जोधपुर.कांग्रेस में हमेशा ही आलाकमान की चलती आई है. विधायक हो या मंत्री सभी आलाकमान के फैसले को मानते आए हैं, लेकिन ऐसा पहली बार हुआ कि आलाकमान के समक्ष शर्तें रखी गई हो या फिर कह सकते हैं कि आलाकमान की बातों को नकार दिया गया है. ऐसा करने वाले सभी विधायक मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सिपाहसालार हैं. वहीं, इस घटना पर ओसियां विधायक दिव्या मदेरणा (Osian MLA Divya Maderna) ने सूबे की गहलोत सरकार पर हमला किया. विधायक ने ट्विट कर आलाकमान के प्रति वफादारी दिखाने वालों को आइना दिखाया है.
मामले में सियासी जानकारों का कहना है कि इस बार अशोक गहलोत के खिलाफ एक लाइन का प्रस्ताव जाना था, लिहाजा उनके इशारे पर योजनाबद्ध तरीके से उनके समर्थक खेला कर रहे हैं. इधर, दिव्या मदेरणा ने (MLA Divya Maderna targeted Gehlot) ट्विट कर साल 1998 की याद दिलाई. ट्विट में दिव्या ने उनके दादा व कांग्रेस के दिग्गज नेता परसराम मदेरणा की सीएम पद की दावेदारी वाले घटनाक्रम की यादों को ताजा किया.
दिव्या ने दिलाई 1998 की याद दिव्या ने लिखा कि साल 1998 में पीसीसी में एक लाइन का प्रस्ताव बोलकर पारित किया गया था. जिसमें कहा गया था कि आलाकमान का निर्णय (Gehlot is opposing the high command) सबको मान्य होगा. ऐसे में ज्यादातर विधायक उनके पक्ष में थे, लेकिन उन्होंने सबको बुलाकर सख्ती से कह दिया था कि विद्रोह का एक शब्द भी नहीं सुनना चाहता. ऐसे में खुद मदेरणा आगे आए और उन्होंने कहा था कि उन्हें भी आलकमान का निर्णय कुबूल होगा.
दिव्या ने अपने ट्विट में आगे लिखा कि परसराम मदेरणा जिस मिट्टी के बने थे, वह मिट्टी आज के दौर में नहीं मिलती. उनके रग-रग में ,खून में, आत्मा में सिर्फ व सिर्फ कांग्रेस और आलाकमान के प्रति वफादारी थी. उन्होंने आखिरी सांस तक अपनी वफादारी निभाई थी. राजस्थान की राजनीति में कोई भी व्यक्ति परसराम मदेरणा नहीं हो सकता. गौरतलब है कि रविवार को कांग्रेस के प्रभारी और पर्यवेक्षक विधायकों से रायशुमारी के लिए आए थे, लेकिन विधायक उनसे मिलने की बजाय विधानसभा अध्यक्ष को इस्तीफा सौेंप आए.
इसे भी पढ़ें - पायलट की राह में रोड़ा बने सीएम गहलोत, दांव पर राष्ट्रीय अध्यक्ष पद और मुख्यमंत्री की कुर्सी
इस बार प्रस्ताव गहलोत के खिलाफ :वरिष्ठ पत्रकार कमल श्रीमाली ने कहा कि आज तक कांग्रेस में आलाकमान ही सबकुछ तय करता आया है. 1998 में परसराम मदेरणा का नाम सीएम की रेस में सबसे आगे था, लेकिन वे आलाकमान के निर्णय के सामने झुक गए थे. गत चुनाव में भी सचिन पायलट का नाम आगे था, पर आलाकमान के निर्णय पर सभी ने सहमति जताई. इस बार खुद जब अशोक गहलोत की बार आई तो उन्होंने दबी जुबान विरोध की आग को हवा देने का काम शुरू कर दिया है.
वरिष्ठ पत्रकार कमल श्रीमाली सीएम गहलोत के शहर में जिलाध्यक्ष व कमेटी के लिए भी उनके नाम का एक लाइन का प्रस्ताव जाता है, लेकिन अब जब सचिन पायलट के पक्ष में प्रस्ताव जाना है तो उसका विरोध हो रहा है. आज जो लोग विद्रोह कर रहे हैं, वो बिना गहलोत की सहमित के कुछ कर ही नहीं सकते हैं. ऐसे में इसके खिलाफ कांग्रेस नेतृत्व को सख्त रूख अख्तियार करना चाहिए और अगर पार्टी ऐसा नहीं करती है तो फिर आगामी चुनाव में उसे भारी नुकसान झेलना पड़ सकता है.