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चंद्रमौलेश्वर महादेव मंदिर : जहां पर चंद्रभागा नदी में स्नान के पश्चात पूजा करने पर होती है सभी मनोकामनाएं पूर्ण

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Published : Aug 3, 2020, 9:53 AM IST

झालरापाटन में 1300 सालों से अधिक प्राचीन शिव मंदिर है. जहां सावन महीने में विशेष पूजा-अर्चना होती है. वहीं मान्यता है कि चंद्रभागा नदी में स्नान कर पूजा करने से सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

Chandramouleshwar Mahadev temple of jhalarapatan, झालरापाटन न्यूज
चंद्रमौलेश्वर महादेव मंदिर की सावन में होती है खास मान्यता

झालावाड़. जिले के झालरापाटन में चंद्रभागा नदी के तट पर प्राचीन चंद्रमौलेश्वर महादेव मंदिर स्थित है. जिसको लेकर मान्यता है कि चंद्रभागा नदी में स्नान करने के पश्चात मंदिर में पूजा-अर्चना करने से लोगों सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है. ऐसे में यहां पर सावन के महीने में दूर-दूर से श्रद्धालु विशेष पूजा अर्चना करने के लिए आते हैं.

चंद्रमौलेश्वर महादेव मंदिर की सावन में होती है खास मान्यता

भगवान शिव की भक्ति के लिए सावन का महीना सबसे खास माना जाता है. सावन के महीने में जहां व्रत और उपवास रखे जाते हैं तो कांवड़ यात्राएं भी निकाली जाती हैं. सावन के पूरे महीने में श्रद्धालु शिव भक्ति में डूबे हुए रहते हैं. ऐसे में ईटीवी भारत की टीम राजस्थान के सबसे प्राचीन शिव मंदिरों में से एक चंद्रमौलेश्वर महादेव मंदिर के बारे में बता रही है, जो हाड़ौती की गंगा कही जाने वाली चंद्रभागा नदी के किनारे पर स्थित है. जहां की मान्यता है कि नदी में स्नान करने के बाद मंदिर में पूजा अर्चना करने से श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है.

इस बार नहीं हुआ कोई महोत्सव

इस मंदिर में न सिर्फ सावन महीने में बल्कि प्रत्येक सोमवार, कार्तिक पूर्णिमा और महाशिवरात्रि में पूजा अर्चना दर्शनीय होती है. इस अवसर पर हजारों भक्त और पर्यटक मंदिर में उमड़ते हैं. सावन के महीने में मंदिर में सावन महोत्सव का आयोजन करवाया जाता है. जिसके तहत प्रति दिन शिवजी का विशेष श्रृंगार और पूजा-अर्चना होती है. इस बार कोरोना के चलते महोत्सव का आयोजन तो नहीं किया गया है लेकिन सोशल डिस्टेंसिंग के साथ मंदिर में श्रद्धालुओं को दर्शन व पूजा अर्चना करवाई जाती है.

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महमूद गजनबी ने मंदिर तोड़ने का किया था प्रयास

मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष रमेश चंद्र ने बताया कि चंद्रमौलेश्वर मंदिर का निर्माण 689 ईसवी में करवाया गया था. ऐसे में ये करीबन 1300 वर्षों से अधिक पुराना मंदिर है. जिसके चलते राजस्थान के प्राचीनतम शिव मंदिरों में इसका नाम आता है. बताया जाता है कि महमूद गजनबी ने भी इस मंदिर पर तोड़ने का प्रयास किया था और नंदी को खंडित भी कर दिया था लेकिन पूर्ण तरीके से वो मंदिर तोड़ने में सफल नहीं हो पाया था.

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उसके अलावा उज्जैन के राजा चंद्रसेन जो कुष्ठ रोग से पीड़ित थे. उन्होंने चंद्रभागा नदी में स्नान करके मंदिर में पूजा की थी. जिसके बाद उनको रोग से मुक्ति मिली थी. मंदिर शिवलिंग को लेकर कहा जाता है कि चंद्रमा को शीश पर धारण करने के कारण शिवजी को चंद्रभाल, चंद्रचूड़ व चंद्रमौलेश्वर भी कहते हैं. ऐसे में यहां का शिवलिंग उनके इसी स्वरूप का दर्शन करवाता है.

सावन महोत्सव होता है विशेष आकर्षण का केंद्र

चंद्रमौलेश्वर मंदिर से लोगों की अनेक धार्मिक और आध्यात्मिक मान्यताएं जुड़ी हुई हैं. जिसके चलते झालरापाटन सहित आसपास के अनेक क्षेत्रों से लोग यहां पर आते हैं. सावन के महीने में यहां पर सावन महोत्सव विशेष आकर्षण का केंद्र होता है लेकिन कोरोना के चलते इस बार सावन महोत्सव का आयोजन टाल दिया गया है. फिर भी लोग बड़ी संख्या में मंदिर में पूजा अर्चना करने के लिए पहुंचते हैं.

सावन में मंदिर में होती है विशेष पूजा

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मंदिर में दर्शन के लिए आए श्रद्धालुओं ने बताया कि वे सालों से यहां पर मंदिर में दर्शन के लिए आ रहे हैं. हर सोमवार को वो यहां पर पूजा अर्चना करते हैं. जिससे उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है.

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