झुंझुनू.सैनिकों और शहीदों की धरती कहा जाने वाला शेखावाटी का झुंझुनू जिला आजादी के बाद अजीब कशमकश से गुजर रहा था. उद्योग नाम की कोई चीज इस क्षेत्र में नहीं थी. जिसके कारण यहां केवल खेती होती थी और खेतों में काम करने की वजह से यहां के लोग काफी हटे-कट्टे और लंबे कद के हुआ करते हैं. ऐसे में प्राकृतिक रूप से सेना के प्रति उनका रुझान बढ़ा और आजादी के बाद के 15 सालों में यहां के लोग सेना की लगभग सभी यूनिटों में दिखाई देने लगे.
इसके साथ ही पाकिस्तान के साथ 1965 का युद्ध आ गया और देश की कमान, गुदड़ी के लाल कहे जाने वाले लाल बहादुर शास्त्री के हाथ में थी. देश के हालात बहुत बेहतर नहीं थे. ऐसे में युद्ध के दौरान ही करीब सवा 5 फीट के शास्त्री ने नारा दिया 'जय जवान जय किसान'. जिसके बाद देश के जवानों में जोश भर गया था.
'घर वाले खेत में तो हम फौज में'
झुंझुनू के फौजी बताते हैं, कि शास्त्री के इस नारे के साथ ही हम लोगों का देश प्रेम के साथ-साथ युद्ध को जीतना व्यक्तिगत जुड़ाव सा महसूस होने लगा. शेखावाटी के सैनिक ये समझ रहे थे, कि हम यहां बॉर्डर पर देश के लिए जान दे रहे हैं तो दूसरी ओर हमारे गांव वाले खेतों में जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं, ताकि खुद के साथ अन्य लोगों को भी अन्न मिल सके.
ऐसे में 'जय जवान, जय किसान' के नारे ने जवानों में नया जोश भर दिया और वह चार गुनी ताकत के साथ युद्ध में भाग लेने लगे. बता दें, कि आजादी से पहले भी जिले के कई लोग सेना में हुआ करते थे और आजाद हिंद फौज सहित अंग्रेजों की सेना में भी उनकी उपस्थिति हुआ करती थी.