झुंझुनू. सपनों का आकाश तो हर किसी का होता है लेकिन उसकी अभिव्यक्ति के तरीके जरूर बदल जाते हैं. दिव्यांग बच्चों में प्रकृति ने कुछ कमी छोड़ी है तो अतिरिक्त रचनात्मकता देकर कहीं ना कहीं उन्हें नवाजा भी है. झुंझुनू के आशा का झरना स्कूल में कुछ इसी तरह से मूक-बधिर बच्चे अपनी जिंदगी को नई उड़ान दे रहे हैं. ईटीवी भारत ने उनकी अभिव्यक्ति के लिए प्रयास किया तो स्कूल के टीचर ही इस मामले में हमारे सहयोगी बने और उनके इशारों को शब्दों को रूप दिया.
शेखावटी का चर्चित आशा का झरना स्कूल स्कूल का अदनान इशारों में बताता है कि मैं आशा का झरना झुंझुनू स्कूल में पढ़ता हूं. स्कूल से पहले मैं अपने घर में रहता था. घर में गुमसुम रहता था लेकिन अब जब से मैं स्कूल आने लगा हूं तब से मैं बहुत अच्छा महसूस करने लगा हूं.
नहीं आती कोई कमजोरी आड़े
अगर प्रतिभा हो तो उसे निखारने के लिए किसी भी तरह की मानसिक या शारीरिक कमजोरी आड़े नहीं आ सकती है. बशर्ते कि प्रोत्साहन और उचित मंच मिले. आशा का झरना स्कूल में पढ़ने वाले मूक-बधिर और विमंदित बच्चों ने हाल ही ऐसी ही प्रतिभा का प्रदर्शन किया है. स्कूल के मुखिया राजेश कुमार के निर्देशन और प्रोत्साहन से इन बच्चों ने दिवाली के दीयों को अपनी भावनाओं और उमंगों के रंगों से सजाया है.
राजेश कुमार ने बताया कि वर्तमान में स्कूल में 65 बच्चे नामांकित हैं. इन बच्चों को विशेष तौर पर प्रशिक्षित अध्यापकों द्वारा ही पढ़ाया और सिखाया जाता है. दीपावली नजदीक होने के चलते पढ़ाई के अतिरिक्त गतिविधियों के तहत बच्चों को इस बार दीयों को विभिन्न रंगों से सजाने का प्रशिक्षण दिया गया. इन बच्चों ने अपनी समझ के मुताबिक प्रतिभा का प्रदर्शन करते हुए 11 हजार दीयों में भावनाओं के रंग भरे. रंग भरने के बाद तो जैसे दीयों का स्वरूप ही बदल गया.
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इसलिए आशा का झरना स्कूल का छात्र जायद इशारों में बताते हुए कहता है कि स्कूल से मैंने बहुत कुछ सीखा और स्कूल आकर बहुत खुश हूं. इस स्कूल में अच्छे से पढ़ाई कराई जाती है. स्कूल में सभी विषय जैसे गणित, हिंदी, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, इंग्लिश, संस्कृत, चित्रकला, कंप्यूटर और शिक्षा प्रशिक्षण आदि सभी विषय पढ़ाए जाते हैं. जिससे मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला है. जायद बताता है कि कोरोना काल से घर पर बैठा था. पढ़ाई और लिखाई भूलता जा रहा था. इसलिए उसने स्कूल आना वापस शुरू कर दिया. उसने बताया कि अगर स्कूल में सभी बच्चे फिर से आने लग जाए तो मैं स्कूल में सुचारू रूप से अध्ययन कर सकूंगा.
जुड़ ही जाता है कारवां
इन विशेष बच्चों की प्रतिभा को प्रोत्साहन देते हुए महिला और बाल विभाग साथ ही महिला अधिकारिता विभाग के कार्मिकों ने सभी 11 हजार दीये खरीद लिए. साथ ही जो संस्था बच्चों और महिलाओं के कल्याण के लिए काम करती है, उन्हें प्रोत्साहित करने का प्रयास किया.