झालावाड़.पूरे देश में कोरोना की दूसरी लहर का कहर बरकरार है. ऐसे में झालावाड़ जिले में भी सैकड़ों की संख्या में नए कोरोना पॉजिटिव केस सामने आ रहे हैं. साथ ही बड़ी संख्या में लोगों की मौतें भी हो रही है. इसी बीच ईटीवी भारत ने जिले में कोरोना की वर्तमान स्थिति, भविष्य को लेकर प्रशासन की तैयारियां और कोरोना की इलाज के दौरान हासिल हुए अनुभवों को शेयर करने के लिए कोविड-19 अस्पताल के इंचार्ज डॉ. रघुनंदन मीणा से खास बातचीत की. जिसमें उन्होंने कई महत्वपूर्ण सवालों के जवाब दिए.
डॉ. रघुनंदन मीणा Exclusive interview पार्ट 1 सवाल नं 1 - वर्तमान में कोरोना की जिले में क्या स्थिति है?
डॉ. रघुनंदन मीणा ने बताया कि जिले में धीरे-धीरे हालात सामान्य होते जा रहे हैं. जिले के बनाए गए कोविड-19 अस्पताल में 50% बेड खाली हो गए हैं. वहीं 100 बेड के सैटेलाइट अस्पताल में भी महज दो-तीन बेड ही भरे हुए हैं. बाकी सभी खाली हो गए हैं. हालांकि, आईसीयू में अभी भी मरीज बड़ी संख्या में मौजूद है लेकिन धीरे-धीरे मरीजों की संख्या में गिरावट आती जा रही है. इसके अलावा कोरोना से मरने वाले लोगों की संख्या में भी काफी कमी देखने को मिली है.
सवाल नं. 2-कोरोना की पहली और दूसरी लहर के मरीजों में क्या अंतर देखने को मिल रहा है?
डॉ. मीणा ने बताया कि पिछली बार सख्त लॉक डाउन होने के कारण काफी कम मरीज देखने को मिले थे लेकिन इस बार बड़ी संख्या में मरीज सामने आए. खासकर गांवों में बहुत लोग कोरोना से संक्रमित हुए हैं. वहीं पहली लहर में अधिकतर लोगों में ज्यादा लक्षण नहीं थे, जिससे बहुत जल्दी रिकवर हो रहे थे लेकिन इस बार लक्षण होने के साथ-साथ लोगों को बहुत जल्दी निमोनिया हो रहा था. जिससे उनको ऑक्सीजन की डिमांड भी बहुत ज्यादा होने लग गई. ऑक्सीजन नहीं मिलने से हालत गंभीर होती चली गई. डॉ. मीणा ने बताया कि पिछले साल के मुकाबले इस बार युवा बहुत अधिक संख्या में संक्रमित हुए हैं. जिससे युवाओं में मौत का औसत भी बढ़ा है. इनमें बड़ी संख्या में युवा डॉक्टर और रेजिडेंट और अन्य स्वास्थ्य कर्मी भी शामिल है.
सवाल नं 3 - दूसरी लहर के दौरान लोगों ने क्या बड़ी गलतियां की, जिससे मौतों का आंकड़ा बढ़ा?
डॉ. मीणा ने बताया कि पिछली बार के मुकाबले इस बार लोगों में कोरोना को लेकर डर कम था. जिसकी वजह से सामाजिक, राजनैतिक और धार्मिक आयोजन बड़ी संख्या में हुए. इस दौरान लोगों ने मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना तो बंद ही कर दिया था. वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में हुए आयोजनों में लोग बडी संख्या में जुटते रहे और लापरवाही करते रहे. इसके साथ ही कोरोना को लेकर अनेक प्रकार के भ्रम ने भी उनको मुसीबत में डाल दिया.
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लोग क्वॉरेंटीन सेंटर और अस्पताल में भर्ती कर दिए जाने के डर से जांच ही नहीं करवा रहे थे. जिसकी वजह से संक्रमण फैलता गया. वहीं ग्रामीणों ने वैक्सीन भी बहुत कम लगवाई. जिसकी वजह से ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत बड़े स्तर पर नए संक्रमित मरीज मिले. प्रशासन की अपील का असर भी ग्रामीण क्षेत्रों तक ज्यादा नहीं हो पाया.
