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SPECIAL : कंपकंपाती ठंड, हाथों में बंदूक और लड़ने का जज्बा...जानें 1962 के युद्ध की कहानी एक योद्धा की जुबानी

कंपकंपाती ठंड, हाथों में बंदूक और लड़ने का जज्बा कम नहीं हुआ था. हमारे कुछ साथी मारे गए थे और कुछ बर्फीले नालों में खो गए थे. बैग में सिर्फ एक बिस्कुट का पैकेट था, जिससे दस दिन निकालने थे. हमें पता नहीं था कि हम कहां हैं. गोलियों की आवाजें तो आ रही थीं, लेकिन कहां से पता नहीं. हम फिर भी चलते रहे. दिमाग सुन्न पड़ गया था, चलते-चलते कब बेस कैंप पहुंच गए पता ही नहीं चला. जब आंख खुली तो अपने आप को अस्पताल में पाया. साल 1962 चीन-भारत के युद्ध की कहानी, योद्धा रामनाथ झाझड़िया की जुबानी...

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Published : Jun 25, 2020, 7:46 PM IST

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रामनाथ झाझड़िया की शौर्य गाथा

झुंझुनू.भारत-चीन विवाद इन दिनों सुर्खियों में है. इस मुद्दे पर भारत में सियासी टकराव भी जारी है. यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि शायद दोनों के बीच युद्ध भी हो जाए. इन सब के बीच लोग उन आर्मी जवानों के बारे में भूल गए हैं, जिन्होंने 1962 में चीन को मुंहतोड़ जवाब दिया था. 1962 में भारत-चीन के बीच हुए युद्ध में भारतीय जवानों की शूरवीरता की कहानियों की भरमार है. इन्हीं में से आज हम आपको उस युद्ध में बतौर नायक पद पर काम करते हुए मैदान में दुश्मनों से दो-दो हाथ करने वाले रामनाथ झाझड़िया से मुलाकात करा रहे हैं. रामनाथ की जुबानी सुनिए और समझिए इस युद्ध में भारतीय लड़ाकों की शौर्य गाथा.

रामनाथ झाझड़िया की शौर्य गाथा (पार्ट-1)

भारतीय थल सेना की 5 जाट बटालियन के योद्धा नायक रामनाथ झाझड़िया 85 साल के हैं. वे ऐसे जवान हैं जो भारत की ताकत हैं, जिनके दम पर भारत चीन के सामने सीना तान कर खड़ा है. नायक रामनाथ झाझड़िया ने भारत और चीन के मध्य हुआ सन 1962 का युद्ध लड़ा था. इसमें उनके कष्टों का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि जब बेस कैंप पर पहुंचने के बाद जूते निकाले तो उनकी उंगलियां जूतों के अंदर ही रह गई. इस युद्ध में उनके हाथों और पैरों की पूरी उंगलियां बर्फ में गल गई. इतना कष्ट सहने के बाद भी उन्होंने अपने इकलौते पुत्र महेन्द्र सिंह झाझड़िया को भी सेना में भेज दिया.

तीन पीढ़ियों की शान बनी आर्मी...

रामनाथ झाझड़िया बताते हैं कि उनका बेटा भारत-चीन बार्डर सहित सब जगह देश सेवा करने के बाद ऑनरेरी लेफ्टिनेंट से रिटायर्ड हो चुका है. अब उनका पोता विनित कुमार भी भारतीय थल सेना की उसी 5 जाट बटालियन में लेह क्षेत्र में तैनात है. हाल ही में जब चीन के साथ तनाव हुआ है, विनित कुमार की बटालियन को भी रेडी टू मूव का आर्डर हो चुका है और ऐसे में दादा नायक रामथान झाझड़िया कहते हैं कि पोते का फोन आया है कि इतिहास एक बार वापस अपने को नए तरीके से दोहराने जा रहा है. झाझड़िया बताते हैं कि देश प्रेम का जज्बा ना तो खुद के कष्टों से कम होता है और ना ही परिवार जनों के कष्टों से.

रामनाथ झाझड़िया की शौर्य गाथा (पार्ट-2)

इसको कहते हैं असली जज्बा...

नायक झाझड़िया बताते हैं कि 1962 में चीन ने तो अचानक हमला कर दिया था और पहाड़ आग के गोले बन गए थे. जितनी ताकत हमारे पास थी, उससे हम लड़ रहे थे. लड़ते-लड़ते कई जवान बर्फ के नालों में खो गए. खाने के लिए कुछ नहीं था, केवल एक बिस्कुट के पैकेट से दस दिन निकाले. गोलियों की आवाजें तो आ रही थीं, लेकिन कहां से पता नहीं. फिर भी हम चलते रहे, कभी बेहोश हुए, कभी पत्थरों पर सो गए और बेस पर पहुंचते-पहुंचते मरणासन्न हो गए. बेस के लोगों ने ही बताया कि पहले श्रीनगर, दिल्ली और बाद में पुणे में इलाज हुआ. इसके बाद उन्हें अपने बरेली सेंटर में भेज दिया गया, जहां से मेडिकल तौर पर रिटायरमेंट पर भेज दिया गया.

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अपने देश की रक्षा हम नहीं करेंगे तो कौन करेगा : नायक झाझड़िया

जब नायक झाझड़िया से यह पूछ गया कि आपने इतने कष्ट सहने के बाद भी अपने इकलौते पुत्र और पौत्र को सेना में क्यों भेजा, तो इस पर वे गुस्सा गए कि हमारे देश की रक्षा हम नहीं करेंगे तो कौन करेगा. उन्होंने कहा कि जब से मैंने उन बीस जवानों की शहादत के बारे में सुना है, मैं खाना ही नहीं खा पाता हूं. भारत को चीन को जवाब देना ही चाहिए.

युद्ध के दौरान खो दी हाथों और पैरों की उंगलियां

भारत में जवानों को रक्षक के रूप में देखा जाता है, क्योंकि ये रक्षक ही हमारे देश की सीमा पर तैनात रहकर हमारी रक्षा करते हैं, ताकि दुश्मन से देश को बचाया जा सके. देश के लिए मर मिटने वाले हमारे असली हीरो और इनकी बहादुरी को ईटीवी भारत सलाम करता है.

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