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Shardiya Navratri 2023 : मारवाड़ के इन देवी मंदिरों में लगता है भक्तों का तांता, हर मुराद पूरी करती हैं 'मां'

शारदीय नवरात्रि आज से शुरू हो चुकी है. इस दौरान हम आपको मारवाड़ के उन मंदिरों के बारे में बता रहे हैं, जहां लोगों की विशेष आस्था जुड़ी हुई है. ये मारवाड़ के शक्तिपीठ भी माने जाते हैं. यहां जानें इन मंदिरों के बारे में.

Shardiya Navratri 2023
मारवाड़ के मंदिर

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Oct 15, 2023, 6:31 AM IST

जोधपुर. शारदीय नवरात्र आज से शुरू हो गए हैं. पूरे नौ दिन मां दुर्गा के मंदिरों में माता के 9 स्वरूपों की विशेष पूजा-अर्चना की जाएगी. इस दौरान मंदिरों में दर्शन के लिए भारी भीड़ भी उमड़ती है. मारवाड़ में आदिशक्ति के ऐसे कई मंदिर हैं, जहां श्रद्धालुओं का विशेष जुड़ाव है. इन मंदिरों में सदियों से माता की विशेष पूजा-अर्चना होने के साथ ही भक्तों की भीड़ उमड़ती रही है.

मारवाड़ में प्रमुख रूप से मेहरानगढ़ की चामुंडा माता, नाडोल की आशापूरा माता, तनोट की तनोट माता, भीनमाल की सुंधा माता व जसोल की भटियाणी माता मंदिर की मान्यता हर भक्त के लिए खास है. साल भर यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं. बता दें कि ये सभी मंदिर 500 से एक हजार साल पुराने हैं. समय के साथ ही इन मंदिरों में भक्तों की कतार लगातार बढ़ती ही रही है. इन मंदिरों के चमत्कार और महत्व को जानकर हर कोई नतमस्तक हो जाता है. आइये जानते हैं मारवाड़ के शक्तिपीठ माने जाने वाले इन मंदिरों के इतिहास, चमत्कार और धार्मिक पृष्ठभूमि के बारे में.

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मेहरानगढ़ की चामुंडा माता : जोधपुर की देवी मां चामुंडा का मंदिर मेहरानगढ़ दुर्ग में बना हुआ है. 500 साल से भी पुराने इस मंदिर में यूं तो हर दिन दर्शन के लिए लोगों का तांता लगा रहता है, लेकिन नवरात्र के नौ दिनों में दर्शन की महत्ता ही अलग है. मारवाड़ के दूर-दराज से लोग यहां दर्शन के लिए आते हैं. इस दौरान पूर्व राजपरिवार 9 दिनों तक मंदिर में प्रवेश के लिए विशेष इंतजाम करता है. बता दें कि ये परिहार वंश की कुलदेवी है, जिसे राव जोधा ने भी अपनी कुलदेवी माना. जिसके बाद से पूरे जोधपुर में घर-घर में देवी की पूजा होती है. कहा जाता है कि 1971 के भारत-पाक युद्ध में जोधपुर में भी दुश्मन सेना की ओर से बमबारी हुई थी. उस समय देवी ने चील बनकर भारतीय फौज और नागरिकों की रक्षा की थी. जोधपुर के राजपरिवार के ध्वज पर भी चील का निशान अंकित है. मान्यता है देवी हमेशा अपने राज्य की रक्षा करती हैं. नौ दिनों तक मेहरानगढ़ में सुबह 7 से शाम 5 बजे तक दर्शन की व्यवस्था की गई है.

