झुंझुनू. भगवान शिव और मां पार्वती के अमर प्रेम और भक्ति से जुड़ा है गणगौर का त्योहार. इसके साथ ही यह त्योहार अपने जीवन साथी के सपने देखने वाली नव युवतियों की भावनाओं से भी जुड़ा हुआ है. आज भी नव युक्तियां शेखावाटी में गणगौर के त्योहार पुरानी परंपराओं की तरह सज-धज कर मनाती हैं. इस त्योहार में महिलाएं और युवतियां गणगौर के गीत गाती हैं.
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भारत अनेकता में एकता का प्रतीक माने जाने वाला देश है. यहां अनेकों भाषाएं और बोलियां बोली जाती हैं. भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहां हर राज्य की अपनी एक अलग भाषा और बोली है. आज हम बात करेंगे भारत के रंगीले राजस्थान की और इसमें भी यदि शेखावाटी की बात की जाए तो यहां की हवेलियों की दीवारें भी रंगीन है और कोई ना कोई कहानी कहती नजर आती हैं. शेखावाटी की हवेलियों पर भी गणगौर के जुड़े हुए बहुत से चित्र आपको मिल जाएंगे.
महिलाएं मांगती है अखंड सौभाग्यवती का आर्शिवाद राजस्थान के अलावा कई राज्यों में होता है गणगौरः
यहां की परंपराएं, धर्म कथाएं, प्रथाएं, तीज त्योहार अपने आप में खास मान्यता रखती हैं. वैसे तो गणगौर राजस्थान मध्यप्रदेश और गुजरात आदि राज्यों में बड़े ही धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाने वाला हिंदुओं का एक त्योहार है, लेकिन शेखावाटी की युवतियां आज भी पुरानी परंपराओं की तरह इस त्योहार को मनाती हैं. गणगौर का यह त्योहार चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है.
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16 से 18 दिन तक चलता है त्योहारः
गणगौर पूजन होलिका दहन के दिन से शुरू हो जाता है और लगभग 16 से 18 दिनों तक चलता है. इस पूजन और व्रत को शादीशुदा और कुवांरी महिलाएं दोनों ही रखती हैं. शादीशुदा महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत को रखती है तो वहीं, अविवाहित लड़कियां अच्छा वर पाने की इच्छा से इस व्रत को रखते हैं.
महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत करती हैं सदा सुहागन का दिया था आशीर्वादः
गणगौर पूजन व्रत की मान्यता है कि इस दिन शिव जी ने माता पार्वती को सदा सुहागिन रहने का आशीर्वाद दिया था और मां पार्वती ने संसार की सभी औरतों को यह सदा सुहागिन रहने का आशीर्वाद दिया था. इस गणगौर पूजन में भगवान शिव जी के ईसर जी और मां पार्वती के गौरी रूप की पूजा की जाती है.
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गणगौर व्रत और पूजा में दूब से पानी के छींटे देते हैं और गौर के गीत गाए जाते हैं. इस दिन महिलाएं गोबर और होलिका दहन की राख से पिंडिया बनाकर उन पर कुमकुम और काजल की 16 टीकियां यानी तिलक लगाती हैं साथ ही चंदन अक्षत धूप दीप नैवेद्य आदि से पूजन करके भोग लगाते हैं.
शिव पार्वती के गीत गाकर महिलाएं करती है गणगौर की अराधना एक और प्राचीन मान्यताएंः
गणगौर मनाने की एक प्राचीन मान्यता यह भी है कि माना जाता है कि माता गवरजा होली के दूसरे दिन अपने मायके आती हैं और 8 दिनों के बाद ईसर भगवान शिव उन्हें वापस लेने आते हैं और चैत्र शुक्ल की तृतीया को उनकी विदाई होती है. यही इस गणगौर के त्योहार और व्रत की मान्यता है.
महिलाएं अपने पिहर और ससुराल की सुख-समृद्धि के लिए करती है व्रत कई राज्यों में गणगौर विवाहित और अविवाहित महिलाओं के लिए बेहद ही जरूरी माने जाने वाला व्रत और त्योहार है इस गणगौर के व्रत को यहां की महिलाएं अपने पिहर और ससुराल की सुख-समृद्धि के लिए बड़े ही हर्षोल्लास के साथ रखती हैं.