नव्या को 53 दिन में मिला नया जीवन जोधपुर.उमेद अस्पताल में सात माह से भी पहले जन्मी एक बच्ची को डॉक्टरों और नर्सेज की मेहनत से नया जीवन मिला है. जन्म के समय महज 750 ग्राम की नव्या को 54वें दिन मंगलवार को डिस्चार्ज किया गया, तब उसका वजन पौने 2 किलो था. 53 दिन तक नर्सरी के इनक्यूबेटर, वार्मर में रही बच्ची को बचाने के लिए शिशुरोग विभाग के डॉक्टरों ने भी पूरी मेहनत की, जो रंग लाई. खास बात यह भी है कि अस्पताल में 54 दिन तक चले उपचार के लिए परिजनों का एक रुपए खर्च नहीं हुआ. बच्ची का पूरा उपचार चिंरजीवी योजना के तहत हुआ.
अस्पताल अधीक्षक डॉ. अफजल हकिम ने बताया कि अस्पताल की नर्सरी में बड़ी संख्या में प्रीमैच्योर बच्चे आते हैं. सात माह से कम समय के नवजात को बचाना बहुत चुनौतिपूर्ण होता है. इसमें डॉक्टर्स, नर्सेज के अलावा अभिभावकों की इच्छा शक्ति भी महत्वपूर्ण होती है. उपचार की टीम में डॉ. जेपी सोनी, डॉ. हरिश मौर्य, डॉ. नितेश सहित विभाग के रेजिडेंट डॉक्टर और नर्सेज शामिल थे.
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इतना चुनौतीपूर्ण था उपचार :नर्सरी के प्रभारी और आचार्य डॉ. जेपी सोनी ने बताया कि 17 नवंबर को 28 से भी कम सप्ताह की इस बच्ची के जन्म लेने के तुरंत बाद नर्सरी में लाया गया था. उसकी लंग्स सोनोग्राफी की, जिसमें पता चला कि बच्ची बहुत ज्यादा कमजोर है. दिमाग की सोनोग्राफी में भी परेशानी सामने आई तो उसका उपचार दिया गया. लंग्स के लिए जन्म के एक घंटे बाद ही तुरंत सरफेक्ट इंजेक्शन शुरू किया गया, जिससे संक्रमण नहीं फैले. इसके बाद बच्ची को वेंटिलेटर पर रखा गया. तीन दिन बाद सीपेप पर खा गया. धीरे-धीरे उसे नली से दूध दिया गया. 14वें दिन एंटीबायोटिक बंद की गई. इसके बाद उसके वजन की हर दिन मॉनिटरिंग की गई. 47 दिन बाद जब वजन डेढ़ किलो पार हुआ तो चम्मच से दूध शुरू किया गया. 53 दिनों में कई ऐसे मौके आए जब स्थितियां चुनौतिपूर्ण भी बनीं. उन्होंने बताया कि 7 माह से समय और इतने कम समय में जन्में बच्चों को बचाना काफी चैलेंजिंग होता है.
पहली संतान के लिए सुमन ने की तपस्या :नागौर जिले के बोरवा निवासी नरेंद्र और सुमन की यह बच्ची पहली संतान है. इसका जन्म 17 नंवबर को होने के तुरंत बाद स्थिति को देखते हुए नर्सरी में शिफ्ट किया गया. डॉ. सोनी ने बताया कि बच्ची की मां ने भी पूरी तपस्या की. डॉक्टरों के सभी निर्देश की पालना की. बच्ची में जब थोड़ा सुधार हुआ तो उसे मां का दूध देने के लिए हर दो घंटे में बुलाया जाता था. नर्सरी की नर्सिंग प्रभारी ललिता सोलंकी का कहना था कि इस बच्ची के लिए सभी ने दिन रात मेहनत की. डॉ. हरिश मौर्य ने बताया कि बच्ची के जीने की जीजीविषा ने सबको प्रेरित किया.
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उमेद अस्पताल में दो नर्सरी :पूरे पश्चिमी राजस्थान में मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य केंद्र के रूप में उमेद अस्पताल की अपनी अलग पहचान है. 9 दशक से चल रहे इस अस्पताल की न्यू बोर्न केयर यूनिट में सरकार ने सभी तरह के आधुनिक उपकरण उपलब्ध करवाएं हैं. नर्सरी में बढ़ते दबाव के चलते अस्पताल प्रबंधन ने दूसरे अस्पताल में जन्म लेने वाले गंभीर नवजात के लिए भी अलग नर्सरी बनाई है. यही कारण है कि पूरे संभाग के अलावा जोधपुर के निजी और एम्स जैसे अस्पताल से भी यहां बच्चे रेफर होकर आते हैं. यहां पर ऐसे नवजात की आंखों और सुनने की क्षमता की स्क्रिनिंग भी होती है.