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जोधपुर: कृषि विज्ञान केंद्र में किसानों को दिया गया Online प्रशिक्षण, इन अहम मुद्दों पर हुई चर्चा

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Published : Jun 25, 2020, 4:00 PM IST

जोधपुर के काजरी स्थित कृषि विज्ञान केंद्र में गुरुवार से किसानों के लिए 2 दिवसीय ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किया गया. गुरुवार को प्रशिक्षण के दौरान किसानों को शुष्क क्षेत्र में फलदार पौधों का रोपण करने को लेकर किसानों ने जानकारी दी. जिसमें मुख्यत: अनार, बेर, गुंदा और खजूर के पौधों बारे में बताया गया.

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किसानों को ऑनलाइन प्रशिक्षण

लूणी (जोधपुर).केंद्रीय शुष्क अनुसंधान संस्थान, काजरी कृषि विज्ञान केंद्र में गुरुवार से किसानों के लिए दो दिवसीय ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किया गया है. इस ऑनलाइन प्रशिक्षण के दौरान किसानों को शुष्क क्षेत्र में फलदार पौधों का रोपण करने के लिए कृषि वैज्ञानिक जानकारी दे रहे हैं. प्रशिक्षण के दौरान गुरुवार को जोधपुर संभाग से ओसियां, तिंवरी, मथानिया, लूणी से किसानों ने फलदार पौधों के बारे में जानकारी ली गई. जिसमें अनार, बेर, गुंदा, खजूर और विभिन्न फलदार पौधों को लगाने के बारे में बताया गया.

कृषि वैज्ञानिक डॉ. हरिदयाल ने बताया कि गुंदे की पैदावार के लिए 'मरुस्थली समृद्धि' सबसे अच्छी वैरायटी है. 3 साल बाद ही इसकी भरपूर मात्रा में पैदावार होने लगती है. जिससे किसानों को लाभ मिलेगा. साथ ही अनार की खेती के लिए 'भगवा' और 'जालौर शीतलस' उत्तम वैरायटी हैं. दोनों किस्मों में कम समय में ही फल लगना शुरू हो जाता है. ढाई साल में ही किसान इसकी भरपूर मात्रा में पैदावार ले सकते हैं, साथ ही कम पानी में इसका उत्पादन हो जाता है.

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वहीं, कृषि वैज्ञानिक डॉ कुसुम लता ने बताया कि बेर की खेती में 10 तरह की वैरायटी होती है. जिसमें 'काजरी गोला बेर' सबसे महत्वपूर्ण है और इसकी पैदावार 3 साल बाद शुरू हो जाती है. दिसंबर से जनवरी के मध्य इसकी पैदावार भरपूर मात्रा में होती है. इसी के साथ ही 'उमराव बेर' भी अच्छी होती है. इसकी फरवरी से मार्च में भरपूर मात्रा में पैदावार होती है. यह बड़े और गोले आकार की तरह होती है, जिसकी बाजारों में 50 से 60 रुपए प्रति किलो की कीमत मिलती है.

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साथ ही डॉ. लता ने बताया कि 'सेव बेर' की जनवरी और फरवरी के मध्य पैदावार होती है. इसकी साइज में काफी बड़ी होती है जो बाजार में 70 से 80 रुपए प्रति किलो भाव में बिकती है. इसी के साथ ही ऑनलाइन प्रशिक्षण के दौरान खजूर की खेती की भी जानकारी दी गई. वहीं, प्रशिक्षण के दौरान विभिन्न प्रकार की खाद बीज और दवाइयों के बारे में भी जानकारी दी गई.

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