जोधपुर.राजस्थान हाईकोर्ट जस्टिस फरजंद अली ने प्रदेश में बढ़ते नशीली गोलियों एवं सिरप के कारोबार व बिक्री को लेकर गंभीरता दिखाते हुए स्व प्रेरणा से प्रसंज्ञान लेकर केन्द्र सरकार व राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है. कोर्ट ने प्रदेश के युवाओं में बढते नशे की लत एवं अवैध कारोबार को लेकर गंभीरता दिखाई है.
कोर्ट के सामने आ रहे इन मुकदमों को देखते हुए जस्टिस अली ने जमानत याचिका में प्रसंज्ञान लेकर कुछ सवाल खड़े किए हैं. जिनका जवाब केन्द्र व राज्य सरकार से मांगा गया है. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि जोधपुर व श्रीगंगानगर जैसे शहरों की आबादी के अनुसार भी देखें, तो 200-300 गोलियां या सिरप जो कि एक अनुमान है कि चिकित्सक, सर्जन, मनोचिकित्सक साइकोट्रॉपिक पदार्थ शामिल दवा का प्रिस्क्रिप्शन करते होंगे. इसके विपरीत देखा जाए तो केमिस्ट, भंडारण और मेडिकल स्टोर मालिक बड़े पैमाने पर पर साइकोट्रॉपिक पदार्थ शामिल ट्रामाडोल, अल्प्राजोलम व कोडीन फॉस्फेट जैसी गोलियों व सीरप को बड़ी मात्रा में संग्रहित करते हैं जो कि शहर के युवाओं को नशे के लिए उपलब्ध करा सकें.
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कोर्ट ने सवाल खड़ा किया कि यह जंगल की आग जैसी बिमारी है, जो विशेषकर प्रदेश के करीब डेढ़ करोड़ युवाओं के जीवन को प्रभावित करती है. उसके अनावश्यक उत्पादन/विनिर्माण को नियंत्रित करने के लिए ऐसा कोई तंत्र मौजूद है? साइकोट्रॉपिक पदार्थ युक्त गोलियों और सीरप के वितरण/परिसंचरण के डीलर, वितरक या खुदरा फार्मासिस्ट कितनी मात्रा के लिए सक्षम होगा. कई बार ऐसी दवा दुकानों के कर्मचारी और मालिक भी गिरफ्तार हुए, लेकिन आज तक उसकी जड़ तक नहीं जाने से उसका परिणाम नहीं मिला. साइकोट्रॉपिक पदार्थ युक्त दवाए देश के युवाओं के जीवन की गुणवत्ता को धीरे धीरे खत्म कर रही है.
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कोर्ट ने कहा कि अब समय आ गया है कि नशीली दवाओं के अवैध व्यापार को अब खत्म करना होगा. इसके लिए कोर्ट को संज्ञान लेना पड़ा. कोर्ट ने इस मामले में केन्द्र सरकार की ओर से डिप्टी सॉलिसिटर जनरल मुकेश राजपुरोहित एवं राज्य सरकार की ओर से राजकीय अधिवक्ता कम अतिरिक्त महाधिवक्ता एम ए सिद्दकी को नोटिस दिए गए. कोर्ट ने कहा कि तीन परिस्थितियां हो सकती हैं जिसमें पहली वे निर्माता जिनके पास मनोदैहिक पदार्थ या समान प्रकृति के पदार्थ की औषधि निर्माण का लाइसेंस है.
निर्माण की तुलना में कम मात्रा में गोलियां दिखा रहे हैं और बाद में उनको अनधिकृत रूप से बेचा जा रहा हो. दूसरा वे निर्माता जिनके पास औषधि निर्माण का लाइसेंस है. इनमें समान पदार्थ होते हैं, लेकिन वे मनोदैहिक पदार्थ के नशीली दवाओं का निर्माण करते हैं और अधिकारियों की आंखों पर पर्दा डाल दिया. तीसरे वे निर्माता जिनके पास निर्माण का कोई लाइसेंस नहीं है, लेकिन अवैध रूप से निर्माण कर रहे हैं. कोर्ट ने कहा कि अब समय आ गया है जब इस समस्या के मूल कारण तक जाकर गैरकानूनी लोगों के खिलाफ कारवाई के लिए क्या प्रयास किए गए या कोई एजेंसी है जो यह काम कर रही है.
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केन्द्र व राज्य की ओर से अधिवक्ताओं ने कहा कि इस बीमारी को समाप्त करने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों का शपथ पत्र प्रस्तुत किया जाएगा. कोर्ट ने यह भी कहा कि शपथ पत्र में बताएं कि दवा विक्रेता द्वारा संग्रहित गोलियों की मात्रा जो बेहिसाब है, उस पर अंकुश लगाने के लिए कोई तंत्र विकसित किया गया है या नहीं. किसी भी शहर में दवा कि दुकान पर निर्धारित 500 से अधिक गोलियां या सीरप नहीं हो सकती हैं, लेकिन दुकानों पर 40000-50000 हजार गोलियां एवं सीरप मिल जाएगी.
इसको लेकर क्या कदम उठाए जा रहे हैं, उसके बारे में जानकारी दी जाए. दूसरा यह भी बताएं कि ऐसा कोई तंत्र विकसित है जो यह बताए कि बिना प्रिस्क्रिप्शन के दवा एवं सीरप कोई दुकानदार नही बेचेगा. तीसरा ऐसा कोई सॉफ्टवेयर विकसित किया जाए कि किसी भी डॉक्टर द्वारा प्रिस्क्रिप्शन करने पर वह सॉफ्टवेयर पर ऑनलाइन अपलोड किया जाए, जहां से सभी दवा की दुकानों पर इसका उपयोग हो सके. यह डाटा सभी की जानकारी में रहे, ताकि अवैध कार्य ना हो सकें.