आई माता बिलाड़ा

आई माता मंदिर बिलाड़ा : विश्वविख्यात आई माता का मंदिर जोधपुर के बिलाड़ा में स्थित है. यहां पर 550 वर्ष से लगातार एक जोत जल रही है. मान्यता है कि इस जोत से केसर निकलता है. सामान्यत: दीपक के ऊपर काला काजल जम जाता है, लेकिन यहां दीपक के ऊपर पीला रंग देखा जाता है, जिसे केसर कहा जाता है. इसलिए माता के दर्शन के साथ-साथ यहां जोत के भी दर्शन होते हैं. संगमरमर से बने इस मंदिर की भवन कला भी दर्शनीय है. मान्यताओं के अनुसार 1556 इस्वी में बने इस मंदिर के साथ यहां जोत जलाई गई थी. सभी तरह के उतार-चढ़ाव के बाद भी जोत निंरतर जल रही है. इस दीपक की बाती साल में एक बार आई पंथ के धर्मगुरु अपने हाथ से बदलते हैं. यह समय भाद्रपद मास की द्वितीया तिथि होती है. इस दिन मेले का भी आयोजन होता है.

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तनोट माता मंदिर : तनोट भारत-पाक सीमा पर जैसलमेर से करीब सवा सौ किमी की दूरी पर स्थिति है. यहां तनोट माता का विश्वविख्यात मंदिर है. इस मंदिर को बार्डर वाली माता के नाम से भी पुकारा जाता है. तनोट को भाटी राजपूत राव तनुजी ने बसाया था. तनोट माता आवड़ माता का रूप मानी जाती है. इस मंदिर की देखरेख भारतीय अर्द्धसैनिक बल बीएसएफ ही करता है. मंदिर से कुछ दूरी पर ही भारत की अंतरराष्ट्रीय सीमा और चौकी है. नवरात्र में बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं. बता दें कि भारत-पाकिस्तान के 1971 के युद्ध में पाकिस्तान ने यहां जबरदस्त बमबारी की थी, लेकिन माता ने पूरे इलाके की रक्षा की थी. इस भीषण हमले में एक भी बम नहीं फटा. कई बम मंदिर में आज भी रखे हुए हैं.

माता रानी भटियाणी, बालोतरा

माता राणी भटियाणी का मंदिर : बाड़मेर का भाग रहे बालोतरा जिला मुख्यालय से महज सात किमी दूर स्थित जसोल गांव में माता राणी भटियाणी का मंदिर है. भटियाणी माता को माजीसा के नाम से भी जाना जाता है. इस मंदिर की आस्था पूरे पश्चिमी राजस्थान में है.

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आशापूरा मंदिर नाडोल : पाली से करीब 70 किमी दूर आशापूरा माता का मंदिर है. यह चौहानों की कुलदेवी है. मान्यता है कि करीब 1080 वर्ष पूराने इस मंदिर में मांगी गई हर कामना देवी पूरा करती हैं. इसलिए इसका नाम आशापूरा पड़ा था. कहते हैं आशापुरा शाकम्भरी मां का ही रूप है. हर्ष के शिलालेख में बताया गया है कि नाडोल में मंदिर की स्थापना के साथ ही चौहान वंश की स्थापना सवंत 1030 के आस-पास हुई थी. नवरात्र में बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं.

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सुंधा माता मंदिर भीनमाल : भीनमाल से बीस किमी दूर पहाड़ियों पर सुंधा माता का मंदिर है. मारवाड़ में ये एक मात्र मंदिर है जहां रोपवे लगा हुआ है. सुंधा माता चामुंडा माता की रूप मानी जाती है. करीब 750 साल पहले संवत 1319 में चौहान शासक उदयसिंह के पुत्र चागिदेव ने मंदिर का निर्माण करवाया था. यह भी मान्यता है कि त्रिपुर राक्षस का वध करने के लिए आदि देव ने सुंधा पर्वत पर तपस्या की थी. इस मंदिर से महाराणा प्रताप का भी जुड़ाव रहा है. 1576 में हल्दीघाटी युद्ध के बाद उन्होंने अपने कष्ट का समय सुंधा माता की शरण में निकाला था.

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