मंडावा की सूखी होली ने बनाई खास पहचान झुंझुनू. मंडावा कस्बे की होली व धुलंडी पर्व पर पिछले 125 सालों से चली आ रही परंपरा को कस्बेवासी आज भी निभा रहे हैं. कस्बे में धुलंडी के दिन गुलाल से सुखी होली खेली जाती है, जो कि पानी संकट के इस दौर में बाकी लोगों के लिए प्रेरणादायक है. यहां की फाल्गुनी मस्ती से सराबोर होने व जुलूस को देखने सात समंदर पार से सैलानियों के ग्रुप भी आते हैं. इस पर्व पर शालिनता की नींव डालने वाले वैद्य लक्ष्मीधर शुक्ल के प्रयासों को कभी नहीं भुलाया जा सकता. उनके बताए मार्ग पर आज भी लोग चल रहे हैं.
शुक्ल के प्रयासों से बदली होली की परंपराः वैद्य लक्ष्मीधर शुक्ल के प्रयासों से मंडावा में होली खेलने व मनाने का तरीका बदला था. व्यायामशाला के अध्यक्ष सुरेश पालड़ीवाला ने बताया कि वैद्य शुक्ल ने अखाड़ा श्री सर्व हितेषी व्यायामशाला संस्था का गठन कर होली के पर्व पर होने वाली अश्लीलता व फुहड़पन दूर करने का बीड़ा उठाया था. साथ ही भाईचारा बनाए रखने को लेकर पहल की थी, जिससे किसी प्रकार से लोगों के बीच मन मुटाव नहीं हो.
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इस दौरान ही शुक्ल ने सभी समुदाय में भाईचारा कायम रखने की पहल कर एक नई परंपरा कायम की थी. उस दौरान व्यक्ति को चारपाई पर लिटाकर भीड़ के साथ धुलंडी का जुलूस निकालना शुरू किया था. 125 साल पहले शुरू किया गया प्रयास आज कस्बे वासियों के लिए परंपरा बन गया है. सभी के सामूहिक योगदान व सहयोग से मंडावा में होली महोत्सव की सांस्कृतिक परंपरा और मान्यता का आदर्श रूप आज भी कायम है.
धुलंडी पर निकाली जाने वाली गेर में काफी लोग शामिल होते हैं. साथ ही हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदाय के लोग एक दूसरे को गुलाल का तिलक लगाकर शुभकामनाएं देते हुए होली की मस्ती का भरपूर आनंद उठाते हैं. रंग डालने के लिए पानी की एक बूंद भी बर्बाद नहीं करते हैं. सभी एक दूसरे को सुखा गुलाल लगाते हैं. ऐसी सभ्य होली पर्व को देखकर लोगों के हुजूम में विदेशी पर्यटक भी शामिल होकर फाल्गुनी बयार में झूम उठते हैं. मंडावा ही नहीं बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों से लोग होली खेलने उमड़ पड़ते हैं. मंडावा में गुलाल के अलावा पक्के रंग या कीचड़ से होली खेलने पर अघोषित सामाजिक प्रतिबंध है. धुलंडी की गैर जब मुख्य मार्गों से गुजरती है तो महिलाओं की भीड़ बिना किसी भय के बेफ्रिक होकर नए कपड़े पहनकर गैर के जुलूस को देखने घरों से बाहर निकलती हैं.
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घोड़े पर चलते थे शुक्लःवैद्य लक्ष्मीधर शुक्ल घोड़े पर सवारी करते थे. यह उनकी पहचान थी. आम व्यक्ति इनको घोड़े वाले वैद्यजी के नाम से ही जानते थे. घोड़े को हांकने के लिए एक सेवक हमेशा साथ चलता था. धर्म का ज्ञान बांटने वाले वैद्य जब घोड़े पर सवार होकर जाते तो उनके एक हाथ में ध्वज रहता था और खाली समय में लोगों का जमावड़ा इनके साथ रहता था. जब बंसत पंचमी से अखाड़ा में होली महोत्सव का शुभारंभ किया जाता है तो आज भी शुक्ल के चित्र के समक्ष पूजन कर झंडा गाड़ा जाता है. जुलूस के दौरान इनकी झांकी ध्वज के साथ चलती है.
भीलवाड़ा में फुलडोल माहोत्सव :भीलवाड़ा जिले के शाहपुरा में रामस्नेही संप्रदाय के वार्षिक फूलडोल का मुख्य महोत्सव का धुलंडी के दिन से ही आगाज हो गया है. यह महोत्सव पांच दिन का होता है पर इस बार छह दिन का हो रहा है. यह महोत्सव रंग पंचमी तक चलेगा. नगरपालिका शाहपुरा की ओर से अस्थाई मेला परिसर में 300 दुकानों का निर्माण कराया गया है. नगर पालिका मेले में आने वालों के मनोरंजन के लिए कार्यक्रम भी करवा रही है. इसके अलावा डोलर, चकरी वालों सहित अन्य मनोरंजन के साधनों का उत्साह बना हुआ है.