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सरकारी स्कूल की बदहाली का इससे बुरा उदाहरण कहीं नहीं मिलेगा - jhunjhunu

सरकार शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए लक्ष्य रखती है की सरकारी स्कूल निजी स्कूलों को टक्कर देने के साथ उनसे बेहतर होंगे. लेकिन ऐसे सरकारी नुमाइंदों को झुंझुनू के खिंवासर स्कूल का दौरा करने की जरूरत है, जहां के हालात देखकर समझ आ जाएगाकि सरकारी स्कूलों का ढर्रा कितना बिगड़ा हुआ है.

बदहाल सरकारी स्कूल

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Published : Jul 10, 2019, 7:18 PM IST

झुंझुनू. स्कूल में 5 बच्चे और उन पर 7 अध्यापक, इसके बाद भी परीक्षा परिणाम शून्य है. उदयपुरवाटी पंचायत समिति की खीवासर की संस्कृत स्कूल आपको सरकारी सिस्टम की बदहाली का बुरा उदाहरण नजर आएगी. इस पूरी स्कूल में कक्षा 8 में दो, कक्षा नौ में दो व दसवीं में केवल एक विद्यार्थी है.

बदहाल सरकारी स्कूल

परीक्षा परिणाम रहा शून्य

इस साल दसवीं का परिणाम शून्य रहा. 2017-18 में भी दसवीं में 3 बच्चे बैठे जिनमें एक ही उत्तीर्ण हुआ. इसी तरह 2016-17 में भी परिणाम शून्य रहा. 2015 में 10 बच्चों ने परीक्षा दी थी, इनमें से सिर्फ दो बच्चे पास हुए. लगातार खराब परिणाम का कारण यह भी है कि यहां 17 साल से गणित के शिक्षक का पद ही स्वीकृत नहीं है. स्कूल में 2012 से प्रधानाध्यापक नहीं है. इनके अलावा विज्ञान, हिंदी, सामाजिक ज्ञान के शिक्षक भी नहीं है. एक महिला टीचर चाइल्ड केयर लीव पर है.

इस स्कूल के अलावा पूरे जिले में चल रही संस्कृत की 7 स्कूलों यह संकुल भी है. इन्हीं शिक्षकों के पास स्कूलों के वेतन बनाने, उनके सर्विस रिकॉर्ड को अपडेट करने का काम भी है. 2006-07 के सत्र में यहां 103 बच्चे थे. लेकिन इसके बाद से बच्चों की संख्या कम होती गई. अब सिर्फ दो ही बच्चे हैं यहां 10 सेट वाले कंप्यूटर लेब भी हैं, जिसमें एलईडी लगा है और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा है, लेकिन सभी कंप्यूटर पर धूल जमी है.

तब हुए थे भागीरथी प्रयास

दरअसल कई साल पहले दूसरे जिले से स्थानांतरित कर संस्कृत की एक प्राइमरी स्कूल को यहां उबली बालाजी स्टैंड खिंवासर लाया गया था. 90 के दशक में उदयपुरवाटी के विधायक रहे शिवनाथ सिंह गिल और तत्कालीन संस्कृत शिक्षा मंत्री कमला बेनीवाल के प्रयासों से इसे पहले आठवीं और बाद में दसवीं तक तो बना दिया गया लेकिन यहां दसवीं में बच्चें कभी 15 से ज्यादा नहीं रहे. स्कूल के टीचर बताते हैं 2006-07 के सत्र तक अंतिम बार यहां 103 बच्चे हुआ करते थे, लेकिन अध्यापकों के अभाव के कारण अभिभावकों ने बच्चें स्कूल से किनारा कर लिया. हाल ही में नामांकन के लिए शिक्षकों ने आसपास के घरों में दौरा किया लेकिन लोगों ने शिक्षकों के अभाव होने की बात कहकर बच्चों के प्रवेश के लिए मना कर दिया.

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