झालावाड़.उन्हैल नागेश्वर कस्बे के लोगों ने बॉर्डर पर तैनात सिपाहियों की तरह कोरोना से जंग लड़ी और उस पर विजय हासिल की. एक ओर जहां देश भर के तमाम बड़े शहरों में पुलिस और प्रशासन की बेहतर व्यवस्था होने के बाद भी तेजी से कोरोना का संक्रमण फैला वहीं सुविधाओं के अभाव में भी उन्हैल नागेश्वर कस्बे के लोगों ने समझदारी से काम लेते हुए गांव को इस महामारी से बचाए रखा. यहां अब तक एक भी कोरोना पॉजिटिव केस सामने नहीं आया है. कस्बाइयों ने अपनी सजगता से यहां कोरोना की 'नो एंट्री' कर दी थी. ईटीवी ने ग्रामीणों से जाना कि कोरोना से गांव को बचाए रखने के लिए उन्होंने क्या-क्या उपाए किए.
उन्हैल नागेश्वर कस्बे की आबादी करीब 5000 है और यहां की भौगोलिक स्थिति देखी जाए तो दोनों तरफ से यह कस्बा मध्यप्रदेश की सीमाओं से लगा हुआ है. एमपी की सीमाओं से सटा होने के कारण उन्हैल कस्बे के चारों ओर कोरोना का संक्रमण फैला हुआ है. शिप्रा नदी के तट पर स्थित यह कस्बा शुरू से ही कोरोना से जंग लड़ता आ रहा है. पुलिस की ओर से यहां दोनों तरफ से सीमाओं पर नाकाबंदी कर दी गई थी. 22 मार्च को जनता कर्फ्यू और उसके बाद लॉकडाउन के बाद से ही पुलिसकर्मी गांव आने वाले लोगों को सरकार के निर्देश के अनुसार रोकते और उनकी जांच करते थे.
रजिस्टर मेनटेन कर रखा ब्योरा...
मई में जब ट्रेनों का संचालन शुरू हुआ तो ग्राम पंचायत की ओर से एक रजिस्टर मेंटेन किया गया था. इसमें बाहर से आने वाले मजदूरों के नाम, वे किस गांव के हैं, किस जिले और स्थान से आए हैं, उस क्षेत्र में कोरोना का संक्रमण तो नहीं फैला है, गांव में किसके घर रुके हैं या रुका है, इसकी विस्तृत जानकारी नोट की जाती थी. उसके बाद उन्हैल स्कूल या घरों पर ही 14 दिनों के लिए क्वॉरेंटाइन किया जाता था. ऐसे में करीब 200 से अधिक श्रमिकों को क्वॉरेंटन किया गया था.
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मंदिर में प्रवेश पर रहा प्रतिबंध...
नागेश्वर गांव में विश्वविख्यात नागेश्वर मंदिर में जहां प्रतिदिन बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगा रहता था. वहीं, लॉकडाडन के दौरान पूरी तरह सन्नाटा पसरा रहा. सरकार के निर्देश के अनुसार मंदिर भी बंद ही रहा. मंदिर समिति की ओर से परिसर में प्रवेश वर्जित कर दिया गया था. रोजाना सिर्फ मंदिर के पुजारी वहां आरती-पूजन किया करते थे. किसी भी ग्रामीण को दर्शन की अनुमति नहीं थी. इस दौरान पूरे मंदिर परिसर काे समय-समय पर सैनिटाइज भी कराया जाता था. मंदिर कर्मचारी भी बिना मास्क और सैनिटाइजर से हाथ धोए प्रवेश नहीं कर सके थे.