जोधपुर.राजस्थान का रेगिस्तानी क्षेत्र अब सिर्फ थार नहीं रहा है. इसमें परिवर्तन आ रहा है, जिसके चलते यहां का इकोरीजन सिर्फ थार नहीं रह गया है. सिर्फ थार मानकर होने वाली रिसर्च व पॉलिसी में बदलाव करने की जरूरत है. यहां पर अब चार क्षेत्र विकसित हो गए हैं. जोधपुर आईआईटी में इसको लेकर विस्तृत अध्ययन हुआ है, जिस पर शोध पत्र प्रकाशित किया गया है.
आईआईटी जोधपुर के बायो साइंस और बायो इंजीनियरिंग विभाग की प्रोफेसर और हेड डॉ. मिताली मुखर्जी का कहना है कि थार के अध्ययन में क्राउडसोर्स व ईबर्ड डेकी का महत्वपूर्ण भूमिका है. इनके आधार पर हम कह सकते हैं कि पहले थार रेगिस्तानी क्षेत्र को एक ही पारिस्थितिकीय क्षेत्र माना जाता था, लेकिन हाल ही के अध्ययन ने इसके चार अलग पारिस्थितिकीय क्षेत्रों की पहचान की गई है. जिसमें पूर्वी थार, पश्चिमी थार, परागमन या परिवर्तनिय क्षेत्र और खेती विकसित क्षेत्र शामिल हैं.
इस अध्ययन में क्राउडसोर्सिंग का सहारा लिया गया, जिसने नया दृष्टिकोण दिया है. अध्ययन में के दौरान इन चारों क्षेत्रों में राजस्थान के सभी जिलों को शामिल किया गया है. क्योंकि कई थार की प्रजातियां वहां तक पहुंच गई हैं. ईबर्ड से एकत्र किए गए आंकड़ों से 33 जिलों में राजस्थान के थार रेगिस्तान से पक्षियों की 492 प्रजातियों की उपस्थिति देखी गई. इनमें भरतपुर, सवाई माधोपुर, जोधपुर और जैसलमेर में अधिक विविधता दर्ज की गई, जबकि श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ में सबसे कम विविधता मिली.