डग (झालावाड़). सरकार डिजिटल इंडिया बनाने की बात तो कर रही है, लेकिन इसकी खामियों के समाधान के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है. जिसका खामियाजा भंवरलाल जैसे किसानों को उठाना पड़ता है. भारत के अधिकतर किसान या तो पढ़े लिखे नहीं हैं या कम पढ़े लिखे हैं. ऐसे में डिजिटल प्रक्रिया के तहत मुआवजा लेना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है.
दर-दर भटकने पर मजबूर है किसान भंवरलाल गोविंदपुरा गांव का किसान है. भंवरलाल के पास 12 बीघा जमीन है. भंवरलाल पिछले 6 महीने से मुआवजे की राशि के लिए अधिकारियों के चक्कर काट रहा है, लेकिन उसकी कोई सुनवाई नहीं हो रही है. ओलावृष्टि के कारण किसानों की फसल खराब हो गई थी. किसान भंवरलाल की भी फसल ओलावृष्टि की चपेट में आ गई थी. जिसमें ओलावृष्टि से फसल खराब होने के चलते 27 हजार की मुआवजा राशि मिलनी थी. मुआवजा राशि लेने के लिए बुजुर्ग किसान ने अपने बैंक अकाउंट की कॉपी, आधार कार्ड की कॉपी सहित बाकि के कागजात पटवारी को दिए थे.
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लेकिन मुआवजे की राशि भंवरलाल के खाते में नहीं आई. मुआवजे की राशि किसी दूसरे किसान के खाते में चली गई. जिस दूसरे किसान के खाते में मुआवजे की राशि गई है उसका नाम भी भंवरलाल ही है और उसी गांव का रहने वाला है और उसके पास केवल 2 बीघा जमीन है. वहीं सोयाबीन की फसल नष्ट होने पर 3600 रुपए का मुआवजा पीड़ित भंवरलाल को मिलना था. लेकिन यह मुआवजा राशि भी दूसरे भंवरलाल के खाते में चली गई. जिसके बाद पीड़ित किसान लगातार अधिकारियों के चक्कर काट रहा है. लेकिन उसकी कोई सुनवाई नहीं हो रही है.
रोज ऐसे मामले सामने आते हैं जिनमें लाभार्थी के अकाउंट में पैसे ना आकर किसी दूसरे के अकाउंट में पैसे चले जाते हैं. कई बार ये कागजात में गलती की वजह से हो जाता है वहीं कई बार लोकल लेवल पर मिलीभगत के चलते भी राशि किसी दूसरे के अकाउंट में ट्रांसफर हो जाती है.