जोधपुर. जिले में कृत्रिम यानी हाईब्रिड रूप से तैयार होने वाले फसली बीजों के मुकाबले परंपरागत बीज किसानों को ज्यादा फसल देते हैं. इन बीजों की गुणवत्ता ज्यादा होती है जो कम बारिश में भी अच्छी फसल देते हैं. जिसे लेकर कृषि मंत्रालय पूरे देश में सर्वे कर ऐसे पंरपरागत बीजों पर अध्ययन कर रहा है जो किसानों को अच्छी फसल देते हैं.
पंरपरागत बीजों को लेकर कृषि मंत्रालय कर रहा सर्वे वहीं जोधपुर स्थित काजरी में भी इसको लेकर काम चल रहा है. यहां खास तौर से मूंग के बीजों पर वैज्ञानिक काम कर रहे हैं. काजरी परिसर में मौजूद विभिन्न किस्मों के बीज के अलावा किसानों से प्राप्त नमूनों पर भी काम हो रहा है.
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वैज्ञानिकों का कहना है कि यह बाजार में आ रहे हाईब्रिड बीज के मुकाबले बेहतर साबित हो सकते हैं. ग्रामीण विकास विज्ञान समिति किसानों के साथ मिल कर जोधपुर और जैसलमेर के आठ गांवों में काम कर रही है. जो परंपरागत बीजों को सग्रहित कर रही है. जिसे काजरी में लगाकर अध्ययन किया जा रहा है.
इस परियोजना के संयोजक राजेंद्र कुमार का कहना है कि हमारा उद्देश्य है कि जो बीज किसानों को सूखें में भी फसल दे रहा है उसे संरक्षित कर ज्यादा से ज्याद किसानों तक पहुंचाया जाए. जिससे किसान की आजीविका बढ़ सके.
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वहीं इस परियोजना में भारत सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी के साथ अन्य 18 विभाग भी शामिल है जो मूंग, मोठ, बाजारा सहित अन्य पर पूरे भारत में काम कर रहे है. जिसके तहत बीजों के जिनोम पर रिसर्च की जा रही है. काजरी की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. राजवंत कालिया का कहना है कि जोधपुर की काजरी में 4100 मूंग और 1545 मोठ के जर्म प्लाज्मा लगा रखें है जिन पर अध्ययन किया जा रहा है.