झालावाड़. पूरे विश्व में आज बुधवार को अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन दिवस मनाया जा रहा है. हर साल 27 सितंबर को विश्व में अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन दिवस मनाया जाता है. किसी देश की अर्थव्यवस्था में पर्यटन का काफी अहम योगदान होता है. बाहर से आने वाले विदेशी पर्यटक लोकल एरिया में होटल, रेस्टोरेंट तथा दर्शनीय व ऐतिहासिक स्थलों पर लगने वाले टिकट पर पैसा खर्च करते हैं. जिससे देश के राजस्व में बढ़ोतरी होती है. ऐसे में पर्यटन को विश्व में किसी भी देश के राजस्व में बढ़ोतरी का एक अच्छा जरिया माना जाता है. वैसे तो भारत में कई ऐतिहासिक तथा दर्शनीय स्थल मौजूद हैं. जिन्हें देखने के लिए पूरे विश्व से बड़ी संख्या में पर्यटक भारत आते हैं किंतु देश में राजस्थान को देखने के लिए हर वर्ष पूरे विश्व से बड़ी संख्या में पर्यटक पहुचते हैं. भारत में राजस्थान को वीरों की भूमि माना जाता है ऐसे में इतिहास पर नजर डालें तो यहां प्राचीन समय में कई राजाओं व उनके सिपहसालारों की ओर से कई नायाब दुर्ग व इमारतें बनाई गई है. जिन्हें देखने के लिए विश्व भर के पर्यटक प्रदेश में प्रतिवर्ष आते हैं. ऐसे में राजस्थान में पर्यटन भी प्रदेश के राजस्व को बढ़ाने का मुख्य जरिया है.
प्रदेश के झालावाड़ जिले में ऐसी ही दर्शनीय तथा ऐतिहासिक इमारत गागरोन दुर्ग के रूप में स्थित है. जो कि जल दुर्ग की श्रेणी में आता है. इसे धुलरगढ़, डोडगढ के नाम से भी जाना जाता है. इसका निर्माण 11वीं शताब्दी में राजा बीसलदेव की ओर से कालीसिंध तथा आहू नदी के संगम पर करवाया गया था. ऐसा माना जाता है कि यह किला बिना नींव खोदे विशाल चट्टान पर बना है. प्राचीन काल में यहां दो साके के भी देखने को मिले हैं. किले में जहां औरंगजेब की ओर से निर्मित बुलंद दरवाजा भगवान मधुसूदन मंदिर सिक्के बनाने की टकसाल आदि कई दर्शनीय स्थल मौजूद हैं. वहीं इस ऐतिहासिक दुर्ग को विश्व धरोहर में भी शामिल किया गया है लेकिन वर्तमान में सरकार की उपेक्षा के चलते यहां संसाधनों की कमी बनी हुई है.
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ऐतिहासिक जलदुर्ग विश्व धरोहर में शामिल :झालावाड़ जिले की ऐतिहासिक विरासत जलदुर्ग गागरोन को यूनेस्को की ओर से 21 जून 2013 को कंबोडिया के नोमपेन्ह शहर में विश्व धरोहर में शामिल किया गया था. यह झालावाड़ जिले सहित पूरे देश के लिए एक गौरव की बात थी. विश्व विरासत में शामिल गागरोन जलदुर्ग के माध्यम से झालावाड़ जिले को विश्व में अलग पहचान मिली थी. वहीं पर्यटन को भी खासा बढ़ावा मिलने की उम्मीद थी. लेकिन सरकार की उदासीनता व प्रशासन की लापरवाही के चलते ऐतिहासिक दुर्ग को देखने आने वाले पर्यटकों को आवश्यक संसाधनों की कमियों का सामना करना पड़ता है.
दुर्ग में रेस्टोरेंट, गार्डन, हाथी, घोड़ा सवारी का अभाव:विश्व धरोहर में शामिल होने के 10 वर्ष गुजर जाने के बाद भी राजस्थान की इस ऐतिहासिक इमारत में पर्यटकों के लिए ना कोई रेस्टोरेंट, गार्डन विकसित किया गया है ना ही पर्यटकों को लुभाने के लिए अन्य दुर्गों की तरह हाथी घोड़ा जैसी सवारी का प्रबंध जिला प्रशासन या पर्यटक विभाग की तरफ से किया गया है. ऊंची चट्टान पर बने इस किले का क्षेत्रफल काफी विस्तृत है. साथ ही दुर्ग ऊंचाई पर स्थित होने की वजह से यहां कई साइटें हैं जहां फोटोग्राफी की अच्छी लोकेशन दिखाई देती है.