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स्पेशलः नौसर तालाब पर स्थित मुगलकालीन छतरियां खो रहीं अस्तित्व, अनदेखी से हो रही जर्जर - आसोप में बनी छतरियां

जोधपुर के भोपालगढ़ कस्बे के पास स्थित आसोप में नौसर तालाब के पास बनी छतरियां देख रेख के अभाव में जर्जर हो रही है. ये छतरियां मुगलकाल के दौरान 1600 ई में आसोप के ठाकुर राज सिंह ने बनवाया था. साथ ही इनमें से एक छतरी में रामस्नेही संप्रदाय की खेड़ापा पीठ के आदि आचार्य रामदास महाराज ने साधना की थी. देखें रिपोर्ट...

आसोप में नौसर तालाब, आसोप में बनी छतरियां, Nausar Pond in Asop
अनदेखी से हो रही मुगलकालीन छतरियां जर्जर

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Published : Mar 5, 2020, 11:57 PM IST

Updated : Mar 6, 2020, 1:09 AM IST

भोपालगढ़ (जोधपुर).राजस्थान पूरे देश में अपनी संस्कृति और ऐतिहासिक धरोहर के लिए अलग पहचान रखता है. राजा महाराजाओं की धरती कही जाने वाली में मरूधरा में स्थापत्य कला और वास्तू कला के अद्भूत उदाहरण मिलते है, जिनमें से कुछ विश्व प्रसिद्ध है, तो वहीं कुछ ऐसी इमारते और धरोहर भी जो धीरे-धीरे अपनी पहचान खोते जा रहे है.

अनदेखी से हो रही मुगलकालीन छतरियां जर्जर

जोधपुर के भोपालगढ़ कस्बे के पास स्थित आसोप में नौसर तालाब के पास बनी छतरियां भी उन्हीं में से है, देख भाल के अभाव में जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पड़ी है और दिन ब दिन अपनी पहचान खोती जा रही है.

कस्बे का नौसर तालाब आस्था का केन्द्र रहा है, वहीं यहां बनी ऐतिहासिक छतरिया अपने आप में गौरवशाली इतिहास और अनकहे दास्तानों को समेटे हुए है. इन छतरियों में मुगलकाल से लेकर देश की आजादी राजा-महाराजाओं के इतिहास की झलक देखने को मिलती है. इन छतरियों का निर्माण 1600 ई में मुगल काल समय आसोप के ठाकुर राज सिंह ने में करवाया था.

जर्जर हो रही छतरियां

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स्थापत्य कला का उत्कृष्ट नमूना

ये छतरियां स्थापत्य कला का उत्कृष्ट नमूना मानी जाती रही हैं. बारीकी से पत्थरों को तराशकर इनका निर्माण किया गया है. इनकी नक्काशी इतनी बारीक और बेजोड़ है कि इसे देखने वाले इसकी सुंदरता को देखकर मुग्ध हो जाते हैं. पत्थरों पर की गई बारीक गढ़ाई, बेल-बूटों के चित्र, छज्जों का आकार, चारों ओर लगाई गई रेलिंग, तराशे गए स्तम्भ और छत पर लगे पत्थरों पर उकेरी गई आकृतियां समय के हाथों में सौंपी गई अमूल्य थाती हैं. छतरियों के नीचे बने चबूतरों पर संगमरमर पत्थर के बने शिलालेख खुदे हुए हैं.

मुगलकालीन छतरियां खो रहीं अस्तित्व

आस्था का अनूठा केन्द्र

ये छतरियां ना केवल इतिहास की सूचक और दर्शकों के आकर्षण का केन्द्र है, इसके अलावा भी ग्रामीण जनमानस में इनका विशेष महत्व है. इन छतारियों में से एक छतरी के प्रति श्रद्धालुओं में खासी आस्था है. प्राचीन तालाब के घाट पर स्थित इस छतरी के नीचे गुफा में रामस्नेही संप्रदाय की खेड़ापा पीठ के आदि आचार्य रामदास महाराज ने 1817 से 1820 तक साधना की थी.

माना जाता है कि इस स्थान पर समाधिस्थ होकर रामदास महाराज ने ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति की थी. इस बात का उल्लेख उनकी कही वाणी में जानने को मिलता है. उन्होंने अपनी अनुभवी वाणी की रचना का एक हिस्सा यहां बैठ कर पूरा किया था.

रामदास बीसौ बरस, ता में काती मास,

वा दिन छाड़ी त्रृगटीए किया ब्रह्म बास।

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उपेक्षा का दंश झेल रहीं छतरियां

उपेक्षा का दंश झेल रहीं छतरियां

लंबे समय तक आस्था और कला का बेजोड़ नमूना रहीं ये छतरियां आज उपेक्षा के दंश झेल रही है. इतिहास की ये धरोहर दुर्दशा का शिकार हो रही है. पर्याप्त देखरेख के अभाव में अब ये ऐतिहासिक छतरियां जीर्ण-शीर्ण होती जा रही हैं. जर्जर हो चुकी इन छतरियों के छज्जे और अन्य भाग हर पल हादसे को न्यौता दे रहे हैं. यदि इनका उचित रखरखाव नहीं रखा गया तो, जल्द ही ये अपना अस्तित्व खो चुकी होंगी.

Last Updated : Mar 6, 2020, 1:09 AM IST

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