जोधपुर.सदियों पहले से ही जल को देवता के रूप में पूजा जाता था और इसे संरक्षित करने की प्रथा शुरू हुई थी. राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र (Marwar region of Rajasthan) की बात करें तो राजा महाराजाओं के समय से ही जल को संरक्षित (water conservetion) करने के लिए कई तरह के उपाय किए जाते रहे हैं. बारिश का पानी संरक्षित (rain water conservation) कर जीवन चर्या के उपयोग में लाने के लिए काम में लिया जाता था.
मारवाड़ में बारिश की कमी (lack of rain) इसकी उपयोगिता को और बढ़ा देती है. इसमें से एक स्रोत झालरा भी रहा है. इसका मुख्य उद्देश्य ग्राउंड लेवल वॉटर (ground level water) को रिचार्ज करना होता है. लेकिन इसका पानी दूसरे सभी कामों में भी उपयोग में आता रहा है.
यह राजा महाराजाओं के समय शहर के भीतरी क्षेत्र में बनाए जाते थे ताकि शहर के लोगों को पानी के लिए दूर ना जाना पड़े. ऐसा ही एक 500 वर्ष से भी अधिक पुराना 'क्रिया का झालरा' जोधपुर के मेहरानगढ़ के तलहटी क्षेत्र में स्तिथ है.
महाराजा जसवंत सिंह की द्वितीय रानी जाड़ेची ने बनवाया-
इस झालरा का निर्माण जोधपुर के महाराजा जसवंत सिंह (Maharaja Jaswant Singh) की द्वितीय रानी जाड़ेची (Jodhpur Rani Jadechi) ने करवाया था. कहते हैं उस वक्त रानी जाड़ेची खुद भी यहां जाया करती थी. उस वक्त यह विशेष आकर्षण का केंद्र हुआ कहता था. कभी कभी यहां पर महाराजा जसवंत सिंह (Maharaja Jaswant Singh) भी घूमने के लिए आते थे.
कुछ समय तक इसकी देखरेख होती रही लेकिन समय के साथ ही इसकी हालत बिगड़ती रही. अब शहर में नहर का पानी आता है. लोगों में इसकी जरूरत कम हुई तो इसकी तरफ लोगों ने ध्यान देना भी बंद कर दिया. इसमें मछलियां मरने की वजह से पानी बदबूदार होता जा रहा है.
प्रशासन से मदद की मांग-
लॉकडाउन के दौरान क्षेत्र के युवाओं ने बीड़ा उठाया इसे साफ करने का और कड़ी मेहनत के बाद सफाई में जुट गए और कुछ दिन में ही इसकी सफाई कर दी गई. अब प्रशासन से मांग की जा रही है कि यहां जो पंप लगा हुआ है उसे शुरू किया जाए जिससे गंदा पानी बाहर निकले और यह झालरा अपने पुराने स्वरूप में लौट सके.