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World Tourism Day 2023 : विश्व धरोहर गागरोन दुर्ग हुआ उपेक्षा का शिकार, पर्यटकों के लिए सुविधा का अभाव

प्रदेश के झालावाड़ जिले में ऐतिहासिक इमारत गागरोन दुर्ग सरकारी उपेक्षा का शिकार हो गया है. बता दें कि गागरोन दुर्ग जल दुर्ग की श्रेणी में आता है. जिसका निर्माण 11वीं शताब्दी में राजा बीसलदेव ने कालीसिंध तथा आहू नदी के संगम पर करवाया था.

विश्व धरोहर गागरोन दुर्ग है उपेक्षा का शिकार
विश्व धरोहर गागरोन दुर्ग है उपेक्षा का शिकार

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Sep 27, 2023, 2:28 PM IST

गागरोन दुर्ग हो रहा है उपेक्षा का शिकार

झालावाड़. पूरे विश्व में आज बुधवार को अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन दिवस मनाया जा रहा है. हर साल 27 सितंबर को विश्व में अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन दिवस मनाया जाता है. किसी देश की अर्थव्यवस्था में पर्यटन का काफी अहम योगदान होता है. बाहर से आने वाले विदेशी पर्यटक लोकल एरिया में होटल, रेस्टोरेंट तथा दर्शनीय व ऐतिहासिक स्थलों पर लगने वाले टिकट पर पैसा खर्च करते हैं. जिससे देश के राजस्व में बढ़ोतरी होती है. ऐसे में पर्यटन को विश्व में किसी भी देश के राजस्व में बढ़ोतरी का एक अच्छा जरिया माना जाता है. वैसे तो भारत में कई ऐतिहासिक तथा दर्शनीय स्थल मौजूद हैं. जिन्हें देखने के लिए पूरे विश्व से बड़ी संख्या में पर्यटक भारत आते हैं किंतु देश में राजस्थान को देखने के लिए हर वर्ष पूरे विश्व से बड़ी संख्या में पर्यटक पहुचते हैं. भारत में राजस्थान को वीरों की भूमि माना जाता है ऐसे में इतिहास पर नजर डालें तो यहां प्राचीन समय में कई राजाओं व उनके सिपहसालारों की ओर से कई नायाब दुर्ग व इमारतें बनाई गई है. जिन्हें देखने के लिए विश्व भर के पर्यटक प्रदेश में प्रतिवर्ष आते हैं. ऐसे में राजस्थान में पर्यटन भी प्रदेश के राजस्व को बढ़ाने का मुख्य जरिया है.

प्रदेश के झालावाड़ जिले में ऐसी ही दर्शनीय तथा ऐतिहासिक इमारत गागरोन दुर्ग के रूप में स्थित है. जो कि जल दुर्ग की श्रेणी में आता है. इसे धुलरगढ़, डोडगढ के नाम से भी जाना जाता है. इसका निर्माण 11वीं शताब्दी में राजा बीसलदेव की ओर से कालीसिंध तथा आहू नदी के संगम पर करवाया गया था. ऐसा माना जाता है कि यह किला बिना नींव खोदे विशाल चट्टान पर बना है. प्राचीन काल में यहां दो साके के भी देखने को मिले हैं. किले में जहां औरंगजेब की ओर से निर्मित बुलंद दरवाजा भगवान मधुसूदन मंदिर सिक्के बनाने की टकसाल आदि कई दर्शनीय स्थल मौजूद हैं. वहीं इस ऐतिहासिक दुर्ग को विश्व धरोहर में भी शामिल किया गया है लेकिन वर्तमान में सरकार की उपेक्षा के चलते यहां संसाधनों की कमी बनी हुई है.

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ऐतिहासिक जलदुर्ग विश्व धरोहर में शामिल :झालावाड़ जिले की ऐतिहासिक विरासत जलदुर्ग गागरोन को यूनेस्को की ओर से 21 जून 2013 को कंबोडिया के नोमपेन्ह शहर में विश्व धरोहर में शामिल किया गया था. यह झालावाड़ जिले सहित पूरे देश के लिए एक गौरव की बात थी. विश्व विरासत में शामिल गागरोन जलदुर्ग के माध्यम से झालावाड़ जिले को विश्व में अलग पहचान मिली थी. वहीं पर्यटन को भी खासा बढ़ावा मिलने की उम्मीद थी. लेकिन सरकार की उदासीनता व प्रशासन की लापरवाही के चलते ऐतिहासिक दुर्ग को देखने आने वाले पर्यटकों को आवश्यक संसाधनों की कमियों का सामना करना पड़ता है.

