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स्पेशल रिपोर्ट: उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू के गोद लिए तीतरवासा गांव ने ऐसे लड़ी COVID-19 के खिलाफ जंग

कोरोना वायरस का कहर इस कदर हावी है कि बड़े से बड़े देश इसके आगे बेबस से नजर आ रहे हैं. विभिन्न सरकारों द्वारा तमाम तरह से प्रयास किए जाने के बावजूद संक्रमण पर लगाम नहीं लगाई जा सकी है. हालांकि इस वैश्विक महामारी के बीच कुछ हौसला देने वाली चंद कहानियां भी हमारे सामने आती हैं जो पूरे समाज को प्रेरणा देने का काम करती है. ऐसी ही एक कहानी है. तीतरवासा गांव की. देखिए झालावाड़ से ये स्पेशल रिपोर्ट..

झालावाड़ न्यूज, rajasthan news
तीतरवासा गांव के ग्रामीण योद्धाओं की कहानी

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Published : Jun 29, 2020, 3:17 PM IST

Updated : Jun 29, 2020, 4:17 PM IST

झालावाड़.कोरोना के खिलाफ लड़ी जा रही जंग में आज हम करेंगे राजस्थान के झालावाड़ जिले के तीतरवासा गांव की. इस गांव ने कोरोना संक्रमण के खिलाफ लड़ाई में सराहनीय काम किया है. खास बात ये है कि इस गांव को भारत के उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने गोद ले रखा है. यहां के ग्रामीण योद्धाओं की वजह से ये ग्राम पंचायत कोरोना हॉटस्पॉट झालरापाटन के नजदीक होने के बावजूद अभी तक संक्रमण से बची हुई है.

तीतरवासा गांव के ग्रामीण योद्धाओं की कहानी

2017 में उपराष्ट्रपति ने लिया था तीतरवासा को गोद

झालावाड़ से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित तीतरवासा ग्राम पंचायत को भारत के उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने गोद ले रखा है. वेंकैया नायडू ने साल 2017 में सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत तीतरवासा ग्राम पंचायत को गोद लिया था. ग्राम पंचायत में तीतरी, श्योपुर, सारंगखेड़ा और बिरियाखेड़ी मुख्य गांव हैं. जिनकी कुल आबादी लगभग 4 हजार है.

उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने तीतरवासा को लिया था गोद

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ऐसे में ग्रामीण योद्धाओं की सजगता के चलते आज ये ग्राम पंचायत झालरापाटन जैसे कोरोना हॉटस्पॉट के नजदीक होने के बावजूद कोरोना मुक्त है. तीतरवासा ग्राम पंचायत के सरपंच कारूलाल ने बताया कि लॉकडाउन की घोषणा होते ही ग्राम पंचायत के सभी गांवों में हाइपोक्लोराइट का छिड़काव करवाया गया.

नहीं है एक भी कोरोना का मरीज

वहीं, लोगों को मास्क भी वितरित किए गए. लॉकडाउन में खाने-पीने की समस्या ना हो इसके लिए राशन दिलवाया गया. वहीं, गरीब लोगों को भामाशाहों के माध्यम से राशन किट और भोजन किट भी उपलब्ध करवाए गए. इसके अलावा ग्राम पंचायत की ओर से न सिर्फ ग्रामीणों को बल्कि रास्ते से गुजरने वाले सभी प्रवासी मजदूरों के लिए भी खाने-पीने की व्यवस्था की गई. साथ ही उनको गंतव्य तक पहुंचाने के लिए झालावाड़ और झालरापाटन भी छोड़ा गया.

गांव वाले बरत रहे पूरी सावधानी

सरपंच ने बताया कि ग्राम पंचायत में करीब 30 से 35 लोग जयपुर, कोटा और गुजरात के कई जिलों से आये थे. ऐसे में उन लोगों से ग्रामीणों में संक्रमण न फैले इसलिए चिकित्सा विभाग की टीम की ओर से उनको होम क्वॉरेंटाइन करवाया गया और घरों के बाहर पर्चा चिपकाते हुए 14 दिन तक बाहर नहीं निकलने के निर्देश दिए गए.

लोगों ने की गाइडलाइन की पालना

सरपंच ने बताया कि उपराष्ट्रपति के गोद लेने का कोरोना के काल में कोई फायदा नहीं हुआ है. हालांकि इस दौरान सांसद दुष्यंत सिंह से फोन पर जरूर चर्चा हुई थी, लेकिन उसका भी कोई खास नतीजा नहीं निकला. ग्रामीणों ने बताया कि लॉकडाउन की घोषणा होते ही उन्होंने घर और गांव के बाहर निकलना बंद कर दिया था. साथ ही जब भी बाहर निकलते तो मुंह पर रुमाल या गमछा बांधकर निकलते थे. इसके अलावा साबुन से हाथ भी धोते थे.

गांव में नहीं है कोरोना मरीज

वहीं, झालरापाटन के कोरोना हॉटस्पॉट बन जाने के कारण वहां पर जाना भी पूरी तरह से बंद कर दिया था. जिससे किसी भी गांव के व्यक्ति में कोरोना का संक्रमण नहीं हुआ. गांव के दुकानदारों ने बताया कि लॉकडाउन की घोषणा होते ही उन्होंने अपनी दुकानों को बंद कर दिया था. पूरे 3 महीने दुकानें बंद रखने के बाद अब छूट मिलते ही उन्होंने अपनी दुकान खोली है. ऐसे में अब वो ग्राहकों को 6 फीट की दूरी से ही सामान देते हैं. उसके अलावा बार-बार अपने हाथों को सैनिटाइज भी करते रहते हैं और मुंह पर हमेशा कपड़ा बांध कर रखते हैं.

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तीतरवासा ग्राम पंचायत के युवाओं ने बताया कि वो पढ़ाई के लिए झालावाड़ और झालरापाटन शहर में रह रहे थे, लेकिन जैसे ही लॉकडाउन की घोषणा हुई वो अपने गांव आ गए थे और उसके बाद कभी गांव के बाहर नहीं गए. इसके अलावा लोगों को भी बाहर नहीं निकलने को लेकर समझाइश की. जिसके चलते गांव में कोई भी कोरोना वायरस से संक्रमित नहीं हुआ.

वहीं गांव में जानवरों को चरा रहे चरवाहों ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान उन्होंने गाय-भैंस चराना और बाहर निकलना बंद कर दिया था. ऐसे में अब जब छूट मिली है तो वापस अपने जानवरों को चराने के लिए निकल रहे हैं, लेकिन इस दौरान वो मुंह पर गमछा बांध कर रखते हैं ताकि कोरोना का संक्रमण नहीं हो. वहीं ग्राम पंचायत के किसानों ने बताया कि लॉकडाउन के समय से ही वो अपनी खेती में जुटे हुए हैं. इस दौरान उनको कई बार झालरापाटन में काम पड़े, लेकिन वो कोरोना की वजह से नहीं गए. लॉकडाउन में हालांकि उनको डीजल को लेकर भी समस्या हुई, लेकिन फिर भी वो गांव के बाहर नहीं निकले. जिसकी वजह से आज उनका पूरा गांव कोरोना से बचा हुआ है. इस दौरान किसानों ने मांग की है कि डीजल की कीमत को कम किया जाए. साथ ही उनकी उपज का अच्छा भाव मिले जिससे उनको राहत मिल सके.

Last Updated : Jun 29, 2020, 4:17 PM IST

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