सवाल नं 4 - फंगल इन्फेक्शन का कोरोना वायरस से क्या कनेक्शन है और इससे बचने के लिए हमें क्या सावधानियां बरतनी चाहिए
डॉक्टर मीणा ने बताया कि फंगल इंफेक्शन को लेकर बहुत सी थियरीज चल रही है. जिनमें स्टेरॉयड का इस्तेमाल, ऑक्सीजन के जरिए इंफेक्शन फैलना, डायबिटीज पैशेंट को ही फंगल इन्फेक्शन होना बताया जा रहा है लेकिन पिछली बार भी यह सब हुआ था उसके बावजूद इस तरीके का इंफेक्शन देखने को नहीं मिला था. ऐसे में संभव है कि कोविड-19 के नए स्ट्रैन की वजह से भी यह इंफेक्शन फैल रहा हो.
डॉ. रघुनंदन मीणा Exclusive interview पार्ट 2 सवाल नं 5 - कोरोना की तीसरी लहर से बच्चों को बचाने को लेकर क्या तैयारियां की गई हैं?
डॉ. मीणा ने बताया कि तीसरी लहर में बच्चों को बचाना बहुत बड़ी चुनौती है क्योंकि एक सामान्य मरीज को संभालने के लिए गिने-चुने मेडिकल स्टाफ काफी होते हैं लेकिन बच्चे का इलाज के दौरान ज्यादा स्वास्थ्य कर्मियों के साथ-साथ उसके परिजनों के भी होने की आवश्यकता होती है. ऐसे में स्वास्थ्य कर्मियों के साथ-साथ परिवार वालों को भी इन हालातों से निपटने में बहुत बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ेगा. उन्होंने बताया कि तीसरी लहर में बच्चों में संक्रमण की अधिक आशंका इसलिए भी जताई जा रही है क्योंकि बुजुर्ग और युवा वर्ग के लोग अधिकतर संक्रमित हो चुके हैं या फिर उनको वैक्सीन लग रही है. जिससे उनमें एंटीबॉडी हो गई है लेकिन पहली और दूसरी लहर से बच्चे बचे हुए थे और उनमें वैक्सीनेशन भी नहीं हुआ है. जिसकी वजह से तीसरी लहर में बच्चे को बचाना सबसे बड़ी चुनौती बन गया है. इसके लिए प्रशासन की ओर से पूरी तरह से तैयारियां की जा रही है.
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पीडियाट्रिक डिपार्टमेंट को नए सिरे से तैयार किया जा रहा है. इसके साथ-साथ राजेंद्र सार्वजनिक चिकित्सालय में शिशु वार्ड जो 90 बेड का है, उसे 250 बेड का किया जाएगा. बच्चों के 30 बेड के आईसीयू को 100 बेड का किया जाएगा. एनआईसीयू के 20 बेड को 50 बेड और एसएनसीयू को 20 बेड से बढ़ाकर 100 बेड किया जाएगा है. वहीं कोविड की तीसरी लहर को देखते हुए प्रस्तावित 250 बेड के शिशु वार्ड पर 25 चिकित्सक और 60 मेडिकल स्टॉफ की व्यवस्था के लिए मेडिकल कॉलेज झालावाड़ की ओर से प्रस्ताव बनाकर परियोजना निदेशक आर सीएच को भेज दिया गया है. फिर भी बच्चों को बचाने के लिए मास्क और सेनीटाइजर जैसी कोविड गाइड लाइन की पालना करना सबसे जरूरी है.
सवाल नं 6 - कोरोना काल में किस तरह के अनुभव हुए जो आप शेयर करना चाहते हैं?
डॉ. रघुनंदन मीणा ने बताया कि बीच में अस्पतालों में हालात ऐसे हो गए थे कि भर्ती करने की एक बेड भी खाली नहीं रहता था. यहां तक की कैजुअल्टी में भी उनके पास ऐसे पेशेंट्स होते थे. जिनको आईसीयू या वेंटीलेटर पर रखने की जरूरत होती थी. ऐसे में ऑक्सीजन पॉइंट कम होने की वजह से उन्होंने जुगाड़ का सहारा लेते हुए एक सिलेंडर से ही 2 या 3 मरीजों और कभी-कभी तो चार-चार मरीजों को भी ऑक्सीजन की सप्लाई की जाती थी. जिससे बड़ी संख्या में मरीजों की जान बचाई गई.