मनोज वर्मा- जोधपुर. राजस्थान का ब्लू सिटी जोधपुर अपने जायके के लिए पहचान रखता है. लेकिन इसके अलावा ये शहर हैंडीक्राफ्ट इंडस्ट्रीज में भी देश से लेकर विदेश तक धमक रखता है. जोधपुर के हैंडीक्राफ्ट इंडस्ट्रीज (Jodhpur Handicraft Industries) के पांच दशक पूरे हो गए हैं. 1970 में लालजी हैंडीक्राफ्ट ने सबसे पहले इस काम को शुरू (Jodhpur handicraft industries history) किया था. समय के साथ ही इस कारोबार ने रफ्तार पकड़ी और वर्तमान में करीब 3 हजार करोड़ का टर्नओवर है.
लालजी ने लालटेन से की शुरुआतः 5 दशक पहले लालजी हैंडीक्राफ्ट (Lalji Handicraft) ने इस बिजनेस को शुरू किया था. उनकी घंटाघर में कबाड़ी की दुकान थी. वहां एक विदेशी ने पुरानी लालटेन पंसद कर खरीदी तो, विदेशियों की रूची से रूबरू हुए लालजी ने शुरूआत लालटेन से ही की. इसके बाद धीरे-धीरे उन्होंने इस काम को समझा और हैंडीक्राफ्ट इंडस्ट्रीज लगाई. इसके बाद हर साल उद्यमियों की संख्या बढ़ने लगी. साथ ही धीरे धीरे एक्सपोर्ट शुरू हो गया.
लालाजी की लालटेन से घूमा हैंडीक्राफ्ट का पहिया वर्तमान में 725 से ज्यादा एक्सपोर्टरःजोधपुर हैंडीक्राफ्ट एक्सपोर्टस एसोसिएशन (Jodhpur Handicraft Exports Association) के एग्जीक्यूटिव मेंबर अजय शर्मा का कहना है कि वर्तमान में जोधपुर में 725 से ज्यादा एक्सपोर्टर हैं. जिनके पीछे 7 से 8 हजार छोटी बड़ी इकाई चलती हैं. इनमें प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से 8 से 10 लाख लोगों को रोजगार मिलता है. आज जोधपुर हैंडीक्राफ्ट (Jodhpur Handicraft Industries) का देश व पूरी दुनिया में डंका बजता है. दुनिया के 80 से ज्यादा देशों में जोधपुर की पहचान भी बनी है. जोधपुर शहर के लिए भी यह उद्योग वरदान साबित हुआ है. इसकी बदौलत हर साल हजारों करोड़ रुपए का व्यापार शहर से हो रहा है. जिससे कई तरह के व्यवसायी लाभांवित हो रहे हैं.
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दो दशक में 6 हजार से 30 हजार कंटेनर पहुंची संख्याःजोधपुर का हैंडीक्राफ्ट (Jodhpur Handicraft Industries) शुरू से ही विदेशियों को भाया. लेकिन 90 के दशक में एक्सपोर्टर एसोसिएशन गठन होने के बाद से इसके आंकड़े संग्रहित होने लगे. 1998 में सालाना हैंडीक्राफ्ट आईटम के 6350 कंटेनर एक्सपोर्ट होते थे. लेकिन बाजार में जोधपुरी हैंडीक्राफ्ट की डिमांड (Demand of Jodhpur handicraft) के चलते हर साल यह संख्या बढ़ती रही. बीस साल में कंटेनर की संख्या 30 हजार तक पहुंच गई. कोविड से पहले तक 2019-20 में सालाना 31 हजार 500 से ज्यादा कंटेनर जोधपुर से हैंडीक्राफ्ट के एक्सपोर्ट हुए थे. 2021 में भी यही आंकड़े रहे. लेकिन 2022 में यह काम यूक्रेन युद्ध व अमेरिकी मंदी की चपेट में आ गया.
जोधपुर हैंडीक्राफ्ट इंडस्ट्रीज 3 हजार करोड़ तक का टर्नओवरः जोधपुर में बनने वाला हैंडीक्राफ्ट लगभग शत प्रतिशत एक्सपोर्ट ही होता है. इसकी सर्वाधिक मांग यूरोपियन व अमेरिकी देशों में है. 1997 में जोधपुर से सालाना 250 करोड़ रुपए का हैंडीक्राफ्ट एक्सपोर्ट होता था. ये संख्या वर्तमान में 3 हजार करोड़ से ज्यादा रुपए सालान पहुंच (Turnover of Jodhpur) गया है. हर साल में इसमें बढ़ोतरी ही हुई है. लेकिन 2008 में आई मंदी के चलते दो साल इसमें गिरावट आई थी. लेकिन इसके बाद तेजी से ग्रोथ हुई जो लगातार जारी रही है. लेकिन यूक्रेन रूस युद्ध के बाद से इसमें दोबारा गिरावट हो रही है.
