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गहलोत-पायलट के बीच सियासी जंग में ओला परिवार...एक बार फिर अदावत और बगावत 'बुलंद'

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Published : Jul 21, 2020, 1:20 PM IST

राजस्थान में लगातार सियासी घमासान जारी है. सचिन पायलट के खेमें में शामिल बृजेंद्र ओला एक राजनीतिक परिवार से संबंध रखते हैं. वर्तमान समय में ओला परिवार अपनी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने के लिए जूझ रहा है. प्रदेश में चल रही सियासत के बीच देखने वाली बात ये है कि हमेशा बगावत से फायदा लेने वाला ओला परिवार इस बार कितना कूटनीतिक और राजनीतिक मात का खेल खेल पाता है...पढ़िए पूरी खबर...

rajasthan news, झुंझुनू न्यूज
गहलोत-पायलट के बीच सियासी जंग में ओला परिवार

झुंझुनू.राजस्थान की वर्तमान सियासत में सचिन पायलट के खास सिपहसलार में शामिल बृजेंद्र ओला उस कद्दावर जाट राजनीतिक परिवार से संबंध रखते हैं, जहां बगावत का झंडा बुलंद करने में या पार्टी को आंख दिखाने से कभी गुरेज नहीं किया गया.

गहलोत-पायलट के बीच सियासी जंग में ओला परिवार

बृजेंद्र ओला के पिता पदम श्री शीशराम ओला खुद कांग्रेस से बगावत कर तिवारी कांग्रेस झुंझुनू से सांसद का चुनाव लड़ चुके हैं और जीत भी दर्ज की थी. ओला परिवार को बगावत से या पार्टी के खिलाफ खड़े होने पर फायदा ही मिलता रहा है. हालांकि अब बृजेंद्र ओला के सचिन का हमसफर होने पर ऊंट किस करवट बैठेगा, राजनीतिक परिदृश्य में ओला परिवार का क्या भविष्य रहेगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा.

बागी होकर वीर चक्र अयूब खान को दी थी मात

झुंझुनू लोकसभा सीट पर 11वीं लोकसभा के लिए 1996 में जब शीशराम ओला को कांग्रेस का टिकट नहीं मिला तो उन्होंने बगावत कर पार्टी के सामने चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया था. उन्होंने कांग्रेस से चुनाव लड़ा और झुंझुनू के दो बार सांसद वीर चक्र से सम्मानित कैप्टन अयूब खान को मात देकर सांसद बने. किस्मत उनके साथ थी, किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था और इसलिए 1996-97 में प्रधानमंत्री देवगोड़ा की सरकार में स्वतंत्र प्रभार के उर्वरक और रसायन राज्यमंत्री 1997 में इंद्र कुमार गुजराल की सरकार में स्वतंत्र प्रभार के जल संसाधन विभाग के राज्यमंत्री रहे.

यानी बगावत का झंडा उठाने से उनको एक तरह से मंत्री पद का तोहफा मिला. हालांकि बाद में वापस कांग्रेस में लौट गए और मनमोहन सिंह की सरकार में भी मंत्री रहे. अशोक गहलोत की 2008 में सरकार के दौरान शीशराम ओला मुख्यमंत्री के दावेदार थे, उन्होंने नाराजगी व्यक्त की थी, पार्टी को आंखें दिखाई. हालांकि इस पर उनकी मान मनोव्वल हुई और पुत्र बृजेंद्र ओला को मंत्री पद का तोहफा मिला.

अब सब कुछ छिन रहा तो बगावत हो गई है मजबूरी

अब ओला परिवार के झुंझुनू से विधायक बृजेंद्र ओला के अलावा कोई पद नहीं है. किसी समय शीशराम ओला की पुत्रवधू और बृजेंद्र ओला की पत्नी राजबाला ओला जिला प्रमुख रही थी, बाद में उनको झुंझुनू लोकसभा सीट से सांसद का टिकट भी मिला. अब इस बार ना तो उनको लोकसभा का टिकट मिला और ना ही किसी पद पर हैं यानि राजनीतिक निर्वासन में जी रही हैं.

वहीं, शीशराम ओला की पौत्र वधू और बृजेंद्र ओला की पुत्रवधू आकांक्षा ओला दिल्ली में भी कांग्रेस के टिकट पर भाग्य को आजमा चुकी हैं, लेकिन वहां पर भी उनको मात्र 3 हजार मत मिले यानी तीसरी पीढ़ी का राजनीतिक भविष्य अभी अंधकार में ही है. परिवार से अभी बृजेंद्र ओला ही विधायक हैं, लेकिन इतना सीनियर होने के बावजूद उनको मंत्रिमंडल में नहीं लिया गया. जबकि वे पिछली गहलोत सरकार में मंत्री हुआ करते थे.

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वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों में ये भी स्पष्ट हो रखा था कि फिलहाल बृजेंद्र ओला का मंत्री पद के लिए नंबर नहीं आ रहा है क्योंकि जिले से अन्य दावेदार भी गहलोत सरकार में दिखाई दे रहे थे. जिले से पहले ही राजेंद्र गुढ़ा बसपा से जीतकर कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं.

सचिन पायलट से है पारिवारिक रिश्ता

पूर्व चिकित्सा मंत्री राजकुमार शर्मा भी मंत्री पद की पूरी दावेदारी रखते हैं, कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रामनारायण चौधरी की पुत्री रीटा चौधरी भी उपचुनाव जीतकर मंत्री पद के लिए दावेदार हो गई हैं और ऐसे में गहलोत से पुरानी अदावत के चलते ये लगभग स्पष्ट लग रहा था कि बृजेंद्र ओला कम से कम इस कार्यकाल में मंत्री नहीं बन पाएंगे. दूसरी ओर पायलट परिवार से उनका पारिवारिक रिश्ता रहा है और जब कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बनकर सचिन पायलट जयपुर आए तो विधायक बृजेंद्र ओला ने ही अपना बंगला उनको रहने के लिए दिया था. अब देखने वाली बात ये होगी कि हमेशा बगावत से फायदा लेने वाला ओला परिवार इस बार कितना कूटनीतिक और राजनीतिक मात का खेल खेल पाता है.

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