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झुंझुनूः डफ की धुन, लोक गीतों की बहार...लो आ गया होली का त्योहार - डफ की थाप

एक समय हुआ करता था जब ग्रामीण क्षेत्रों में मनोरंजन के कोई और साधन नहीं होते थे. स्थानीय लोकगीतों और नाच, स्वांग से ही लोग खुश रहा करते थे. ऐसे में जब होली के दिनों में फागुन आता था और ग्रामीणों की मस्ती अपने पूरे परवान पर होती थी, तो गांव के लोग ऊंची आवाज में फागुन की धमाल गाते थे और उनका वाद्ययंत्र होता था डफ, जिसे चंग के रूप में भी जाना जाता है.

झुंझुनू न्यूज, jhunjhunu news
डफ की धुन पर झूमता राजस्थान

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Published : Mar 4, 2020, 4:59 PM IST

झुंझुनू.होली का त्योहार दरवाजे पर दस्तक दे रहा है. हर तरफ लोग इसकी तैयारियों में जोर-शोर से जुटे हुए हैं. दुनिया भर में होली को अलग-अलग और खास अंदाज में मनाया जाता है. वहीं शेखावटी में मनाई जाने वाली होली के भी अपने कुछ खास पहलू हैं. शेखावटी में होली फागुन के धमाल और डफ के साथ मनाई जाती है. डफ को यहां लोग चंग के नाम से भी बुलाते हैं. यहां के डफ और चंग अपनी विशेषताओं के लिए प्रसिद्ध हैं.

आम की लकड़ी के घेरे और उसके ऊपर भेड़ की खाल से तैयार किया हुए इस डफ पर जब हल्की सर्दी की रात में थाप पड़ती है तो हवा में मधुर संगीत घुल जाता है. इसकी आवाज कई किलोमीटर तक सुनाई देती है, जिसे सुनने गांव के लोग दूर-दूर से चले आते हैं. डीजे के शोर वाले इस जमाने में डफ के साथ बांसुरी की मधुर धुन और मंजीरों की खनक बेहद कर्णप्रिय होती है.

डफ की धुन पर झूमता राजस्थान

चंग को बनाने के लिए भेड़ की खाल की काफी मांग रहती है. वहीं चंग का घेरा बनाना सबसे मेहनत का काम होता है. डफ के घेरे के लिए विशेष तौर पर आम की लकड़ी काम में ली जाती है, जो खास तौर पर उदयपुरवाटी के चिराना कस्बे और यूपी-बिहार से मंगाई जाती है. एक चंग बनाने में 4 घंटे का समय लगता है और इसे सुखाने के लिए 2 दिन का. लकड़ी के घेरे पर कवर लगाने के लिए मेथी और सिलिकॉन का विशेष घोल बनाया जाता है. इसे विशेष कारीगर ही तैयार कर सकते हैं.

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झुंझुनू, बिसाऊ, मंडावा, महनसर, चिराना में ढप और चंग बनाने का काम शुरू हो गया है. झुंझुनू शहर में खटीकों के मंदिर के पास कई परिवार पीढ़ियों से डफ और चंग बनाने का काम करते आ रहे हैं. इसके लिए होली के 20 दिन पहले से ही वे इनके निर्माण में जुट जाते हैं. हांलाकि डीजे के इस नए दौर में डफ का क्रेज लोगों में धीरे-धीरे कम हो रहा है. लेकिन कुछ दशकों पहले तो यहां के ढप और चंग की विदेशों तक में मांग होती थी. वहां रहने वाले, यहां के लोग इनको खास तौर पर लेकर जाते थे. अब यह मांग थोड़ी कम हो गई है. हालांकि इसके बाद भी हर साल डफ और चंग के शौकीन इनको नए रूप में तैयार करते हैं.

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