जोधपुर. शारदीय नवरात्र आज से शुरू हो गए हैं. पूरे नौ दिन मां दुर्गा के मंदिरों में माता के 9 स्वरूपों की विशेष पूजा-अर्चना की जाएगी. इस दौरान मंदिरों में दर्शन के लिए भारी भीड़ भी उमड़ती है. मारवाड़ में आदिशक्ति के ऐसे कई मंदिर हैं, जहां श्रद्धालुओं का विशेष जुड़ाव है. इन मंदिरों में सदियों से माता की विशेष पूजा-अर्चना होने के साथ ही भक्तों की भीड़ उमड़ती रही है.
मारवाड़ में प्रमुख रूप से मेहरानगढ़ की चामुंडा माता, नाडोल की आशापूरा माता, तनोट की तनोट माता, भीनमाल की सुंधा माता व जसोल की भटियाणी माता मंदिर की मान्यता हर भक्त के लिए खास है. साल भर यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं. बता दें कि ये सभी मंदिर 500 से एक हजार साल पुराने हैं. समय के साथ ही इन मंदिरों में भक्तों की कतार लगातार बढ़ती ही रही है. इन मंदिरों के चमत्कार और महत्व को जानकर हर कोई नतमस्तक हो जाता है. आइये जानते हैं मारवाड़ के शक्तिपीठ माने जाने वाले इन मंदिरों के इतिहास, चमत्कार और धार्मिक पृष्ठभूमि के बारे में.
मेहरानगढ़ की चामुंडा माता : जोधपुर की देवी मां चामुंडा का मंदिर मेहरानगढ़ दुर्ग में बना हुआ है. 500 साल से भी पुराने इस मंदिर में यूं तो हर दिन दर्शन के लिए लोगों का तांता लगा रहता है, लेकिन नवरात्र के नौ दिनों में दर्शन की महत्ता ही अलग है. मारवाड़ के दूर-दराज से लोग यहां दर्शन के लिए आते हैं. इस दौरान पूर्व राजपरिवार 9 दिनों तक मंदिर में प्रवेश के लिए विशेष इंतजाम करता है. बता दें कि ये परिहार वंश की कुलदेवी है, जिसे राव जोधा ने भी अपनी कुलदेवी माना. जिसके बाद से पूरे जोधपुर में घर-घर में देवी की पूजा होती है. कहा जाता है कि 1971 के भारत-पाक युद्ध में जोधपुर में भी दुश्मन सेना की ओर से बमबारी हुई थी. उस समय देवी ने चील बनकर भारतीय फौज और नागरिकों की रक्षा की थी. जोधपुर के राजपरिवार के ध्वज पर भी चील का निशान अंकित है. मान्यता है देवी हमेशा अपने राज्य की रक्षा करती हैं. नौ दिनों तक मेहरानगढ़ में सुबह 7 से शाम 5 बजे तक दर्शन की व्यवस्था की गई है.
आई माता मंदिर बिलाड़ा : विश्वविख्यात आई माता का मंदिर जोधपुर के बिलाड़ा में स्थित है. यहां पर 550 वर्ष से लगातार एक जोत जल रही है. मान्यता है कि इस जोत से केसर निकलता है. सामान्यत: दीपक के ऊपर काला काजल जम जाता है, लेकिन यहां दीपक के ऊपर पीला रंग देखा जाता है, जिसे केसर कहा जाता है. इसलिए माता के दर्शन के साथ-साथ यहां जोत के भी दर्शन होते हैं. संगमरमर से बने इस मंदिर की भवन कला भी दर्शनीय है. मान्यताओं के अनुसार 1556 इस्वी में बने इस मंदिर के साथ यहां जोत जलाई गई थी. सभी तरह के उतार-चढ़ाव के बाद भी जोत निंरतर जल रही है. इस दीपक की बाती साल में एक बार आई पंथ के धर्मगुरु अपने हाथ से बदलते हैं. यह समय भाद्रपद मास की द्वितीया तिथि होती है. इस दिन मेले का भी आयोजन होता है.