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स्वतंत्रता दिवस विशेष: राजस्थान के इस गांव के जर्रे-जर्रे में बहती है देशभक्ति की धारा...600 वीर कर चुके देश की सेवा

झुंझुनू जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर सादुलपुर रोड पर स्थित धनूरी गांव वैसे तो देखने में आम गांव जैसा ही है. लेकिन जब आप इस गांव के बारे में सुनेंगे तो आपका मन इस गांव की धरती को शीश झुकाने का करेगा. बता दें कि छोटे से गांव के 600 लोग सेना में सेवा दे चुके हैं या दे रहे हैं. साथ ही यहां के 19 जवान शहीद हो चुके हैं. तो फिर क्यों भारत के रहने वाले लोग इस मिट्टी को क्यों नहीं चूमेंगे जिसके बेटों ने रक्त से भारत मां को सींचा है.

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Published : Aug 12, 2019, 10:03 PM IST

झुंझुनू. जिले का धनूरी गांव केवल एक गांव ही नहीं, बल्कि फौजियों की खान है. एक ऐसी खान यहां के हर दूसरे घर ने जाबाज बेटा पैदा किया है जो भारत की धरती के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार है. झुंझुनू जिला मुख्यालय से महज 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गांव धनूरी में कई परिवार ऐसे हैं, जिनमें पीढ़ियों से लोग सेना में सेवाएं दे रहे हैं.

झुंझुनू का एक गांव यहां फौजियों की खान है

मुस्लिम बाहुल्य वाले गांव को देश सेवा की अनूठी मिसाल कहा जाता है. वहीं सैनिकों और शहीदों की संख्या के लिहाज से धनूरी पूरे भारत में अव्वल है. युद्ध कोई सा भी हो यहां के बेटों ने उसमें अदम्य साहस दिखाया है.

देश के नाम कुर्बान हुए 19 जांबाज बेटे

बता दें कि इस गांव के19 बेटों ने देश के लिए विभिन्न युद्धों में शहादत दी है. इसी गांव के मेजर एमएच खान को वीर चक्र से भी नवाजा गया है. इस गांव में लगभग 600 फौजी रहते हैं और इनमें से लगभग 250 अभी भी सीमा पर तैनात हैं. वहीं 350 से अधिक सेवानिवृत्ति के बाद गांव में रहते हैं.

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तीनों महत्तपूर्ण युद्धों में दी शहादत

ग्रामीणों के अनुसार1962 के भारत-चीन युद्ध में गांव के मोहम्मद इलियास खान, मोहम्मद शफीक खां और निजामुद्दीन खान शहीद हो गए थे. वहीं1971 की पाकिस्तान से लड़ाई में मेजर महमूद हसन, जफर अली खान और कुतुबुद्दीन खान देश सेवा के लिए लड़ते लड़ते शहीद हुए थे. कारगिल युद्ध में गांव के मोहम्मद रमजान खान की बहादुरी के चर्चे आज भी होते हैं.

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विश्वयुद्ध में भी दी है शहादत

भारत के पड़ोसी देशों के साथ युद्ध में ही नहीं बल्कि धनूरी गांव के जाबाज बेटे विश्वयुद्ध में भी अदम्य साहस दिखा चुके हैं. प्रथम विश्वयुद्ध में यहां के करीमबख्श करीम खां, अजीमुद्दीन तो द्वितीय विश्वयुद्ध में ताज मोहम्मद खान और इमाम अली खान वीरगति को प्राप्त हुए थे.

भारत से करते हैं प्यार यहां के लोग

1947 में देश के बंटवारे के वक्त यहां के लोगों ने भारत में ही रहने का फैसला किया और पूर्ववत सैनिक सेवा को ही प्राथमिकता दी. इसके साथ ही साहस की अपनी परंपरा को भी बनाए रखा है. यही कारण है कि इस देश पर जान देने वाले 19 बेटे इस गांव के रहने वाले थे. आजादी के बाद भी सेना में रहकर देश की रक्षा कर रहे हैं.

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