झुंझुनू. मुख्यालय के राजकीय भगवानदास अस्पताल में पिछले 25 दिनों से भर्ती शहर के वार्ड नंबर 34 की 61 वर्षीय सलमा बानो ने कोरोना को मात दी है. प्रथम श्रेणी की डायबिटिज मरीज होते हुए भी सलमा ने हिम्मत और अपने बुलंद हौंसले से कोरोना से जंग जीती है.
बीडीके अस्पताल के पीएमओ डॉ. वीडी बाजिया ने बताया कि सलमा बानो पिछले तीन मई को अस्पताल में बहुत ही गंभीर स्थिति में भर्ती हुई थीं. उस दौरान इनका ऑक्सीजन लेवल 30 से भी कम था, लेकिन सलमा के पुत्र साजिद भाटी ने अपनी माता पर लगातार मेहनत करते हुए सुगर की इंसुलिन के साथ-साथ निरंतर व्यायाम करवाते हुए चिकित्सकों की सलाह के अनुसार चिकित्सकीय परामर्श देते हुए कोविड की बिमारी से निजात दिलवाई.
कोविड में लगे चिकित्सकों और नर्सिकर्मियों को दी दुआएं
सलमा बानो को बीडीके अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया है. सलमा ने बताया कि बड़े भाई के निधन होने पर रतनगढ़ गई थी, उसके बाद शरीर में कमजोरी आनी शुरू हुई, रात को तेज बुखार आया, इसके बाद घर पर ही घरेलू और देशी नुस्खे काम में लिए, लेकिन तबीयत में कोई सुधार नहीं हो पाया. बेटा साजिद भाटी ने प्लस ऑक्सोमीटर से ऑक्सीजन लेवल चेक किया तो 25-36 तक आया. ऑक्सीजन कम होने और सुगर अधिक होने के कारण बीडीके अस्पताल में पूरी सूझबूझ से चिकित्सक से परामर्श लेकर एचआरसीटी करवाई, जिसमें सीटी स्कोर 20 आया, 80 प्रतिशत फेफड़े संक्रमित हो चुके थे, उस समय पूरे हौंसले के साथ चिकित्सकीय सलाह के अनुसार परामर्श लेकर बीडीके अस्पताल में भर्ती हुईं.
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सलमा का कहना है कि डायबिटिज की मरीज होते हुए भी बीडीके अस्पताल के कोविड वार्ड में डॉक्टरों की ओर से बेहतर चिकित्सा सुविधा के साथ-साथ प्रतिदिन चिकित्सकों की ओर से व्यायाम और हिम्मत से इस बिमारी को मात देने की सीख दी जाती थी, जिससे हौंसला मिला और कोरोना से जंग जीती. सलमा ने अपनी बिमारी से जंग जीतने में अस्पताल में दी जा रही बेहतर चिकित्सा सुविधा और कोविड में ड्यूटी कर रहे सभी चिकित्सकों को हीरो बताते दुए उन्हें दुआओं से नवाजा.
बेटे की मेहनत और कड़ी सेवा लाई रंग
पीआरओ ऑफिस में कार्यरत साजिद भाटी ने अपनी माता को निरंतर व्यायाम और अच्छा खान-पान चिकित्सकीय सलाह अनुसार दिया, जिसका परिणाम उन्हें 25 दिनों बाद कोविड से रिकवर होकर मिला. साजिद ने बताया कि मां दुनिया की अजीमोशान दौलत है, इसके पैरों के नीचे जन्नत है, कोरोना होने पर मां को ठीक करने में पूरी जान झोंक दी थी. कोविड के वार्ड नंबर 2 में करीब 14 कोविड के मरीज भर्ती थे, जिनमें से केवल दो ही छुट्टी लेकर घर जा पाएं थे, जिनमें से एक माताजी थीं. रोजाना कोविड से जवान-जवान मौते हो रही थीं, लेकिन हिम्मत नहीं हारीं, हौंसला रखा कि माताजी को ठीक करकर घर लेकर जाना है. दिन रात खान-पान के साथ-साथ व्यायाम मेडिसिन समयानुसार देना और माताजी की प्रॉपर मॉनिटरिंग करता रहा, निरंतर ऑक्सीजन पर रखते हुए चिकित्सकों की सलाह अनुसार ऑक्सीजन लेवल मापता और लिखता रहता, शाम को डॉक्टर से काऊसिंलिंग करवाता उसी अनुरूप डॉक्टर सलाह देते.