अकलेरा (झालावाड़).अकलेरा कस्बे की सड़कों पर लावारिस गायों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है. ऐसी कोई सड़क नहीं जहां लावारिस गाये सड़क पर दिखाई न देती हो. अंधेरा होते ही लावारिस गायों का झुंड सड़कों पर आ जाता है. ज्यादातर काले रंग के सांड हादसे का शिकार बन रहे हैं.
सड़कों पर लावारिस गायों की संख्या में लगातार हो रहा इजाफा दरअसल, सामने से आ रहे वाहनों की लाइट में सांड दिखाई नहीं देते. इस कारण हादसा हो जाता है. रोजाना एक दर्जन गाय सड़क हादसे का शिकार हो रही हैं. इनमें बहुत से गाय जहां दम तोड़ जाती हैं, वहीं कई गाय गोशालाओं में जिदगी और मौत के बीच जंग लड़ रही हैं. अकेले गोशाला में ही करीब दर्जनों घायलों का उपचार किया जा रहा है.
कूड़े के ढेर में मुंह मारती गाय...
हजारों गोवंश सड़कों पर भटक रहे हैं. खाने को चारा तो दूर पीने को पानी तक नसीब नहीं होता. ज्यादातर गोवंश कूड़े के ढेर से पॉलीथिन खाकर भूख मिटाते हैं. इसी कारण से पॉलीथिन आंतड़ियों में फंसकर गोवंश को तड़प-तड़पकर मरने के लिए मजबूर कर देता है. इन्हें बचाने न तो कोई गोरक्षक आता है और न ही गोसेवक. सड़क हादसों में घायल होने के साथ-साथ कहीं सीवर में, तो कहीं गहरे नाले में गाय फंसी हुई नजर आती है. बहुत सी गाय तड़प-तड़प कर दम तोड़ने पर मजबूर हो रही हैं.
सड़क पर 500 के करीब गाय...
शहर की सड़कों पर आवारा गाय की संख्या लगातार बढ़ रही है. अकलेरा मनोहरथाना रोड, हरनावदा रोड, घाटोली रोड, झालावाड़ रोड, मुख्य बस स्टैंड अकलेरा सहित चौक सहित शहर का ऐसा कोई मार्ग नहीं जहां लावारिस गाय सड़क पर नजर नहीं आती हो. रात के समय तो काफी गाय सड़क पर आ जाती है. करीब 500 गाय रोजाना सड़क पर नजर आती है. इसी प्रकार से गाय सड़कों पर होने के कारण वाहन चालकों को काफी दिक्कत आती है. गांव से भी लोग गाय को वाहनों में भरकर सड़क पर छोड़कर फरार हो जाते हैं.
प्रशासन को कोई सुध नहीं...
अकलेरा के लोगों का कहना है कि मनोहरथाना रोड पर हर समय आवारा गाय काफी संख्या में खड़ी रहती है. रोजाना कोई न कोई वाहन चालक सड़क हादसे का शिकार हो रहे हैं. अकलेरा निवासी एक व्यक्ति ने बताया कि लावारिस गाय को गोशाला में छोड़ने के लिए प्रशासन और नगरपालिका को ज्ञापन दे चुके हैं. लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई.
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पर्यावरण और आम जनमानस के साथ ही पॉलीथिन के दुष्प्रभाव का खामियाजा गोवंशों को भी भुगतना पड़ रहा है. बेजुबान गोवंश अपनी भूख मिटाने के फेर में पॉलीथिन में रखी खाद्य सामग्री तो खाते ही हैं, बाद में पॉलीथिन भी निगल जाते हैं. पॉलीथिन उनके पेट में जमा होती जाती है और फिर ये मवेशी, 'काल के गाल' में समा जाते हैं. पालतू जानवरों की देखरेख होती है, लेकिन आवारा जानवरों की मौत की सबसे बड़ी वजह पॉलीथिन ही बन रही है. मौजूदा समय में लगभग 50 फीसदी आवारा जानवरों की मौत पॉलीथिन की वजह से हो रही है.