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कारगिल में झुंझुनू के 19 जवान हुए थे शहीद, हर योद्धा की कहानियां देती हैं प्रेरणा

आज कारगिल विजय दिवस मनाया जा रहा है. कारगिल युद्ध में प्राणों को न्योछावर करने वाले शूरवीर लाडलों की गाथाएं हर दिन सभी को प्रेरणा देती है. देश की रक्षा के लिए प्राणों की आहूति देने के मामले में झुंझुनू का विशेष स्थान हमेशा से रहता आया है. शेखावाटी की पावन धन्य धरा ने ऐसे रणबांकुरों को जन्म दिया, जिन्होंने प्राणों की आहूति देकर मां भारती की आन-बान और शान की रक्षा की है.

Kargil Vijay Diwas: 19 jawans from Jhunjhunu martyred that inspires us
कारगिल में झुंझुनू के 19 जवान हुए थे शहीद, हर योद्धा की कहानियां देती हैं प्रेरणा

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Published : Jul 26, 2023, 7:58 PM IST

झुंझुनू.देशभर में बुधवार को कारगिर विजय दिवस मनाया गया. दो महीने तक चलने वाले इस युद्ध में 527 वीर शहीद हुए थे. इन शहीदों में 19 जवान केवल राजस्थान के झुंझुनू जिले से थे. झुंझुनू जिले के लाडलों ने सर्वाधिक शहादत इस युद्ध में दी थी.

पाकिस्तान के नापाक मंसूबों का मुंहतोड़ जवाब देते हुए शहीद होने वाले राजस्थान के फौजियों में से हर दूसरा बेटा झुंझुनू का था. करीब 2 महीने की जंग के बाद 26 जुलाई, 1999 को युद्ध का समाप्त हो गया था. इस दिन को भारत में कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है.

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रामकरण सिंह की शहादतःकारगिल विजय के दौरान खेतडी के बेसरड़ा के लाडले सपूत शहीद रामकरणसिंह का नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा हुआ है. 24 साल पहले दी गई शहादत को परिजन व ग्रामीण आज भी नहीं भुला पाए हैं. कारगिल में 2 महीने से अधिक समय तक चले युद्ध में शहीद रामकरण ने अपने प्राणों की आहुति देते हुए विजय दिलवाई थी. 3 मई, 1999 को शुरू हुआ कारगिल युद्ध करीब 2 महीने तक चला, इसमें बेसरडा के रामकरण सिंह 4 जून, 1999 को वीरगति को प्राप्त हुए थे.

शहीद वीरांगना संतोष देवी कारगिल युद्ध की घटना को याद करती हैं तो विचलित सी हो जाती हैं. उनका कहना है वह दिन कैसे निकाले थे, हम ही जानते हैं, जब शहीद की पार्थिव देह आई थी तो पूरा गांव रो रहा था. अब शहीद रामकरण सिंह के गांव की ढाणी को शहीद की ढाणी का ही नाम दे दिया गया है. साथ ही बेसरडा गांव की स्कूल का नाम भी शहीद रामकरण सैन के नाम से कर दिया गया है. शहीद रामकरण सिंह का जन्म 1 नवंबर, 1961 को हुआ था. वीरांगना संतोष देवी अपने दो बेटे व दो बेटियों को काफी संघर्षों के बाद पाला. इसमें से एक लड़का सेना में है, जबकि दूसरा अन्य कार्य कर रहा है.

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भगवान सिंह ने कारगिल में दी थी शहादतःखेतड़ी क्षेत्र के पपूरना की बंधा की ढाणी के जवान भगवान सिंह ने भी कारगिल में अपनी जान की बाजी लगा दी. कारगिल युद्ध लड़ने के दौरान 28 जून, 1999 को भगवान सिंह शहीद हो गए थे. उनका जन्म 3 मई, 1970 को हुआ था. वे 17 दिसंबर, 1987 को सेना में भर्ती हुए तथा 28 जून, 1999 को कारगिल युद्ध के दौरान वीरगति को प्राप्त हुए. शहीद के तीन बच्चे हैं, जिनमें दो लड़के और एक लड़की है. बड़ा बेटा कमलदीप बिजनेसमैन है. छोटा बेटा दौसा कलेक्ट्रेट में जूनियर अकाउंटेंट के पद पर कार्य कर रहा है. बेटी सुप्रिया अध्यापिका के पद पर कार्यरत है. वीरांगना विजेश देवी ग्रहणी हैं.

बेटे की याद आज भी ताजा हैः झुंझुनू जिले के बुहाना उपखंड मुख्यालय के नजदीकी गांव सहड़ के सुरेश सिंह भी कारगिल युद्ध के दौरान शहीद हो गए थे. दो दशक से ज्यादा समय बीतने के बाद भी मां के जेहन में बेटे की यादें आज भी तरोताजा हैं. आज भी मां सुबह शहीद की फोटो पर धूप-अगरबत्ती करते हुए दिन के कार्यों की शुरुआत करती है.

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राजकुमार यादव की शाहदत पर नाजःशूरवीर योद्धाओं का नाम जब जेहन में आता है, तो फिर शहीद राजकुमार यादव की प्रेरणादायी व्यक्तित्व की चर्चा जरूर होती है. बुहाना उपखंड के देवलावास ग्राम पंचायत के गांव इन्द्रसर निवासी राजकुमार अपने साथियों के साथ दुश्मनों से लोहा ले रहे थे, अचानक एक गोला उनकी पोस्ट पर आकर गिरा और मां भारती का ये लाडला अपनी मातृभूमि की गोद में हमेशा के लिए सो गया. वीरगति प्राप्त होने से पूर्व राजकुमार ने अदम्य साहस और वीरता का परिचय देते हुए दुश्मनों को नाको चने चबवाए थे.

शहीद नायक राम सिंहःबिसाऊ के नायक रामस्वरूप सिंह भी कारगिल युद्ध के दौरान शूरवीरता का परिचय देते हुए 8 जुलाई को शहीद हो गए थे. तत्कालीन राज्यपाल अंशुमान सिंह ने उनकी शहीद प्रतिमा का अनावरण किया था. आज भी लोग शहीद नायक राम स्वरूपसिंह की वीरता की गाथा सुनाते हैं. ये गाथाएं युवाओं को प्रेरणा देती हैं.

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