झालावाड़. भारत का भविष्य कहे जाने वाले बच्चों के विकास की पहली सीढ़ी आंगनबाड़ी केंद्रों से होकर गुजरती है. जहां पर बच्चों के पोषण पर सबसे अधिक ध्यान दिया जाता है ताकि बच्चा शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर ना हो. ऐसे में झालावाड़ जिले के आंगनबाड़ी केंद्रों पर आंगनबाड़ी कार्यकर्ता अपनी जिम्मेदारी को कितना बेहतर तरीके से अंजाम दे पा रही हैं. इसे जानने का प्रयास ईटीवी भारत की टीम ने किया. इस पड़ताल में कई चिंताजनक और चौंकाने वाली बातें निकल कर सामने आईं.
विभागीय जानकारी के अनुसार जिले में कुल 1,515 आंगनबाड़ी केंद्र हैं. वहीं आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की संख्या 1,475 है. जिले में इन आंगनबाड़ी केंद्रों में 6 से 3 वर्ष तक के 54,077 बच्चे पंजीकृत हैं. वहीं 3 से 6 वर्ष तक के 37,552 बच्चों का पंजीकरण हो रखा है. इसके अलावा 11 से 14 वर्ष की 537 किशोरी बालिकाएं भी पंजीकृत हैं जो स्कूल नहीं जाती. ऐसे में उनके पोषण की जिम्मेदारी भी इन्हीं आंगनबाड़ी केंद्रों की होती है.
पढ़ेंःबांसवाड़ा : वरदान बनी इंदिरा रसोई, नाश्ते के पैसों में दोनों वक्त भोजन कर पा रहे गरीब
ईटीवी भारत की टीम ने आंगनबाड़ी केंद्रों पर जाकर आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं से बात करते हुए जमीनी हकीकत जानने का प्रयास किया. जिसमें सामने आया कि कोरोना वायरस के चलते वर्तमान में आंगनबाड़ी केंद्र तो खोले जा रहे हैं. लेकिन उनमें बच्चों को नहीं बुलाया जा रहा है. बच्चों के लिए पोषाहार या तो उनके घर पर जाकर वितरित किया जा रहा है या फिर उनके परिजनों को आंगनबाड़ी केंद्रों पर बुला लिया जाता है और पोषाहार की सामग्री दे दी जाती है.
आंगनबाड़ीकार्यकर्ताओं की समस्याएं...
इस दौरान आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने कोरोना महामारी के दौरान उनके सामने आई समस्याओं के बारे में भी बताया. आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का कहना है कि मेडिकल टीम को तो सुरक्षा के सारे उपकरण दे दिए जाते हैं. लेकिन उनके साथ हर वक्त सर्वे से लेकर सैंपलिंग का काम करने वाली आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को समय से मास्क और सैनिटाइजर भी उपलब्ध नहीं करवाये जाते हैं. कार्यकर्ताओं ने बताया कि सर्वे, स्क्रीनिंग और सैंपलिंग के साथ-साथ क्वॉरेंटाइन करने का भी काम उनको सौंपा जाता है. वहीं प्रशासन के द्वारा उनको कोई सहयोग नहीं मिल पाता है. ऐसे में वे खुद अपने स्तर से लोगों के बीच जाकर ये काम करती हैं. कभी-कभी तो रात में जाकर उन्होंने लोगों को क्वॉरेंटाइन करने का काम किया है. इस दौरान लोगों के बुरे बर्ताव का भी उनको सामना करना पड़ता है.
आंगनबाड़ीकेंद्रों की खामियां...