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स्पेशल रिपोर्टः कागजों में चल रही है मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी

झुंझुनू में स्थापित होने वाला खेल विश्वविद्यालय बस कागजों में ही रह गया. झुंझुनू में राज्य सरकार को 1 साल से ज्यादा का वक्त हो गया है. वहीं कांग्रेस की सरकार में घोषित की गई खेल विश्वविद्यालय की अभी तक किसी ने सुध नहीं ली है. आईये जानते है इस खेल विश्वविद्यालय की कागजी हकीकत

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स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी

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Published : Jan 4, 2020, 8:57 PM IST

झुंझुनू. जिलें को खेलों के मामले में राजस्थान का हरियाणा कहा जाता है. इसलिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की गत सरकार में झुंझुनू में खेल विश्वविद्यालय की घोषणा की गई थी. इसके बाद सरकार बदल गई और झुंझुनू में स्थापित होने वाला खेल विश्वविद्यालय फुटबॉल ग्राउंड बन गया. कभी इसको क्रीड़ा एकेडमी तो कभी कुछ और नाम दिया गया.

कागजों में ही सिमट गया स्पोर्टस यूनिवर्सिटी

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने दो दिन पहले राज्य खेल दिवस के उद्घाटन के अवसर पर अपनी सरकार की उपलब्धियों का बखान करते हुए कहा कि हमने झुंझुनू में खेल विश्वविद्यालय की स्थापना की थी, लेकिन सच्चाई यह है कि यह खेल विश्वविद्यालय केवल कागजों में ही है. गहलोत ने भाजपा सरकार पर निशाना साधते हुए कहा है कि भाजपा ने खेल विश्वविद्यालय के मामले में कुछ नहीं किया. हालांकि खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कि सरकार को आए हुए भी 1 साल से ज्यादा का वक्त हो गया है. जिसके बाद खेल विश्वविद्यालय के नाम पर खेल मैदान पर झाड़ियां उगी हुई है.

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झुंझुनू में राज्य सरकार को 1 साल से ज्यादा का वक्त हो गया है. वहीं कांग्रेस की सरकार में घोषित की गई खेल विश्वविद्यालय की अभी तक किसी ने सुध नहीं ली है. देश को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी देने वाली झुंझुनू को मिली स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी के लिए जमीन आवंटित तो हो चुकी है, लेकिन उस जमीन पर केवल जंगली पौधे और खरपतवार ही दिखाई देते है. इस कार्य के लिए बाकायदा कुलपति की भी नियुक्ति की गई थी. लेकिन वे 3 साल तक अपना वेतन उठा कर चले गए. भाजपा की गत सरकार ने भी इसे खेल विश्वविद्यालय की जगह क्रीड़ा एकेडमी का नाम दे दिया था.

50.58 हेक्टेयर में बनी है यूनिवर्सिटी
प्रदेश के पहले खेल विश्वविद्यालय के लिए कुलोद ग्राम पंचायत के राजस्व गांव दोरासर में 50.58 हेक्टेयर चारागाह भूमि आवंटित हो चुकी है. तत्कालीन सरकार ने जमीन आवंटन के बाद यूनिवर्सिटी के लिए कुछ भी नहीं किया. यहां तक की स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी का बोर्ड तक नहीं लगाया है.

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साल 2011 में कांग्रेस से तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बजट में निजी जन सहभागिता मोड पीपीपी में प्रदेश के पहले खेल विश्वविद्यालय की घोषणा की थी. निजी फर्म ने सरकारी अनुदान प्रतिशत को लेकर मतभेद होने पर अपने हाथ वापस खींच लिए थे. दिसंबर 2012 में सरकार ने सरकारी खेल विश्वविद्यालय की घोषणा की. इसके बाद कुलपति भी नियुक्त किए गये, स्टाफ की नियुक्ति की भी बात चली. भाजपा सरकार ने अपने कार्यकाल में इसे क्रीड़ाएकेडमी का नाम दे दिया. उसके बाद ना तो भाजपा सरकार ने और ना अब तक 1 साल में कांग्रेस सरकार ने इसकी कोई सुध ली है.



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