फलोदी (जोधपुर).रक्षाबंधन का त्योहार पालीवाल ब्राह्मण समाज आज भी नहीं मनाता है. इस संबंध में शिक्षक नेता हरदेव पालीवाल मंडला खुर्द और इतिहासकार ऋषिदत पालीवाल ने बताया कि परिहार वंश के शासक लक्ष्मण राव ने अपने गौड़ वंश के गुरु को विक्रम संवत 534 ईस्वी सन 477 में पाली नगर एक संकल्प पर दान में दिया था. जिसके बाद गौड़ ब्राह्मण वंश के लोग पाली नगर में आकर बस गए. जिसके बाद उनके दूसरे गौत्र भाई और रिश्तेदार भी आकर पाली में रहने लगे और धीरे-धीरे इनकी संख्या बढ़ती गई.
इतिहासकार ऋषिदत ने बताया कि भारत में मुस्लिम साम्राज्य 1175 ईस्वी से 1206 के बीच रहा है और उससे पहले मोहम्मद गौरी और गजनवी का शासन काल रहा था. भारत में मुगल साम्राज्य की नींव 1526 ईस्वी में शुरू हुई. जिसका संस्थापक बाबर था. खिलजी वंश के संस्थापक जलालुद्दीन फिरोजशाह 70 वर्ष की आयु में दिल्ली का शासक बना, जो 1290 से 1296 ईस्वी तक खिलजी वंश का शासक रहा. खिलजी वंश के लोग अफगानिस्तान के खिलजी क्षेत्र के निवासी थे. इसलिए यह खिलजी वंश के शासक कहलाए.
पालीवाल समाज नहीं मनाता रक्षाबंधन जलालुद्दीन खिलजी ने गुलाम वंश के अंतिम शासक समसुद्दीन की 1290 में हत्या कर दिल्ली का शासन अपने कब्जे में किया. जिसके बाद 1292 ईस्वी में जलालुद्दीन खिलजी ने मारवाड़ के रणथंभौर और मंडोर के किलो पर आक्रमण किया. इसी समय जलालुद्दीन खिलजी ने पाली नगर की संपन्नता को देख कर उसे लूटने के लिए ईस्वी सन 1292 विक्रम संवत 1348 में आक्रमण किया.
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जिस समय राठौड़ वंश के शासक सिहा और उनके पुत्र आस्थान पालीवाल ब्राह्मणों की रक्षा के लिए वचनबद्ध थे. जलालुद्दीन खिलजी के आक्रमण से पाली नगर तहस-नहस हो गया और यहां रहने वाले गौड़ ब्राह्मण अपने शासक आस्थान के साथ इन हमलावरों से लड़ाई के लिए मैदान में आए और हजारों की संख्या में गौड़ ब्राह्मण पालीवाल वीरगति को प्राप्त हुए.
जिसके बाद पाली नगर में रहने वाले ब्राह्मण अपने आपको सुरक्षित महसूस नहीं कर सके. खिलजी आक्रमणकारियों ने पालीवालों के पाली नगर स्थित पीने के पानी के जल स्रोतों में गोवंश को मार कर डाल दिया. जिससे पेयजल स्रोत अपवित्र होने से भी ब्राह्मणों ने खुद को धार्मिक रूप से भी असुरक्षित महसूस किया.
इस आक्रमण के समय श्रावणी पूर्णिमा का रक्षाबंधन का त्योहार भी आया और रक्षाबंधन के त्योहार के दिन ही पालीवाल ब्राह्मण अपने पूजा-कर्म में भी लगे हुए थे. रक्षाबंधन के दिन बड़े स्तर पर हुए नरसंहार से ब्राह्मणों ने अपने धर्म और जाति स्वाभिमान को कायम रखने के लिए पाली नगर को छोड़ना उचित समझा. जिसके बाद वह रक्षाबंधन के दिन पाली नगर को छोड़कर भारत के विभिन्न क्षेत्र जैसलमेर, गुजरात सहित अन्य जगह जाकर बस गए.
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पूर्वजों के बलिदान की याद में नहीं मनाते रक्षाबंधन
रक्षाबंधन के त्योहार के दिन पाली नगर को छोड़ने के कारण ही पालीवाल ब्राह्मण रक्षाबंधन का त्योहार नहीं मनाते हैं. इतिहासकार ऋषिदत पालीवाल ने यह बताया कि पालीवाल समाज के पंडित शिव नारायण ने भी अपनी पुस्तक में बताया कि अंग्रेज इतिहासकारों ने भी पालीवाल ब्राह्मणों को सर्वोच्च ब्राह्मण बताया है. उन्होंने तो यहां तक भी लिखा है कि इन पालीवाल ब्राह्मणों ने मेवाड़ में बसे पालीवालों के साथ बहुत कम व्यवहार रखा.
यही कारण है कि रक्षाबंधन से पूर्व जिन ब्राह्मणों ने पाली को छोड़कर किसी अन्य स्थान पर बसना शुरू किया उनके वंशज रक्षाबंधन मनाते है. लेकिन पाली नगर के आक्रमण के बाद जिन ब्राह्मणों ने पाली को छोड़ा वह गौड़ पालीवाल ब्राह्मण आज भी भारत के किसी भी हिस्से में रक्षाबंधन का त्योहार अपने पूर्वजों के बलिदान की याद में नहीं मनाते है.
वर्तमान में गौड़ वंश के पालीवाल ब्राह्मण अपने पूर्वजों की याद में रक्षाबंधन के दिन तर्पण का कार्यक्रम करते हैं और उनकी आत्मा की शांति के लिए ईश्वर से मंगलकामना करते है. इस याद को बनाए रखने के लिए पाली सेवा संस्थान द्वारा भी पूर्वजों की नगरी पाली में पालीवाल धाम का निर्माण करवाया जा रहा है. प्रतिवर्ष पूरे भारत के पालीवाल ब्राह्मण आकर प्रतीक स्वरूप अपने पूर्वजों का तर्पण भी करते है. ताकि वर्तमान पीढ़ी अपने पूर्वजों के इतिहास को समझकर उससे प्रेरणा ले सके.