जोधपुर.ओबीसी आरक्षण की विसंगति को लेकर सर्वाधिक मुखर वो जाट नेता हो रहे हैं, जो मारवाड़ से आते हैं. इसकी वजह यह है कि मारवाड़ की राजनीति में ओबीसी वोट बैंक सबसे बड़ा निर्णायक फैक्टर होता है. जिसके चलते (Jat Leaders on OBC Reservation) हर कोई अपना कद बढ़ाने में लगा है. पूर्व मंत्री हरीश चौधरी ने इसकी शुरुआत की, इसके बाद ओसियां विधायक दिव्या मदेरणा ने इसका समर्थन किया. हाल ही में रालोपा सांसद हनुमान बेनीवाल भी इसमें कूद गए. सब इसका श्रेय लेना चाहते हैं.
ऐसे में क्या आने वाले समय में इस मुद्दे पर यह सभी धुर विरोधी एक होंगे ? ऐसी संभावना इसलिए है कि जब बुधवार को हरीश चौधरी ने कहा था कि वे अपनी लड़ाई लड़ लेंगे, इस मुद्दे पर राजनीति नहीं करें. इसके बाद बेनीवाल के ट्विटर हैंडल पर सोमवार को जो ट्वीट किए गए थे वो नजर नहीं आए हैं. जबकि इससे पहले बेनीवाल ने हरीश चौधरी द्वारा शुरू किए गए आरक्षण के आंदोलन की मंशा पर सवाल उठाया. बेनीवाल ने सोशल मीडिया के माध्यम से चौधरी पर हमला बोला. जिसके बाद चौधरी और बेनीवाल के बयानों से तो आपस में संघर्ष की स्थिति भी बन गई थी.
चौधरी ने अपील भी की और जवाब भी दिया : हरीश चौधरी ने बायतू में आयोजित एक सभा में हनुमान बेनीवाल से अपील करते हुए कहा कि इस मुद्दे पर राजनीति मत करो. यह किसी जाति नहीं, पूरे ओबीसी वर्ग का मामला है. ओबीसी आरक्षण में विसंगतियों में विवाद व राजनीति कर मुद्दे को भटकाने व कमजोर करने के लिए साजिश का हिस्सा मत बनो. हम राजनीतिक लड़ाई दूसरे तरीके से लड़ लेंगे. यह प्रदेश के लाखों युवाओ के भविष्य का सवाल है. साथ ही हनुमान बेनीवाल द्वारा जाट आरक्षण आंदोलन के समय चौधरी को लेकर उठाए गए सवाल का जवाब देते हुए कहा कि जाट आरक्षण के समय जो अगुवाई कर रहे थे, उनमें विजय पूनिया, राजाराम मील, एडवोकेट डालूराम चौधरी व सोनाराम थे. उनसे पूछना कि हरीश चौधरी उस दौरान विरोध में था या पक्ष में. गलत-सही तय करना लोकतंत्र में हर किसी को अधिकार है.
हमारी नहीं बनती तो नहीं बनती : बायतू में हरीश चौधरी ने आरक्षण आंदोलन को लेकर 30 सितंबर को की गई घोषणा पूरी नहीं होने को लेकर मेरे पर आरोप लगाए गए. लेकिन मैं चुप रहा हूं. बेनीवाल का नाम लिए बगैर उन्होंने कहा कि हमारी नहीं बनती है तो नहीं बनती है. आगे किसी मोड़ पर (Harish Chaudhary Appeal to Hanuman Beniwal) बनेगी तो किसी से पूछेंगे नहीं. अमेरिका और वियतनाम में नहीं बनी थी, जब बनी तो किसी से पूछा नहीं था. जब सहमति बनेगी तो बन जाएगी, लेकिन हमारी असहमति को किसी विवाद में कोई और इस्तेमाल करे, यह नहीं होना चाहिए.