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स्वतंत्रता दिवस स्पेशल: राजस्थान के पहले परमवीर चक्र विजेता पीरूसिंह के साहस की कहानी - Paramveer Chakra winner

राजस्थान के पहले परमवीर चक्र विजेता पीरूसिंह के साहस और जज्बे की कहानी आज भी गर्व से न केवल झुंझुनूं जिले को बल्कि पूरे शेखावाटी समेत पूरे राजस्थान को गौरवानिंवत करती है. पीरूसिंह के साहस और पराक्रम की कहानी को आज भी झुंझुनूं जिले की युवा पीढ़ियों को न केवल सुनाया जाता है बल्कि उससे प्ररेणा लेकर झुंझुनूं जिला का युवा भारत माता की सेवा के लिए सेना में भर्ती भी होते है. तभी तो झुंझुनूं जिले को सैनिको एवं वीरो की भूमि का दर्जा भी प्राप्त है.

Piru Singh, पीरू सिंह

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Published : Aug 14, 2019, 8:31 PM IST

झुंझुनू.अब बात करते है झुंझुनूं जिले के उस सपूत की जिन्होंने राजस्थान के पहले परमवीर चक्र विजेता होने का गौरव हासिल किया. मेजर पीरू सिंह शेखावत का जन्म 20 मई 1918 को राजस्थान प्रदेश के झुंझुनूं जिले के छोटे से गांव बेरी रामपुरा में हुआ. मेजर पीरूसिंह 20 मई 1936 को 6 राजपुताना रायफल्स में भर्ती हुए. 1948 की गर्मियों में जम्मू एण्ड कश्मीर ऑपरेशन के दौरान पाकिस्तानी सेना व कबाईलियों ने संयुक्त रूप से टीथवाल सेक्टर में भीषण आक्रमण किया गया. इस हमले में दुश्मन ने भारतीय सेना को किशनगंगा नदी पर बने अग्रिम मोर्चे को छोड़ने पर मजबूर कर दिया.

परमवीर चक्र विजेता पीरूसिंह के साहस की कहानी

भारतीय हमले 11 जुलाई 1948 को शुरू हुए. यह ऑपरेशन 15 जुलाई तक अच्छी तरह जारी रहे. इस इलाके में दुश्मन एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित था. अत: आगे बढ़ने के लिए उस जगह पर कब्जा करना बहुत ही आवश्यक था. उस के नजदीक ही दुश्मन ने एक और पहाड़ी पर बहुत ही मजबूत मोर्चाबंदी कर रखी थी. 6 राजपुताना रायफल्स को इन दोनों पहाड़ी मोर्चों पर फिर से कब्ज़ा करने का विशेष ऑपरेशन दिया गया था.

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इस हमले के दौरान पीरू सिंह इस कंपनी के अगुवाई करने वालों में से थे, जिस के आधे से ज्यादा सैनिक दुश्मन की भीषण गोलाबारी में शहीद हों चुके थे. पीरू सिंह दुश्मन की उस मीडियम मशीन गन पोस्ट की तरफ दौड़ पड़े जो उन के साथियों पर मौत बरसा रही थी. दुश्मन के बमों के छर्रों से पीरू सिंह के कपड़े तार -तार हो गए और शरीर बहुत सी जगह से बुरी तरह घायल हो गया, पर यह घाव वीर पीरू सिंह को आगे बढ़ने से रोक नहीं सके. वह राजपुताना रायफल्स का जोशीला युद्धघोष ” राजा रामचंद्र की जय” करते लगातार आगे ही बढ़ते रहे. आगे बढ़ते हुए उन्होनें मीडियम मशीन गन से फायर कर रहे दुश्मन सैनिक को अपनी स्टेनगन से मार डाला व कहर बरपा रही मशीन गन बंकर के सभी दुश्मनों को मारकर उस पोस्ट पर कब्जा कर लिया.

