सूरजगढ़ (झुंझुनू). जिले के सूरजगढ़ सरकारी अस्पताल में डबल वॉल्यूम एक्सचेंज ट्रांसफ्यूजन यानी शरीर से रक्त बदलकर नवजात बच्ची की जान बचा ली गई. बच्ची अत्यधिक पीलिया रोग से ग्रसित थी. आमतौर पर इस तरह के ऑपरेशन जयपुर जैसे बड़े शहरों में ही किए जाते हैं, लेकिन अब सूरजगढ़ जैसे छोटे शहर में भी इसका सफल इलाज होने लगा है.
जानकारी के अनुसार खांदवा गांव की गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाली प्रसूता ने 11 दिन पहले चिड़ावा के सरकारी अस्पताल में एक बच्ची को जन्म दिया था. जिसके बाद उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी गई थी. 11 दिन की नवजात बच्ची का वजन समय पूर्व प्रसव होने के कारण सिर्फ 1.6 किलोग्राम था और उसे 28.6 पॉइंट (mg/dl) पीलिया था. पीलिया के खतरनाक स्तर पर पहुंचने से वह पूरे शरीर में फैल गया था. इससे बच्ची के दिमाग को स्थायी नुकसान के अलावा जान का भी खतरा हो गया था.
ऐसे में चिकित्सकों ने नवजात शिशु का फोटोथेरेपी विधि से उपचार किया. शहर स्थित शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. हरेंद्र धनकड़ की निगरानी में डॉ. बी पाल, बबीता और सुनीता ने 3 घंटे के प्रयास से सफल इलाज कर नवजात की जान बचाई.
सूरजगढ़ सरकारी अस्पताल के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. हरेंद्र धनकड़ की निगरानी में 3 घंटे से अधिक समय में नवजात का पूरा पिलियाग्रस्त खून शुद्ध खून से बदल दिया गया. अब नवजात की स्थिति खतरे से बाहर है और उसे अस्पताल की गहन शिशु रोग इकाई में फोटोथेरेपी मशीन में निगरानी में रखा गया है.
पढे़ंःराजस्थान निगम चुनाव : अपनी ही पार्टी पर बिफरे राजावत, कहा- व्यक्ति विशेष की गोद मे बैठे नेताओं की तानाशाही का परिणाम है
डॉ. हरेंद्र ने बताया कि खून बदलने की प्रक्रिया को चिकित्सीय भाषा में 'डबल वॉल्यूम एक्सचेंज ब्लड ट्रांसफ्यूजन' कहा जाता है. जिसमें नवजात की नाभि में नली लगाकर उसमें से सम्पूर्ण दूषित खून निकाला जाता है और शुद्ध खून चढ़ाया जाता है. मुश्किल और जोखिमभरी प्रक्रिया होने के कारण सामन्यतया ऐसे नवजातों को हायर सेंटर रेफर किया जाता है, लेकिन परिजनों को जब खून बदलने के लिए रेफर की जरूरत बताई, तो आर्थिक स्थिति के कारण वे निराश हो गए. परिजनों की सहमती लेकर चिड़ावा में ही खून बदलने का फैसला लिया गया. परिजनों के साथ कोई सक्षम डोनर नहीं होने पर ब्लड बैंक में बातकर तुरंत निःशुल्क खून भी उपलब्ध करवाया गया.