दुर्ग में रेस्टोरेंट, गार्डन, हाथी, घोड़ा सवारी का अभाव:विश्व धरोहर में शामिल होने के 10 वर्ष गुजर जाने के बाद भी राजस्थान की इस ऐतिहासिक इमारत में पर्यटकों के लिए ना कोई रेस्टोरेंट, गार्डन विकसित किया गया है ना ही पर्यटकों को लुभाने के लिए अन्य दुर्गों की तरह हाथी घोड़ा जैसी सवारी का प्रबंध जिला प्रशासन या पर्यटक विभाग की तरफ से किया गया है. ऊंची चट्टान पर बने इस किले का क्षेत्रफल काफी विस्तृत है. साथ ही दुर्ग ऊंचाई पर स्थित होने की वजह से यहां कई साइटें हैं जहां फोटोग्राफी की अच्छी लोकेशन दिखाई देती है.

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पर्यटन विकास समिति की है ये मांग :झालावाड़ की पर्यटन विकास समिति ने गागरोन दुर्ग परिसर में रेस्टोरेंट, गार्डन तथा घोड़ा तथा हाथी सवारी जैसी पर्यटकों को आकर्षित करने वाले संसाधनो की मांग कई बार की है. ऐसे में विश्व पर्यटन दिवस के अवसर पर जिले की विश्व धरोहर जल दुर्ग गागरोंन की दुर्दशा को देखकर झालावाड़वासी सहित यँहा पहुचने वाले पर्यटक भी निराश है. पर्यटन विकास समिति अध्यक्ष ओम पाठक ने बताया कि विश्व धरोहर में शामिल जलदुर्ग झालावाड़ वासियों के लिए गौरव का प्रतीक है, लेकिन जिला प्रशासन की उपेक्षा से यहां पर्यटकों को निराशा हाथ लगती है. ऐसे में यहां पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए अश्व तथा हाथी की सवारी की सुविधाएं तथा जलदुर्ग परिसर में बेहतरीन गार्डन रेस्टोरेंट की उपलब्धता की मांग कई बार की गई है.

ओम पाठक ने बताया कि जलदुर्ग गागरोन बिना नींव के चट्टानों पर बना एकमात्र दुर्ग है, जिसकी रक्षा तीन ओर से आहू तथा कालीसिंध नदियां करती है, जिनके संगम स्थल पर इस जल दुर्ग का निर्माण किया गया था. कई ऐतिहासिक साक्ष्यों को समेटे जलदुर्ग का निर्माण मुकुंदरा की पहाड़ियों पर हुआ है, जहां अब टाइगर रिजर्व क्षेत्र भी बन गया है. ऐसे में विदेशी तथा विदेशी सैलानियों के आने की भी खासी उम्मीद जगी है. लेकिन गागरोन दुर्ग तक पहुंचने के लिए हाई लेवल पुलिया का निर्माण होना आवश्यक है, क्योंकि बारिश के दिनों में नदियां उफान पर होती है. गागरोन जलदुर्ग तक पहुंचने के सभी मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं. दुर्ग परिसर में जगह-जगह जंगली घास उगी हुई है, जिसे साफ कराकर ग्रीन कारपेट बगीचे विकसित किए जाने चाहिए. पर्यटकों को वहां पहुंचने पर आवश्यक संसाधनों की व्यवस्था मिले, जिससे जल्द से जल्द जलदुर्ग गागरोन न केवल प्रदेश में बल्कि विश्व के पटल पर भी अपनी पहचान बना सके.

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वहीं जल दुर्ग को देखने के लिए पहुंचे पर्यटक सुरेश ने बताया कि राजस्थान के इस ऐतिहासिक दुर्ग को देखने के लिए वह अपने बच्चों के साथ आए थे. यहां का दृश्य अद्भुत तथा मनोरम है. किंतु किले के अंदर बच्चों के छाया में बैठने की उचित व्यवस्था नहीं है. ऐसे में उन्होंने जिला प्रशासन के साथ सरकार से मांग की कि यहां पर संसाधनों को विकसित किया जाए. वहीं झालावाड़ में बॉक्सिंग चैंपियनशिप में भाग लेने वाले हरियाणा से आए छात्र महेश ने बताया कि राजस्थान में जल दुर्ग का नाम काफी सुना था. आज देखकर काफी मन प्रसन्न हो रहा है. चारों तरफ हरियाली है और यहां पर कई फिल्मों की शूटिंग भी हुई है. फोटोग्राफी के लिए भी यहां कई साइट हैं. दुर्ग को चारों तरफ से नदियों ने घेर रखा है जो कि इसे खास बनाता है

वही दुर्ग को देखने पहुंचे झुंझुनूं के जय राम ने बताया कि राजस्थान के इस दुर्ग का काफी नाम सुना है. यहां चारों तरफ पहाड़ियां ही पहाड़ियां हैं जिन्हें देखकर काफी अच्छा लगता है. ऐतिहासिक महत्व के इस दुर्गा को चारों तरफ से नदियों ने घेर रखा है यहां पर कई फिल्मों की शूटिंग भी हुई है बीसलदेव राजा के द्वारा बनाया गया यह एक अच्छा दुर्गा है जहां पर कई साके भी हुए हैं..

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