झुंझुनू. ज्ञान और सभ्यता में विश्व गुरु कहे जाने वाले भारत में करीब ढाई हजार वर्ष पुराने जैन धर्म में जो आचार-विचार और परंपराएं हैं, उनको आज कोरोना महामारी ने पूरे विश्व को अपनाने के लिए मजबूर कर दिया है. जैन मुनि जिन सिद्धांतों का पालन करते हैं, वे कोरोना महामारी से बचाव के लिए अब पूरे विश्व में प्रथम साधन बन गए हैं.
झुंझुनू में अभी चतुर्मास के लिए दादाबाड़ी में विराज रहे जैन धर्म के संत आचार्य विजय दर्शन रत्न से हमने इस बारे में चर्चा की. आचार्य बताते हैं कि जैन धर्म के अनुसार सभी जीवों को जीने का अधिकार है, और जाने अनजाने में भी उनकी हत्या महापाप है. उन्होंने कहा कि कोरोना जैसी भयानक बीमारियां जीवों की हत्या का ही परिणाम हैं.
अभी कोरोना के बारे में तो बहुत कुछ स्पष्ट नहीं है, लेकिन कौन नहीं जानता कि स्वाइन फ्लू, बर्ड फ्लू और न जाने कितनी महामारी पशु और जानवरों से इंसान में आई और इंसान को प्रकृति के आगे झुकने को मजबूर कर दिया. इसलिए जैन धर्म के मुख्य सिद्धांत अहिंसा और संयम कोरोना से बचाव के लिए अब पूरे विश्व की मजबूरी बनता जा रहा है. गौरतलब है कि कोरोना महामारी के दौरान पशुओं की हत्या लगभग बंद हो गई थी और जहां पर हमेशा मांसाहार का उपयोग किया जाता है, वहां पर भी लोग शाकाहारी बन गए.
अहिंसा से ही जुड़ा हुआ है मुंह पर मास्क लगाना
जैन धर्म में माना जाता है कि वातावरण में करोड़ों वायरस या जीव विद्यमान हैं. मुंह खुला होने से अनजाने में ही मुंह के माध्यम से अंदर चले जाते हैं, जिससे जीव हत्या का पाप लगता है. इसलिए जैन साधु- संत हमेशा मुंह पर मास्क लगाकर ही रखते हैं. जैन धर्म में मुंह ढकने की ये परंपरा सैकड़ों सालों से चली आ रही है. आज मास्क लगाने की परंपरा कोरोना से बचाव में कारगर साबित हो रही है.