जोधपुर.राजस्थानी भाषा-साहित्य से जुड़ा महोत्सव अंजस का शनिवार को आगाज (Rajasthani language literature anjas Progarm) हुआ. इस कार्यक्रम के उद्घाटन कार्यक्रम में शिक्षा मंत्री बीडी कल्ला और राजस्थान फाउंडेशन के आयुक्त धीरज श्रीवास्तव शामिल हुए. कार्यक्रम के दौरान मंत्री बीडी कल्ला ने कहा कि राजस्थानी भाषा की मान्यता के लिए सबको एक होना पड़ेगा. सब एकजुट होकर काम करेंगे तो जरूर मान्यता मिलेगी. जिस दिन मान्यता मिलेगी तो उस दिन सोने के सूरज का उदय होगा.
उन्होंने कहा कि राजस्थानी भाषा से जुडे़ कार्यक्रम से युवाओं में राजस्थानी भाषा के प्रति जागरूता आएगी. फांउडेशन के आयुक्त धीरज श्रीवास्तव ने कहा कि फांउडेशन राजस्थानी भाषा को बढ़ावा देने के लिए काम कर रहा है. हम जल्द ही एक ऐप लांच करने वाले हैं, जिस पर राजस्थानी भाषा के गीत कविता गायन सब उपलब्ध होंगे. राजस्थानी भाषा सीखने के लिए ऑनलाइन कोर्स भी शुरू करेंगे. उर्दू भाषा के आयोजन करने वाले रेख्ता फाउंडेशन की ओर से राजस्थानी भाषा का प्रदेश में पहली बार इतना बड़ा आयोजन किया जा रहा है. इसको लेकर लोगों में भी उत्साह नजर आया. बड़ी संख्या में श्रोता सुनने के लिए पहुंचे. महोत्सव का समापन रविवार रात को होगा. इस महोत्सव के 25 सेशन में 100 से ज्यादा स्पीकर भाग ले रहे हैं.
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बीना काक बोलीं धारा प्रवाह राजस्थानी : महोत्सव में तीन अलग अलग स्टेज रखे गए हैं. जिन पर राजस्थानी से जुडे लोगों की चर्चाएं हुई. पूर्व मंत्री बीना काक ने राजस्थानी फिल्मों से जुड़े सेशन में कहा कि वह पंजाब में पैदा हुई थी. कश्मीर में ब्याही थी, लेकिन राजनीति राजस्थान से शुरू की, धारा प्रवाह राजस्थानी बोलते हुए काक ने कहा कि भाषा का अपना लगाव होता है. जब पहली बार चुनाव लड़ने आई तो समझ नहीं पाती थी, लेकिन धीरे-धीरे राजस्थानी भाषा पर पकड़ बन गई. उन्होंने राजस्थानी भाषा को समृद्ध भाषा बताया. उनके साथ अभिनेता रवि झांकल ने भी अपनी राजस्थानी में अपनी बात रखी.
लोढ़ा दिखे ठेठ मारवाड़ी अंदाज में : महोत्सव में साक्षात्कार के दो सेशन हुए, जिसका नाम रखा गया आम्ही साम्ही. इसमें आरजे रैक्स ने कवि व अभिनेता शैलेस लोढ़ा से बात की. लोढ़ा पूरी तरह से राजस्थानी रंग में बोले. उन्होंने कहा कि आज बच्चों को छत्तीस का मतलब पूछो तो कहते हैं क्या है? उन्हें थटी सिक्स ही पता है. हमें इसमें बदलावा लाना होगा. बच्चों को बताना होगा कि राजस्थानी हमारी मातृ भाषा है. उनका अपना इतिहास है. इसी तरह से कोंलबलिया डांसर गुलाबों के साथ किरण राजपुरोहित ने चर्चा की. जिसमें गुलाबों ने अपने अनुभव सुनाए.
