जोधपुर. लूणी का नाम सामने आते ही ध्यान में लूणी नदी और रसगुल्ले आ जाते हैं. कभी प्रदेश की प्रमुख नदी रही लूणी अब पूरी तरह से बरसाती नदी बनकर रह गई है. यही हालात कमोबेश लूणी रेलवे स्टेशन पर बिकने वाले रसगुल्ले का भी है, जो धीरे-धीरे लोगों से दूर हो रहा है, लेकिन इस क्षेत्र के राजनीतिक नेतृत्व ने कभी भी लूणी की पहचान को बचाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया. दरअसल, जोधपुर ग्रामीण जिले की महत्वूपर्ण लूणी विधानसभा सीट बरसों तक कांग्रेस की परंपरागत सीट रही है. यहां से अब तक 11 बार कांग्रेस जीती है. रामसिंह विश्नोई सात बार विधायक रहे हैं तो वहीं, भाजपा को तीन बार सफलता मिली है. पहली बार जसवंत सिंह विश्नोई ने 1993 में जीत दर्ज की थी. उसके बाद दो बार जोगाराम जीते. पिछले चार चुनाव का विश्लेषण बताता है कि यहां हर बार मुकाबला त्रिकोणीय होता जा रहा है.
इस बार दोनों कांग्रेस और भाजपा के लिए राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी सबसे बड़ी चुनौती बन सकती है. जाट, राजपूत, विश्नोई, कुम्हार व पटेल बाहुल्य इस क्षेत्र में इन तीनों जाति के उम्मीदवार ही मैदान में उतरते हैं. कांग्रेस लगातार विश्नोई पर दांव खेलती आई है तो भाजपा ने गत चार चुनाव में पटेल को उतारा है. इस बार यहां दोनों दलों से जाट प्रत्याशी दावे कर रहे हैं. दावा किया जा रहा है उनके सर्वाधिक मत हैं.
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कौन बदले चेहरा -पांच बड़ी जातियों के लगभग बराबर मतों वाले इस विधानसभा क्षेत्र के लिए कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों में चेहरा बदलने की मांग चल रही है, लेकिन पहल कौन करे? कांग्रेस बरसों से एक ही परिवार से उम्मीदवार बना रही है. भाजपा भी कांग्रेस के नक्शे कदम पर है. यही कारण है कि इस बार जाट यहां बिग फैक्टर बनकर उभर रहे हैं. दोनों प्रमुख दल चेहरा नहीं बदलेंगे तो अबकी रालोपा भारी पड़ सकती है. हालांकि इसके लिए रालोपा को भी कई वर्गों से समीकरण बैठाने होंगे, क्योंकि यहां पर जाट व राजपूत दोनों जातियां निर्णायक स्थिति में हैं. यहां बनने वाले समीकरण का असर पूरे जिले में देखने को मिलेगा.
2003 से 2018 तक के जानें सियासी हाल
2003 :2003 में कांग्रेस ने परंपरागत रूप से रामसिंह विश्नोई को मैदान में उतारा था. मुकाबला चतुष्कोणीय हुआ. इस मुकाबले में रामसिंह विश्नोई को 37574 और भाजपा के जोगाराम पटेल को 36218 मत मिले थे. विश्नोई सिर्फ 1356 मतों से चुनाव जीते थे. दो निर्दलीय हनुमान विश्नोई को 20137 व जगदीश को 13793 मत मिले. इन्होंने इस मुकाबले को रोचक बनाया था. 2005 रामसिंह विश्नोई का निधन हो गया. उपचुनाव में काग्रेस ने विश्नोई के बेटे मलखान सिंह को टिकट दिया. मुकाबला फिर जोगाराम पटेल से हुआ था. मलखान सिंह को विश्नोई को संवदेनाओं को फायदा नहीं मिला और वो चुनाव हार गए. इस मुकाबले में पटेल को 52363 व मलखान सिंह को 48004 मत मिले थे.