जोधपुर.पाकिस्तान से प्रताड़ित होकर भारत आने वाले हिंदुओं का सबसे बड़ा ठिकाना पश्चिमी राजस्थान है. इसमें भी जोधपुर में भारी संख्या में पाक विस्थापित रह रहे हैं. हजारों की संख्या में पाकिस्तान से आए हिंदुओं को नागरिकता का इंतजार है, लेकिन सरकारी लाल फीताशाही की सुस्त चाल और नियमों की बेड़ियों में इनकी नागरिकता की आस जकड़ कर रह गई है. हालांकि, जिला कलेक्टर के मार्फत नागरिकता देने का प्रावधान है, लेकिन नियम और दस्तावेजों की बाध्यता बड़ी बाधा है. यही कारण है कि तीन साल में जोधपुर में सिर्फ 822 विस्थापितों को ही नागरिकता मिल सकी है.
नियमानुसार मिले नागरिकता :वहीं, विस्थापित चाहते हैं कि कैंप लगाकर उन्हें नागरिकता दी जाए. विस्थापितों का कहना है कि जो लोग यहां कम से कम 7 साल और अधिकतम 12 साल से रह रहे हैं, उन्हें नियमानुसार नागरिकता मिलनी चाहिए. नियम है कि जिनके माता-पिता का जन्म 1947 से पहले भारत में हुआ था, उनको भारत आने के सात साल बाद नागरिकता दी जाती है. 1947 के बाद वालों को 12 साल बाद नागरिकता मिलती है. फिलहाल पश्चिमी राजस्थान में करीब 40 हजार ऐसे विस्थापित हैं, जो नागरिकता की आस में बैठे हैं.
पासपोर्ट नवीनीकरण बनी बड़ी परेशानी :भारत सरकार के गृह मंत्रालय के नोटिफिकेशन में नागरिकता का आवेदन करने वाले को अपना नवीनतम पाकिस्तानी पासपोर्ट लगाना होता है, लेकिन लंबे समय से भारत में लॉन्ग टर्म विजा पर रहने वाले लोगों के पासपोर्ट खारिज हो चुके हैं. जिन्हें नवीनीकरण करवाने के लिए पाकिस्तानी दूतावास में जाकर फीस चुकानी होती है. खुद की नागरिकता ले चुके दिलीप कुमार का कहना है कि बच्चे के पासपोर्ट रिन्यू के लिए पाक दूतावास लोगों को चक्कर कटवाता रहता है. इसी तरह से भेराराम के 10 पासपोर्ट हैं, जिनके लिए कम से कम 30 से 40 हजार नवीनीकरण का खर्चा है, जिसका भुगतान उनके लिए मुश्किल है.
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