झालावाड़. जिले में सबसे ज्यादा बारिश और हरियाली के कारण झालावाड़ को राजस्थान का चेरापूंजी कहा जाता है. ऐसे में झालावाड़ में चेरापूंजी का एहसास यहां की झीर नर्सरी करवाती है. ये नर्सरी कभी गुच्छेदार बांस के पेड़ों से इतनी आबाद रहती थी कि सूरज की किरणें भी जमीन तक नहीं पहुंच पाती थी, लेकिन आज उचित देखरेख के अभाव में और आंधी तूफान के कारण यहां के अधिकतर बांस के पेड़ टूट गए हैं. इसके कारण झीर नर्सरी पूरी तरह से उजड़ने की कगार पर पहुंचती जा रही है.
झालावाड़ से भवानीमंडी मार्ग पर स्थित झीर नर्सरी जिले की सबसे खूबसूरत जगहों में से एक है. यहां पर सड़क के दोनों ओर लगे गुच्छेदार बांस के पेड़ ऊपर जाकर आपस में मिलते हुए पूर्वोत्तर भारत में होने का एहसास करवाता है. ये गुच्छेदार बांस पेड़ इतने आकर्षक लगते थे कि यहां से गुजरने वाला हर एक व्यक्ति यहां पर रुक कर जाया करता था. लेकिन लॉकडाउन के दौरान आए आंधी-तूफान में यह झीर नर्सरी उजड़ गई और रही-सही कसर प्रशासन की लापरवाही ने पूरी कर दी.
बांस के पेड़ टूटकर सड़क के ऊपर झूलते रहते हैं...
प्रशासनिक लापरवाही का अंदाजा इस बात से लग सकता है कि बांस के पेड़ टूटकर सड़क के ऊपर झूलते रहते हैं. इससे सड़क पर दुर्घटना होने का खतरा बना रहता है. इसके बावजूद 4 महीने बीत जाने के बाद भी प्रशासन ने ना तो टूटे हुए बांस के पेड़ों को हटाना उचित समझा और ना ही नर्सरी की कोई सुध ली.
राहगीरों ने बताया कि पहले जब भी वो यहां से गुजरते थे तो झीर नर्सरी में रुक कर जाते थे क्योंकि यहां पर उन्हें सुकून मिलता था. यहां पर बांस के पेड़ बहुत खूबसूरत लगते थे. साथ ही यहां पर इतनी छाया रहती थी कि सूरज की किरणें जमीन तक नहीं पहुंच पाती थी. वहीं यहां पर बांस के बहुत घने पेड़ हुआ करते थे, जिससे गर्मियों में भी ठंडक का एहसास होता था, लेकिन आंधी-तूफान और प्रशासनिक लापरवाही से अब झीर नर्सरी उजड़ चुकी है.