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बाबा रामदेवजी का वार्षिक लक्खी मेला शुरू

लोकदेवता बाबा रामदेवजी का वार्षिक लक्खी मेला ज्योति प्रकट होने के साथ ही शुरू हो गया है. रूप निवास पैलेस से रवाना होकर बाबा का घोड़ा रामसापीर दरबार पहुंचा. घोड़े के पहुंचते ही बाबा रामदेव जी की ज्योति प्रकट हुई और वार्षिक लक्खी मेला शुरू हो गया.

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Published : Sep 7, 2019, 11:21 PM IST

नवलगढ़/झुंझुनू. लोकदेवता बाबा रामदेवजी का मेला शनिवार शाम बाबा की ज्योति प्रकट होने के साथ ही शुरू हो गया. राजा नवलसिंह की रूपनिवास कोठी से बाबा रामदेव का घोड़ा रवाना हुआ. इस बार घोड़े के साथ काफी श्रद्धालुओं ने हाथों में निशान भी थामे. कोठी से मंदिर निशान पदयात्री बाबा के जयकारे लगाते पहुंचे. घोड़े के मंदिर में पहुंचते ही बाबा रामदेवजी की ज्योत प्रकट हुई और इसके साथ ही मेले का विधिवत् आगाज हो गया.

बाबा रामदेवजी का वार्षिक लक्खी मेला शुरू

घोड़े ने बाबा रामदेवजी के फेरी लगाई. पदयात्रा के मार्ग में साफ-सफाई की विशेष व्यवस्था की गई. पदयात्रा में रावल देवेंद्रसिंह शेखावत, समाजसेवी गिरधारीलाल इंदोरिया, समाजसेवी कैलाश चोटिया, सुरेंद्रसिंह शेखावत, भाजपा नेता योगेंद्र मिश्रा, सुनील सांभरा, बुलाकी शर्मा, यग्नेश कुमार, ओमी पंडित, सुधीर सेवका, विनय पोद्दार, प्रकाश रूंथला, विशाल पंडित समेत भारी संख्या में लोग शामिल थे. सीआई महावीरसिंह राठौड़ और सीआई किशोरसिंह मय जाब्ता व्यवस्था पर नजर बनाए हुए थे.

रामसापीर के मेले में रात को जलती हैं मशालें:
आधुनिक समय होने के बावजूद भी बाबा रामदेवजी के मेले में रोशनी के लिए रात को मशालें जलाई जाती हैं. स्थानीय सैन समाज पुरखों से इस परंपरा से जुड़ा है. प्राचीन समय में इन मशालों से रात के समय रोशनी और सुरक्षा दोनों की जाती थीं.

प्राचीन घटनाओं के प्रमाण हैं मौजूद:
बाबा रामसापीर की मान्यता के बारे में कहा जाता है कि एक बार नवलगढ़ के राजा नवलसिंह दिल्ली के बादशाह को कर चुकाने जा रहे थे. उस समय चिड़ावा में एक महिला अपने बेटे की शादी में भात करने के लिए अपने चचेरे भाइयों का इंतजार कर रही थी, उसके भाई नहीं पहुंचे तो लोग उस महिला का उपहास उड़ाने लगे. उस समय राजा नवलसिंह चिड़ावा से ही गुजर रहे थे, जब उन्हें इस वाकये की सूचना मिली तो उन्होंने उस महिला का भाई बनकर कर की रकम में से 22 हजार का भात भरा और वापस नवलगढ़ लौट आए.

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दिल्ली बादशाह के दरबार में कर नहीं पहुंचने पर वहां से सैनिक भेजे गए और राजा नवलसिंह को दिल्ली में बंदी बना लिया. राजा की पत्नी बाबा रामदेव में गहरी आस्था रखती थीं. भक्ति से प्रसन्न होकर जेल में ही राजा नवलसिंह को दर्शन दिए और उनका घोड़ा राजा को जेल छुड़ाकर नवलगढ़ ले आया. राजा को नवलगढ़ लाने के बाद बाबा का घोड़ा अंतर्ध्यान हो गया. यहां सिर्फ घोड़े के चरण शेष रहे और फिर सन् 1776 में यहां बाबा रामदेव के मंदिर का निर्माण करवाया गया. इस पूरी के जीवित प्रमाण आज भी मंदिर में भित्ति चित्रों के रुप में देखे जा सकते हैं. नवलगढ़ के बाबा रामसापीर मंदिर की रूणीचा धाम जैसी मान्यता है.

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