खेतड़ी. देश की सरहद पर मर मिटने वाले रणबांकुरों का जब नाम आता है, तो झुंझुनू जिला सबसे अग्रणी पंक्ति में खड़ा दिखाई देता है. चाहे 1971 का युद्ध हो या कारगिल वार हो, आज भी देश की सरहद पर सबसे ज्यादा शहादत देने का गौरव झुंझुनू जिले को ही मिला हुआ है. स्वतंत्रता सेनानी से लेकर सभी युद्धों में झुंझुनू के वीरों ने अपने अदम्य साहस का परिचय देते हुए वीरगाथा लिखी है. आज पाकिस्तान पर 1971 की युद्ध विजय का विजय दिवस है. उसी युद्ध में भाग लेने वाले खेतड़ी के दो बहादुर जवानों की कहानी हम बताते हैं, जिन्होंने 17 दिन भूखे रहकर भी सीने पर गोली खाकर पाकिस्तानी सेना को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया (Jhunjhunu soldier role in 1971 Indo Pak war) था.
खेतड़ी तहसील के मीनावाली ढाणी के भगवान सिंह पुत्र मूंग सिंह ने 1965 व 1971 की लड़ाई में अपने अदम्य साहस का परिचय दिया था. उन्होंने बताया कि वह सेना की अट्ठारह राजपूताना रेजिमेंट में 1963 में भर्ती हुए थे. ट्रेनिंग के तुरंत बाद ही वह 1965 की लड़ाई में भाग लेने के लिए चले गए और उन्हें उसके बाद 71 की लड़ाई में देश सेवा करने का मौका मिला. उन पर गोलियों के छर्रे लगे थे, लेकिन हार नहीं मानी. उस समय वे पाकिस्तान के पूर्वी क्षेत्र में तैनात थे. 16 दिसंबर को पाकिस्तान के लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी ने भारत के लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह के सामने घुटने टेक आत्मसमर्पण कर दिया था और पाकिस्तान के 93000 सैनिकों को सरहद से भगा दिया था.
पढ़ें:विजय दिवस: जब सिर्फ 13 दिन में ही भारत ने पाकिस्तान को घुटनों पर ला दिया
इसी युद्ध में जम्मू कश्मीर के राजौरी में भाग लेने वाले खेतड़ी तहसील के ही आशाकाला वाली ढाणी के नायब सूबेदार सुमेर सिंह पुत्र सुगंन सिंह ने बताया कि वह 1968 में भारतीय सेना की 14 ग्रेनेडियर में सिपाही के रूप में कार्यरत थे. 13 दिसंबर, 1971 में राजौरी सेक्टर पर तैनात थे. वहां से कंपनी के आदेशानुसार उन्होंने पाकिस्तान की दूर्चीयां पोस्ट पर अटैक किया और आमने-सामने की बैनेट मुठभेड़ में पाकिस्तान के 8 से 10 जवानों को मौत के घाट उतारा और उनकी पोस्ट पर कब्जा कर लिया.