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झुंझुनू : सूर्य ग्रहण के बाद लोहार्गल में इस बार नहीं लगेगी आस्था की डूबकी

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Published : Jun 21, 2020, 4:35 PM IST

सूर्य ग्रहण के बाद धार्मिक स्नान की परंपरा सदियों से चली आ रही है. लेकिन ऐसा पहली बार होगा जब सूर्य ग्रहण पर श्रद्धालु लोहार्गल में आस्था की डुबकी नहीं लगा सकेंगे. पढ़ें पूरी खबर...

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लोहार्गल में स्नान पर कोरोना ने लगाया ग्रहण

झुंझुनू.कोरोना महामारी ने ना सिर्फ इंसान बल्कि तीज-त्योहार और यहां तक की अब ग्रहण को भी अपने आगोश में ले लिया है. यही वजह है कि रविवार को सूर्य ग्रहण के बाद धार्मिक स्नान पर प्रतिबंध रहेगा. झुंझुनू जिले से 70 किमी दूर आड़ावल पर्वत की घाटी में बसे लोहार्गल में भी इस बार लोग स्नान नहीं कर पाएंगे.

हर साल लोहार्गल कुण्ड में स्नान करने के लिए दर्शनार्थियों की काफी भीड़ इकट्ठा होती थी. लेकिन कोविड-19 के संक्रमण के फैलाव को रोकने के लिए इस बार कुंड को बंद कर दिया गया है.

लोहार्गल में स्नान पर कोरोना ने लगाया ग्रहण

स्थान का है विशेष महत्व

लोहार्गल का अर्थ है- वह स्थान जहां लोहा गल जाए. पुराणों में भी इस स्थान का जिक्र मिलता है. नवलगढ़ तहसील में स्थित इस तीर्थ 'लोहार्गल जी' को स्थानीय अपभ्रंश भाषा में लुहागरजी कहा जाता है. झुंझुनू जिले में अरावली पर्वत की चोटियां उदयपुरवाटी तहसील से प्रवेश कर खेतड़ी, सिंघाना तक निकलती हैं, जिसकी सबसे ऊंची चोटी 1050 मीटर लोहार्गल में है. मान्यता है कि यहां स्नान करने से सारे कष्ट दूर हो जाते हैं.

इसलिए भी है विशेष आस्था

कहा जाता है कि महाभारत युद्ध के समाप्त होने के बाद पांडव जब अपने भाई बंधुओं और अन्य स्वजनों की हत्या करने के पाप से अत्यंत दुःखी थे, तब भगवान श्रीकृष्ण की सलाह पर वे पाप मुक्ति के लिए विभिन्न तीर्थ स्थलों के दर्शन करने के लिए गए. श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया था कि जिस तीर्थ में तुम्हारे हथियार पानी में गल जाएंगे, वहीं तुम्हारा पाप मुक्ति का मनोरथ पूर्ण होगा.

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ऐसे में घूमते-घूमते पांडव लोहार्गल आ पहुंचे और जैसे ही उन्होंने यहां के सूर्यकुण्ड में स्नान किया, उनके सारे हथियार गल गए थे. उन्होंने इस स्थान की महिमा को समझ इसे तीर्थ राज की उपाधि से विभूषित किया था.

भगवान परशुराम का भी है नाम

लोहार्गल से भगवान परशुराम का भी नाम जुड़ा हुआ है. कहा जाता है कि इस जगह पर परशुराम जी ने भी पश्चाताप के लिए यज्ञ किया था और पाप से मुक्ति पाई थी. विष्णु के छठें अंशावतार भगवान परशुराम ने क्रोध में क्षत्रियों का संहार कर दिया था, लेकिन शान्त होने पर उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ था.

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यहां एक विशाल बावड़ी भी है. जिसका निर्माण महात्मा चेतनदास जी ने करवाया था. यह राजस्थान की सबसे बड़ी बावड़ियों में से एक मानी जाती है. पास ही पहाड़ी पर एक प्राचीन सूर्य मन्दिर बना हुआ है. इसके साथ ही वनखण्डी जी का मन्दिर है. कुण्ड के पास ही प्राचीन शिव मन्दिर, हनुमान मन्दिर और पांडव गुफा स्थित है. इनके अलावा चार सौ सीढ़ियां चढ़ने पर मालकेतु जी के दर्शन किए जा सकते हैं.

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