झुंझुनू. ग्राम पंचायतों के कार्यों में पारदर्शिता लाने और सामग्री खरीद में सरपंच, सचिवों की मनमानी रोकने के लिए सरकार ने 10 साल पूर्व सामग्री की ओपन टेंडर प्रक्रिया शुरू की थी. ऐसे में इस प्रक्रिया को आड़ में कुछ ठेकेदारों ने सरपंच और सचिवों का शोषण करना शुरू कर दिया है.
निर्माण सामग्री के अलग से नहीं होंगे टेंडर पंचायतीराज नियम 181 ब और सी के तहत ग्राम पंचायत द्वारा साल भर के लिए करवाने वाले निर्माण कार्यों के लिए खुली निविदा से सामग्री खरीदनी होती हैं. पंजीकृत ठेकेदारों द्वारा नीची दरों पर टेंडर छुड़वा लेने के बाद आवश्यक्ता पड़ने पर सामग्री उपलब्ध नहीं करवाएं जाने पर सरपंच अपने संसाधनों से सामग्री जुटाकर काम समय पर पूरा करवाते हैं, लेकिन बिल अधिकृत फर्म का ही लेना पड़ता है और राशि भी इन ठेकेदारों के खातों में ट्रांसफर करनी पड़ती है.
पढ़ेंःराज्यसभा चुनाव जीतकर राहुल गांधी को देंगे जन्मदिन का तोहफाः कांग्रेस विधायक
ठेकेदार पड़ते हैं यहां पर भारी
पंचायत को बिल देने और भुगतान वापस सरपंच को देने की प्रक्रिया में सामग्री ठेकेदार जीएसटी के नाम 20 से 30 प्रतिशत तक कमीशन लेते हैं. इसके बाद सरपंचों को अन्य खर्चे करने पड़ते हैं, जिसके कारण कामों की गुणवत्ता से समझौता करना पड़ता है. इसी डर से ग्राम पंचायतों ने इस साल के तीन माह व्यतीत होने के बाद भी अभी तक सामग्री क्रय के टेंडर नहीं किए हैं.
नियम में ही निकाला समाधान
इस जटिल प्रक्रिया का विकल्प पंचायती राज नियम 181 में निकला. जहां जिला परिषद के सीईओ रामनिवास जाट द्वारा पंचायतीराज संस्थाओं के सभी अधिकारियों को निर्देश दिए गए है कि सामग्री खरीदने के बजाय सम्पूर्ण काम को ही ठेके पर देने को प्राथमिकता देनी चाहिए.
पढ़ेंःप्रदेश में 52 नए कोरोना केस, अब तक 331 मरीजों की मौत, कुल पॉजिटिव आंकड़ा पहुंचा 13,909 पर
यह कार्रवाई अंगीकार कर लेने पर सरपंच, सचिव सामग्री खरीदने के झंझट से मुक्त हो जाएंगे और काम पूर्ण करने की समस्त जिम्मेदारी ठेकेदार की हो जाएगी. ठेकेदार यदि निर्धारित अवधि में काम पूरा नहीं करवाते हैं, या काम की गुणवत्ता कमजोर मिलती है, तो सरपंच, सचिव या विकास अधिकारी ऐसे ठेकेदारों पर पेनल्टी लगा सकेंगे और अंतिम भुगतान में कटौती कर सकेंगे.