटर लीडर कन्वेंशन में ऐसे वाटर लीडर्स को सम्मानित किया जो गांवों में पानी को सहेजने का काम करते हैं. संस्थाओं के साथ मिलकर गांवों में शामलात पद्धति यानि कि सहकारिता के भाव के साथ जल एवं पर्यावरण के लिए काम करने वाले 350 वाटर लीडर्स को यहां सम्मानित किया गया. पानी बचाने वाले इन सभी की अपनी-अपनी कहानियां हैं. खास तौर से महिलाएं जिन्होंने जल सहेली बनकर गांवों में जागरूकता फैलाई और युवाओं ने तालाब में पानी आने के रास्ते साफ किए. केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने भी इन लीर्डस के कामों को तारीफ की है.

पूरे साल बहती है बरसाती नदी :दौसा के छज्जूलाल गुर्जर 17 सालों से करौली जिले में पानी के लिए काम कर रहे हैं. पानी की परेशानी होने से लोग डकैत बन गए थे. करौली के मासलपुर तहसील के गांवों में छज्जूलाल गुर्जर ने संस्थाओं के सहयेाग से काम शुरू किया. इसमें गांव वालों को भी शामिल करते हैं, उनको समझाते हैं. कुल खर्च का एक हिस्सा गांव वाले देते हैं, बाकी संस्थाएं देती हैं. ईटीवी भारत से बात करते हुए छज्जूलाल ने बताया कि सेरणी नदी जो सिर्फ बरसाती नदी थी, वह आज मासलुपर इलाके में अब 12 महीने बहती है. इसके आसपास हमने 300 तालाब एनीकट बनाए. बड़ी संख्या में पूरे क्षेत्र में पौधारोपण किया है.

क्या बोले वाटर लीडर्स, सुनिए...

तालाब विकसित करने के लिए बनाए प्लान : नागौर के धन्नाराम ने बताया कि नागौर में ज्यादातर वर्षा आधारित ही खेती होती है. हमारा प्रयास है कि पुराने तालाबों को पुर्नजीवित करें, उनका संरक्षण करें. जल सहेली समूह बनाकर (Rain Based Farming in Nagaur) उनको प्रतिनिधित्व दिया गया. साथ ही नरेगा से तालाब को विकसित किया जा सकता है. इसके प्रावधान भी किए गए हैं. तालाब में जिस भूमि से पानी आता है, उसे अंगोर कहते हैं. इसकी सफाई रखने के लिए युवाओं के साथ बैठकर योजनाएं बनाई. कैचमेंट के इलाके पर कोई कब्जा नहीं हो, इसके लिए भी जागरूकता बढ़ाई. तालाब के आसपास पेड़ लगाए गए. उनका संरक्षण किया गया. स्कूल के बच्चे इसके लिए समझें, इसके लिए भी काम किया.

ओरण यात्रा रैली से नाडियों का संरक्षण : जैसलमेर के सांवता गांव के सुमेर सिंह ने कहा कि गांव में तालाब के संरक्षण की जरूरत थी. नई पीढ़ी को जागरूक करने के लिए रैलियां निकालीं, ओरण यात्रा निकाली. तालाब व नाडियों के पास पेड़ लगाने के लिए प्रेरित किया. स्कूलों में पेड़ बांटे. हमने जैसलमेर क्षेत्र में कई संस्थाओं के साथ मिलकर कई नाडियों और तालाबों को नया रूप दिया है. गांव के युवाओं से आग्रह किया कि वे अपने तलाब की सोंचें. उनमें गंदगी, कचरा नहीं फैले इसके लिए लोगों को जागरूक करें.

पढ़ें :Bikaner Green Drive: परंपरागत जल स्रोत को बचाने की 'हरी भरी' मुहिम, युवाओं का भी मिल रहा साथ

जल सहेलियों ने किया जागरूक : मोहनगढ़ के मगाराम का कहना था कि शामलात यात्रा ने लोगों को बहुत जागरूक किया. शामलात का मतलब सभी लोगों को साथ लेकर उनका सहयोग लेना. ग्रामीणों को यह बताया कि वे सभी मिलकर काम करें. अकेला व्यक्ती कुछ नहीं कर सकता. चारागाह समितियां बनाईं, जिससे महिलाओं को जल सहेलियां बनाया, ताकि महिलाअेां को जल संरक्षण के प्रति जागरूक किया जा सके.

नियम बनाया, नाडी का पानी बिके नहीं : त्रिसोलिया पंचायत सिणधरी की ​भीखी देवी ने बताया कि हमें पता नहीं था कि नाडी के पानी बचाए कैसें? अपनी देहाती भाषा में बताया कि पहले नाडी का पानी दो से तीन माह हीचलता था. लेकिन नाडी में पानी बचाया तो लंबा चलेगा. इसके लिए नियम बनाया कि नाडी का पानी (Work Done for Water Conservation in Rajasthan) बाहर कोई नहीं ले जाएगा. यानी बेच नहीं सकता. हमारा प्रयास है कि हम अपने बच्चों के लिए पानी सहेजें.

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