7 से 8 लाख लोगों को रोजगारः जोधपुर में 700 से ज्यादा पंजीकृत हैंडीक्राफ्ट एक्सपोर्टर हैं. जिनकी खुद की करीब दो हजार बड़ी इकाइयां संचालित हैं. प्रत्येक में 300 से 500 लेबर काम करती है. जबकि इनको कच्चे व तैयार माल की आपूर्ति करने वाली इकाइयों की संख्या 7 से 8 हजार है. इसके अलावा पैकिंग मेटेरिअल, कलर, आयरन वर्क, बोन वर्क करने वाले उद्योग भी बडी संख्या में पनपे हैं. एक अनुमान के मुताबिक हैंडीक्राफ्ट व्यवसाय से जोधपुर में प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से 7 से 8 लाख लोगों को रोजगार मिलता है.
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समय के साथ मिलती गई सुविधाः हैंडीक्राफ्ट इंडस्ट्रीज की शुरुआत (Jodhpur handicraft industries business) के साथ ही इसका विस्तार शुरू हो गया. लेकिन धीरे धीरे जब देश के बाहर माल जाने लगा तो कुछ विशेषज्ञता भी होना जरूरी थी. इसके चलते केंद्र सरकार के सहयेाग से यहां कॉमन फेसेलिटी सेंटर खोला गया. जहां पर हैंडीक्राफ्ट से जुड़ा तकनीकी ज्ञान लोगों को मिला. केंद्र सरकार के ही हस्तशिल्प निर्यात सवंर्धन परिषद ईपीसीएच ने जोधपुर में रूचि ली और यहां पर कार्यालय खोला. ईपीसीएच ने जोधपुर के हैंडीक्राफ्ट को विश्वस्तर पर पहचान दिलाने में काफी योगदान दिया. जोधपुर में भी कई फेयर लगावाए. इसके अलावा दिल्ली में हर साल हैंडीक्राफ्ट फेयर का आयोजन ईपीसीएच करवाता है. जिसमें दुनिया भर से बॉयर आते हैं. इस वर्ष अक्टूबर में यह फेयर आयोजित होगा.
प्रोत्साहन राशि घटी तो बढ़ी चुनौतीः जोधपुर हैंडीक्राफ्ट एक्सपोर्ट (Jodhpur Handicraft Export) को बढ़ावा देने के लिए मौजूदा केंद्र सरकार से पहले तक निर्यातकों को प्रत्येक कंटेनर और इनवायस को लेकर जो सरकार में टैक्स जमा होता था. उसमें पांच फिसदी तक प्रोत्साहन राशि के रूप वापस दिया जाता था. इससे एक्सपोर्टस को अपने माल इंडोनेशिया व चीन के भावों से प्रतिस्पर्धा कर भी बेच देते थे. उन्हें कम से कम नुकसान होने की आशंका रहती थी. लेकिन अब सिर्फ कंटेनर पर आधा फिसदी प्रोत्साहन राशि देय हो रही है. अजय शर्मा बताते हैं कि पूर्व में जो राशि मिलती थी वह करीब एक लाख थी जो अब 17 हजार रह गई है. इससे बाजार में चीन और इंडोनेशिया से प्रतिस्पर्धा में एक्सपोर्टर को परेशानी होती है.
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जोधपुर को मिली पहचानः यूं तो जोधपुर का नाम पूरी दुनिया में जाना जाता है. लेकिन वह मेहरानगढ़ और उमेद पैलेस के लिए. लेकिन हैंडीक्राफ्ट इंडस्ट्रीज (Jodhpur Handicraft Industries) ने इसे अलग पहचान दी है. जिसका फायदा इस शहर को भी मिलता है. विदेशी पर्यटन में बढ़ोतरी हुई है. इसके अलावा देश दुनिया की नामी गिरामी हस्तियां यहां हैंडीक्राफ्ट खरीदने भी आती हैं. हैंडीक्राफ्ट की बदौलत ही यहां पर तीन कंटेनर डिपो खुले हैं, जिससे सैंकडों लोगों को रोजगार मिला है. इसके अलावा जोधपुर की एअर कनेक्टीविटी भी देश के बड़े शहरों से बढ़ाने में भी इस व्यवसाय का हाथ है.