2500 साल पुराना है राजस्थानी भाषा का इतिहास : राजस्थानी भाषा की परंपरा बहुत पुरानी परंपरा है. इसका इतिहास ढाई हजार साल पहले का है. इसके प्रमाण भी मौजूद हैं, जबकि हिंदी का इतिहास सिर्फ सवा सौ साल पुराना है. 2500 साल पुराने संस्कृत के कला व साहित्य व नाट्य के आदुग्रंथ में ओकारांत बहुल भाषा का प्रयोग करते हैं. सातवीं सदी के ग्रंथ वृति समुच्चय, आठवीं सदी के कोलेमाला ग्रंथ में मरूभाषा के नाम से उल्लेख है, लेकिन दुर्भाग्य है कि वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था इसका महत्व नहीं समझ पा रही है.
कार्यक्रम के दौरान राजस्थानी कवि डॉ. अर्जुनदेव चारण यह बात राजस्थानी कवि एवं नाटककार डॉ. अर्जुनदेव चारण ने अंजस महोत्सव में राजस्थानी भाषा के सेशन में हुए कही. उन्होंने कहा कि 1897 में अंग्रेजों को एक ज्ञापन दिया गया था कि नागरी लिपी में न्यायिक कार्य हो, जो एक लिपी थी. लेकिन बाद में षड़यंत्र पूर्वक भाषा बना दी गई. डॉ. चारण ने बताया कि हिंदी कोई भाषा नहीं थी. उसे कृत्रिम भाषा बनाया गया है, लेकिन इसके लिए तत्कालीन समृद्ध भाषाओं को हिंदी की बोली घोषित कर दी गई. यह एक प्रकार का षडयंत्र था. जिसका नुकसान राजस्थानी, भोजपुरी, बृज जैसी भाषाओं को उठाना पड़ रहा है. डॉ. चारण ने कहा कि यह आयोजन हमारे आंदोलन को मजबूत करेगा, जिससे सरकार इस पर ध्यान दे राजस्थनी को मान्यता के साथ साथ प्राथमिक स्तर पर पाठ्यक्रम में शामिल करें.
छलावा है नई शिक्षा नीति में मातृभाषा : नई शिक्षा नीति और राजस्थानी भाषा के सेशन में आईएएस जितेंद्र सोनी व राजस्थानी साहित्याकार सीपी देवल, डॉ. दिनेश गहलोत व जयश्री पेरिवाल शामिल हुए. सीपी देवल ने सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हुए कहा कि स्थानीय भाषा को महत्व देने की बात कही गई है. इससे राजस्थानी को ही नुकसान होगा, क्योंकि स्थानीय स्तर पर हिंदी बोलते हैं. राजस्थानी को मान्यता नहीं है.
उन्होंने कहा कि यह सिर्फ आपको धोखा देना चाहते हैं. देवल ने कहा कि राजस्थानी इसलिए आगे नहीं बढ़ी कि तत्कालीन समय जब भाषा की मान्यता को लेकर बात हुई तो कोई नुमाइंदा नहीं पहुंचा. उसके बाद जो लोग शासन चला रहे थे उनको पता था कि राजस्थानी को मान्यता मिली तो हम राज कैसे कर पाएंगे, क्योंकि वे राजस्थान की संस्कृति से जुड़े नहीं थे. अगर मायड भाषा राजभाषा होती तो वे काम नहीं कर पाते. आईएएस जितेंद्र कुमार सोनी ने अपनी पूरी बात राजस्थानी में कहते हुए महात्मा गांधी के व्यक्त्व दोहराते हुए कहा कि बालक को मातृ भाषा वंचित करना सबसे बड़ा अपराध है.
ऋग्वेद में राजस्थानी वर्ण शब्दों का उल्लेख : राजस्थानी भाषा के जानकार एवं साहित्यकार राजेंद्र सिंह बारहठ का कहना है कि संसार की सबसे पुरानी पुस्तक ऋग्वेद की पहली ऋचा में ही राजस्थानी वर्ण का उल्लेख है. बारहठ का दावा है कि ऋग्वेद की रचना सरस्वती नदी के किनारे हुआ था. सरस्वती नदी राजस्थान में बहती थी. इसी तरह से कई शब्दों व वर्णों के इतिहास से पता चलता है कि राजस्थानी भाषा का एक समृद्ध इतिहास है. बारहठ ने कहा कि राजस्थानी को लेकर चल रहा आंदोलन एक दिन जरूर सफल होगा.