झालावाड़.जहां एक ओर कोरोना वायरस के चलते घोषित किए गए लॉकडाउन का तीसरा चरण भी समाप्त हो चुका है. वहीं, दूसरी ओर प्रवासी मजदूरों का पलायन रुकने का नाम ही नहीं ले रहा है. इसी क्रम में झालावाड़ में से होकर गुजरने वाले नेशनल हाईवे-52 पर मजदूरों का बड़ी संख्या में पलायन होने की प्रक्रिया जारी है. ऐसे में मध्य प्रदेश के इंदौर जिले के राउ से लौट रहे कुछ मजदूरों ने अपना दर्द बयां किया.
साइकिल से सैकड़ों किमी का सफर तय करने को मजबूर मजदूरों का कहना है कि डेढ़ महीने से वो प्रधानमंत्री मोदी की सारी बातें मान रहे थे, लेकिन प्रधानमंत्री ने हमारी बिल्कुल भी सुध नहीं ली. उनका कहना है कि सरकार की ओर से जो भी बसें और ट्रेनें चलाई जा रही है, वो सिर्फ और सिर्फ अमीरों के लिए ही है. उससे गरीब मजदूरों का दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है और ना ही उनका इससे कोई फायदा है.
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उन्होंने बताया कि वो इंदौर के राउ स्थित एक फैक्ट्री में काम करते थे, जहां से तीन दिन पहले निकले थे और उनको 400 किलोमीटर दूर राजस्थान के बूंदी जिले में जाना है. ऐसे में उन्होंने साइकिल से 250 किलोमीटर का सफर तो पूरा कर लिया है, अब 150 किलोमीटर का सफर तय करना बाकी है.
मजदूरों ने बताया कि ट्रेन और बस में आने की कानूनी प्रक्रिया इतनी लंबी है कि वो फॉर्म भर-भर के जमा कराते हुए परेशान हो चुके हैं. बूंदी नोडल ऑफिस से क्लियरेंस मिलने के बाद भी उनके लिए वापसी की कोई व्यवस्था नहीं की गई. ऐसे में उनको बोरिया-बिस्तर समेट कर साइकिल से ही निकलना पड़ा. इतना ही नहीं उन्होंने भावुक होते हुए कहा कि पैसे नहीं होने के कारण साइकिल भी परिचितों से मांग कर लानी पड़ी है.
साइकिल से सैकड़ों किमी का सफर तय करने को मजबूर उन्होंने बताया कि जहां पर वो काम करते थे, उस फैक्ट्री में काम नहीं चल रहा है, जिसके चलते उनको मजदूरी नहीं मिल पा रही है. इसके अलावा और कोई काम करने की कोशिश करते हैं तो वो भी नहीं करने दिया गया. साथ ही प्रशासन की ओर से भी किसी प्रकार की खाने की कोई व्यवस्था नहीं की गई, जिसके चलते उन्हें अब डेढ़ महीने बाद अपने गृह जिले लौटना पड़ रहा है.
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वहीं, प्रवासी मजदूर फिरोज ने बताया कि साइकिल चलाते-चलाते उनके घुटनों में दर्द होने लग गया है और उनके पैरों में भी छाले पड़ गए है. इसके अलावा कई जगहों पर साइकिल भी खराब हो गई और रास्ते में सर्विस सेंटर नहीं मिलने से खुद ही साइकिल ठीक भी करनी पड़ रही है. उन्होंने बताया कि कई जगहों पर तो कोरोना के डर से घुसने ही नहीं दिया जाता, जिससे सड़कों पर ही रात गुजारनी पड़ती है.
साथ ही फिरोज ने बताया कि रास्ते में जहां-जहां स्क्रीनिंग और चेकिंग होती है, वहां पर भी खाने के नाम पर महज बिस्किट के पैकेट दिए जाते हैं. ऐसे में पिछले 3 दिनों से उनको पर्याप्त भोजन भी नहीं मिल पाया है, लेकिन घर पहुंचने की उम्मीद में कभी साइकिल पर तो कभी पैदल ही चले जा रहे है.