एक व्यवसाय से जुड़े सैंकड़ों कामःएक्सपोर्टर दुष्यंत व्यास का कहना है कि हैंडीक्राफ्ट निर्माण में सैंकड़ों तरह की चीजें काम आती है. इसमें कई तरह की नरम लकड़ी, इसके बाद फिनिशिंग से जुडे़ कैमिकल, कलर, लोहे के आइटम, एक फैक्ट्री से दूसरी फैक्ट्री तक लाना ले जाना, पैकिंग से जुड़े मैटेरिअल सहित कई प्रोसेस एक आर्डर को पूरा करने में लगते हैं. जिसके चलते एक्सपोर्टर के अपने अपने लोग तय होते हैं. एक आइटम अलग-अलग इकाई में कई चरणों में बनता है. यूं कहा जा सकता है कि कई हाथों से निकलने के बाद एक हैंडीक्राफ्ट आर्टिकल तैयार होता है. जिससे सभी को रोजगार मिलता है. अंत में फिनिशिंग एक्सपोर्टर के सामने होती है, इसके बाद पैकिंग होती है. विदेश जाने वाले हैंडीक्राफ्ट के लिए पैकिंग भी निर्माण जितना ही महत्वपूर्ण घटक है. शहर में पैकिंग मेटेरियल की भी पचास से ज्यादा इकाइयां लग चुकी हैं.
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सात तरह के बनते हैं हैंडीक्राफ्ट, कबाड़ की धूमःजोधपुर में लकड़ी के अलावा भी कई तरह के हैंडीक्राफ्ट (Jodhpur Handicraft Industries) बनते हैं. इसमें आयरन, बॉन, मेटल, कैनवास, लैदर व रिसाइकिल्ड हैंडीक्राफ्ट शामिल है. इनमें आयरन का हैंडीक्राफ्ट सस्ता होता है. इसके अलावा कबाड़ को नया रूप देने का सिलसिला भी पिछले एक दशक से ज्यादा समय से तेजी से चल रहा है. इससे जुडे़ अजय शर्मा का कहना है कि कबाड़ को नया रूप देने पर लोगों को काफी पसंद आता है. वहीं अभिषेक भाटी का कहना है कि लकड़ी और लोहे की अब बराबर भागीदारी हो गई है.
पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए कबाड़ का उपयोगः सामान्यतः हैंडीक्राफ्ट लकड़ी का ही बनता था. धीरे धीरे इसमें आयरनवर्क शुरू हुआ. करीब एक दशक पहले कबाड़ से हैंडीक्राफ्ट बनना शुरू हुआ. जोधपुर में इसके जानकार अजय शर्मा का कहना है कि कबाड़ से बने सामान के चलन से लकड़ी का उपयोग कम हुआ. जिससे पर्यावरण संरक्षण में भी फायदा हो रहा है.
अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है उद्योगःहैंडीक्राफ्ट उद्योग जोधपुर (Jodhpur Handicraft Industries) ही नहीं बल्कि पूरे देश में अपने सबसे बूरे दौर से गुजर रहा है. खास तौर से जहां पूरा काम एक्सपोर्ट पर ही टीका है, वहां हालात खराब हैं. दो साल में कोरोना ने इस उद्योग को काफी प्रभावित किया था. कोरोना से पहले यहां से गए हैंडीक्राफ्ट बायर के गोदाम में भरे हुए थे. लेकिन ऑनलाइन खरीदारी के दौरान ये गोदाम खाली हो गए. कोविड में यूरोप, अमेरिका ने अपने लोगों को आर्थिक सहायता भी दी थी. इसके बाद तेजी से बाजार को आर्डर मिले. लेकिन शिपिंग कंपनियों ने कंटेनर का भाड़ा दस गुना कर दिया. उसका नुकसान हुआ. लेकिन उसके बाद यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध होने के कारण हालात ज्यादा तेजी से बिगड़े. इसके चलते यूरोपिय देशों के आर्डर कैंसिल हो गए. ब्रिटेन में रूस यूक्रेन के युद्ध को ध्यान में रखते हुए एडवाइजरी जारी होने के बाद लोगों ने खरीदारी बंद कर दी. यूक्रेन से गेहूं की आपूर्ति नहीं होने से महंगाई ने वहां भी लोगों की कमर तोड़ दी. जिसका सीधा असर जोधपुर के हैंडीक्राफ्ट पर पड़ा है. यहां 200 से ज्यादा इकाइयां बंद हो गई हैं. हजारों की संख्या में लोगों का काम छिन गया है.