झुंझुनूं. भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष रहे मदनलाल सैनी अपनी लंबी राजनीतिक यात्रा के बाद इहलोक को रवाना हो चुके हैं, लेकिन उनकी राजनीतिक कर्मभूमि झुंझुनूं ने उनको बहुत कुछ दिया तो कई बार नकार भी दिया. उन्होंने अपना पहला चुनाव उस समय की गुढ़ा व वर्तमान उदयपुरवाटी विधानसभा से 1990 में लड़ा और जीत दर्ज की. इसके साथ ही संघ के कार्यकर्ता की मुख्य भूमिका की राजनीतिक यात्रा शुरू हो गई. लेकिन वे संगठन के काम में ज्यादा रुचि लेने लगे. वे जिलाध्यक्ष और प्रदेश मंत्री भी रहे.
सैनी की कर्मभूमि रही है झुंझुनूं लोकसभा चुनाव में दी जबरदस्त टक्कर
उन्होंने 1991 में कांग्रेस के कैप्टन अयूब खान के सामने भाजपा की टिकट पर झुंझुनूं लोकसभा सीट से सांसद का चुनाव लड़ा, लेकिन वीर चक्र होने की वजह से माहौल अयूब खान के पक्ष में रहा. वैसे भी झुंझुनूं जिला सैनिक बाहुल्य है और इसलिए सेना से जुड़े लोगों के प्रति हमेशा सहानुभूति रहती है. इसके बावजूद कैप्टन अयूब खान को 2,13,903 तो मदनलाल सैनी को 1,93,649 मत मिले. यानी कांग्रेस का गढ़ रही सीट पर कांग्रेस को पसीना आने लगा था.
इसके बाद 1996 में झुंझुनूं में अजय माने जाने वाले कांग्रेस के कद्दावर जाट नेता शीशराम ओला के सामने उनको वापस भाजपा का टिकट मिला. लोग बताते हैं कि इतना जबरदस्त कांटे का चुनाव हुआ कि शीशराम ओला को पसीने आ गए. सैनी पूरी ताकत से चुनाव लड़ रहे थे, लेकिन जातिगत समीकरण उनके आड़े आ गए. शीशराम ओला की सीट जाती देख जाट उनके पक्ष में पूरी तरह लामबंद हो गए. राजनीतिक हलकों की चर्चा के अनुसार जाटों ने ना केवल एक तरफा वोटिंग की बल्कि गांव में अन्य मतों को प्रभावित किया. इसके बाद भी मदनलाल सैनी पहली बार भाजपा के मतों का आंकड़ा 3,00,000 से पार ले जाने में सफल रहे. हालांकि उन्हें करीब 38,000 मतों से हार का सामना करना पड़ा.
वापस प्रयास लेकिन असफल
इसके बाद उन्होंने चुनाव लड़ना छोड़ दिया, लेकिन 2008 में वापस उदयपुरवाटी से भाजपा से विधानसभा का टिकट मिला. इसमें उन्हें बड़ा झटका लगा और जमानत जब्त हो गई. इसके बाद वे सामान्य कार्यकर्ता की तरह ही, लेकिन 3 साल पहले अचानक उनका राज्यसभा सदस्य बनना और बाद में प्रदेशाध्यक्ष व लोकसभा चुनाव में अभूतपूर्व जीत अपने आप में इतिहास है.