झुंझुनू. राजस्थान में विधानसभा चुनाव बेहद नजदीक है. पार्टियों के टिकट वितरण भी अंतिम चरण में हैं, साथ ही प्रदेश में कई नेताओं का बगावत का दौर भी जारी है. इस बीच प्रदेश में एक ऐसी नेता भी रहीं हैं, जिन्होंने कभी भी जरूरत पड़ने पर पार्टी बदलने से गुरेज नहीं किया. राजस्थान विधानसभा में 9 बार विधायक बनकर पहुंचीं. अंदाजा लगाया जा सकता है कि 1957 में पहली बार विधायक बनने और फिर मंत्री और उसके बाद विधानसभा अध्यक्ष बनने वाली सुमित्रा सिंह की कितनी राजनीतिक सूझबूझ रही होगी, लेकिन वे भी एक बार राजनीतिक जाल में फंस गईं थीं और अंत में उनका राजनीतिक करियर खत्म हो गया.
एक गलती ने कर दिया करियर खत्म : सुमित्रा सिंह बताती हैं कि वर्ष 2003 में भाजपा के टिकट पर कद्दावर जाट नेता शीशराम ओला के पुत्र वर्तमान मंत्री बृजेन्द्र ओला को उन्होंने शिकस्त दी और फिर विधानसभा अध्यक्ष बनीं. 2008 के चुनाव से पहले पांच-छ सरपंच सहित कई लोग उनके पास आए और झुन्झुनू छोड़कर मंडावा आने की बात कही. ऐसे में झुन्झुनू से सिटिंग एमएलए की सीट छोड़कर मंडावा विधानसभा का चुनाव लड़कर उन्होंने अपनी जिन्दगी की सबसे बड़ी गलती कर दी.
इस चुनाव में उनकी जमानत तक जब्त हो गई. लोग बताते हैं कि यह राजनीतिक जाल पूर्व मंत्री शीशराम ओला ने बिछाया था, क्योंकि सुमित्रा सिंह झुन्झुनू में ओला के पुत्र को लगातार शिकस्त दे रही थीं. यह चुनाव हारने के बाद उन्होंने 2013 में वापसी का प्रयास किया. उन्होंने झुन्झुनू में भाजपा का टिकट मांगा. हालांकि, टिकट नहीं मिलने पर उन्होंने निर्दलीय चुनाव भी लड़ा, लेकिन नाकामी मिली. बाद में वापस कांग्रेस में भी आईं, लेकिन इस तरह 9 बार की विधायक का राजनीतिक करियर खत्म हो गया.