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तब तक उन के सारे साथी सैनिक या तो घायल होकर या प्राणों का बलिदान कर रास्ते में पीछे ही पड़े रह गए. पहाड़ी से दुश्मन को हटाने की जिम्मेदारी मात्र अकेले पीरू सिंह पर ही रह गई. शरीर से बहुत अधिक खून बहते हुए भी वह दुश्मन की दूसरी मीडियम मशीन गन पोस्ट पर हमला करने को आगे बढ़ते तभी एक बम ने उन के चेहरे को घायल कर दिया. उन के चेहरे और आंखों से खून टपकने लगा तथा वह लगभग अंधे हो गए. तब तक उन की स्टेन गन की सारी गोलियां भी खत्म हो चुकी थी. फिर भी दुश्मन के जिस बंकर पर उन्होंने कब्जा किया था, उस बंकर से वह बहादुरी से रेंगते हुए बाहर निकले, व दूसरे बंकर पर बम फेंके.

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बम फेंकने के बाद पीरू सिंह दुश्मन के उस बंकर में कूद गए व दो दुश्मन सैनिकों को मात्र स्टेन गन के आगे लगे चाकू से मार गिराया. जैसे ही पीरू सिंह तीसरे बंकर पर हमला करने के लिए बाहर निकले उन के सिर में एक गोली आकर लगी. फिर भी वो तीसरे बंकर की तरफ बढ़े व उस के मुहाने पर गिरते देखे गए. तभी उस बंकर में एक भयंकर धमाका हुआ, जिस से साबित हो गया की पीरू सिंह के फेंके बम ने अपना काम कर दिया है. परतुं तब तक पीरू सिंह के घावों से बहुत सा खून बह जाने के कारण वो शहीद हो गए. उन्हें कवर फायर दे रही “C” कंपनी के कंपनी कमांडर ने यह सारा दृश्य अपनी आंखों से देखा.

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अपनी विलक्षण वीरता के बदले उन्होने अपने जीवन का मोल चुकाया लेकिन अपने अन्य साथियों के समक्ष अपनी एकाकी वीरता, दृढ़ता व मजबूती का अप्रतिम उदाहरण प्रस्तुत किया. इस कारनामे को विश्व के अब तक के सबसे साहसिक कारनामो में एक माना जाता है.

अपनी प्रचंड वीरता, कर्त्तव्य के प्रति निष्ठा और प्रेरणादायी कार्य के लिए कंपनी हवलदार मेजर पीरू सिंह भारत के युद्धकाल के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार “परमवीर चक्र” से मरणोपरांत सम्मानित किए गए.
पीरूसिंह के दत्तक पुत्र ओमप्रकाश सिंह का कहना है कि सरकारी एवं प्रशासन वैसे तो हमे कुछ नहीं चाहिए, लेकिन करीब आठ साल पहले पीरूसिंह के नाम से बने मार्ग पर बनी सड़क का निर्माण हो जाए तो अच्छा हो. क्योंकि क्षतिग्रस्त सड़क के कारण लोगों को परेशानियों को सामना करना पड़ता है और लोग इस मार्ग से गुजरते है तो वो शहीद के इस मार्ग की बनी सड़क को लेकर हमे शिकायत करते है कि इस सड़क का कुछ करवाओ. क्षतिग्रस्त सड़क का निर्माण नहीं होने से गांव में बने स्मारक पर भी लोगों में जाने में परेशानियों का सामना करना पड़ता है. ऐसे में परिवार इस सड़क के निर्माण की मांग कर रहा है.

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गांव के रिटायर्ड फौजी का कहना है कि पीरूसिंह ने पिलानी के नजदीक छोटे से गांव बेरी को पूरे देश में एक पहचान दिलाई। अब गांव में कई लोग सेना में वर्तमान समय में भी काम कर रहे है तो कई रिटायर्ड हो चुके है.

बहादूर पीरूसिंह के अलावा उनके बड़े भाई बुरूसिंह भी भारत माता की सेवा की. पीरूसिंह समेत वे चार भाई हैं. इनमें बड़े भाई बुरूसिंह, भागसिंह, पीरू सिंह एवं जयनारायण सिंह. चार भाईयों में दो भाई देश की सेवा के लिए सेना में भर्ती हुए. पीरू सिंह के खुद के बेटे ओमप्रकाश भी सेना में सात साल तक सेवा दी. अब पीरूसिंह के परिवार से महेश 2012 से देश की सेवा के लिए सेना में भर्ती हुआ है. जोकि पीरूसिंह की तीसरी पीढ़ी है. इसके अलावा रघुवीर सिंह भी सेना में सुबेदार है और देश की सेवा कर रहे हैं.

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